'अग्निपथ' विरोधी गुब्बारे में आखिर किसने चुभो दी ये 'सुई'?

आज 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है लेकिन ये पिछले सालों के मुकाबले थोड़ा अलग है,जो सरकार के लिए भी थोड़ा परेशान करने वाला भी है. जाहिर है कि हर साल की तरह आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सरकार के तमाम मंत्री भी योगाभ्यास करते हुए नजर आएंगे. लेकिन ये मंगलवार कुछ खास होने के साथ ही थोड़ा इसलिये अलग है कि देश के पीएम मोदी रोज़मर्रा की तरह अपने शरीर को फिट रखने के साथ ही आज एक अहम दिमागी कसरत भी करेंगे. इसलिये कि वे आज तीनों सेना प्रमुखों से मुलाकात कर "अग्निपथ" योजना की समीक्षा करेंगें और हो सकता है कि इस बारे में कोई और बड़ा फैसला भी ले लें.
उनके इस फैसले की तारीफ इसलिये भी की जानी चाहिए कि तीन कृषि कानूनों को लाने व उन्हें लागू करवाने में उनसे जाने-अनजाने में जो गलती हुई थी, वे इसे "अग्निपथ" योजना के मामले में दोहरा नहीं रहे हैं. हालांकि ये अलग विषय है कि इससे भड़के हुए युवा किस हद तक शांत होकर अपना आंदोलन खत्म करेंगे. लेकिन किसी भी तरह की ईमानदार कोशिश का संदेश न सिर्फ उन युवाओं तक पहुंचना चाहिये बल्कि उनके दिमाग में बैठी आशंका व ग़लतफ़हमी भी दूर करना चाहिए.
देश की सेना को और ज्यादा जवान बनाने के लिये सेना में नई भर्ती का सरकार ने जो नया प्रयोग किया है, उसके खिलाफ ऐसे उग्र आंदोलन हुए हैं, जिसे हमारी युवा पीढ़ी ने अब तक सिर्फ हिंदी फिल्मों में ही देखा होगा.जाहिर है कि दुनिया में कहीं भी बरसों पुरानी किसी भी व्यवस्था में कुछ नया करने की कोशिश होती है,तो उसका विरोध हमेशा से होता आया है.इतिहास गवाह है कि दुनिया के कई मुल्कों में हुए युवाओं के इस तरह के आंदोलनों को वहां की विपक्षी पार्टियों ने ही पूरा खाद-पानी देकर उसे हिंसा के शिखर तक पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.शुरुआती चार दिनों में कुछ वैसा ही माहौल हमारे यहां भी बनाया गया.
इसी माहौल के बीच विपक्षी दलों ने संघ यानी आरएसएस को घेरना शुरू कर दिया है कि वो सेनाओं का राजनीतिकरण कर रहा है. उनका आरोप है कि इसके जरिये संघ 18 से 23 साल तक के अपने स्वयंसेवकों को सेना में भेजकर देश की तीनों सशस्त्र सेनाओं को अपने काबू में लाकर उस पर अपना नियंत्रण बनाना चाहता है,जो देश की सुरक्षा के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है. हालांकि ये आरोप लगाने वाले विपक्षी नेता अब तक इस बारे में कोई ठोस-पुख्ता सबूत मीडिया के आगे पेश नहीं कर पाए हैं. लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि उन्होंने इस योजना को लेकर देश के युवाओं के बीच अपना रायता फैलाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
दरअसल,विपक्ष के इस आरोप की पृष्ठभूमि में जाकर ये पड़ताल करनी होगी कि आखिर वे संघ पर ये आरोप किस आधार पर लगा रहे हैं.संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 11 फरवरी 2018 को बिहार के मुजफ्फरपुर मे कहा था कि "आरएसएस तीन दिन के भीतर सेना तैयार कर सकत है." तब उन्होंने अपनी छह दिवसीय मुजफ्फरपुर यात्रा के अंतिम दिन सुबह जिला स्कूल मैदान में आरएसएस के स्वयं सेवकों को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा था कि सेना को सैन्यकर्मियों को तैयार करने में छह—सात महीने लग जाएंगे, लेकिन संघ के स्वयं सेवकों को लेकर यह तीन दिन में तैयार हो जाएगी.अगर जरूरत पड़ी तो देश के लिये लड़ने की खातिर आरएसएस के पास तीन दिन के भीतर ‘सेना’ तैयार करने की क्षमता है.
तब उन्होंने ये भी कहा था कि , "यह हमारी क्षमता है पर हम सैन्य संगठन नहीं, पारिवारिक संगठन हैं लेकिन संघ में सेना जैसा ही अनुशासन है.अगर कभी देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयं सेवक मोर्चा संभाल लेंगे. आरएसएस के स्वयं सेवक मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते बलिदान देने को तैयार रहते हैं."
शायद यही वजह है कि विपक्षी दलों ने सवा चार साल पहले भागवत के दिए इस बयान को लपक लिया और इसके जरिये वे सरकार की "अग्निपथ" योजना को लेकर हमलावर हो गए. लेकिन उन्हें शायद ये अंदाज भी नहीं होगा कि जिस पीएम पर वे कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने का अब तक आरोप लगाते आये हैं, उन्ही दो बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने ऐसे "अग्निवीरों" को सेना में चार साल की सेवा देने के बाद बाद अपने यहां बढ़िया नौकरी देने का ऐलान करते हुए उनके भविष्य के रास्ते पर पलक-पाँवड़े बिछाने का काम कर दिया है. अगर विपक्ष सचमुच देश की आम जनता की भलाई के लिए इतना ही फ़िक्रमंद है, तो उसे ये भी सोचना होगा कि किसी ऐसे मुद्देरूपी गुब्बारे में हवा भरने से भला क्या फायदा, जिसे छोटी-सी सुई ही फुस्स करके रख दे!
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