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तहव्वुर हुसैन राना: मुंबई हमले का साजिशकर्ता भारत पहुंचा लेकिन एक सवाल अभी बाकी है!

चर्चा एक ऐसी खबर की जो न सिर्फ हिंदुस्तान के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम है. 26/11 मुंबई हमलों का एक बड़ा साजिशकर्ता, तहव्वुर हुसैन राना, आखिरकार भारत की सरज़मीं पर पहुंच गया है. ये शख्स, जो पाकिस्तान में पैदा हुआ और कनाडा का नागरिक बना, उसे आखिरकार अमेरिका से एक खास फ्लाइट से दिल्ली लाया गया. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी प्रत्यर्पण के खिलाफ अर्जी खारिज कर दी थी, और अब वो हिंदुस्तानी कानून के सामने जवाबदेह होगा. लेकिन इस कहानी में बहुत सारे पहलू हैं - मुंबई हमले की साजिश से लेकर पाकिस्तान में 9/11 के मुलजिमों के साथ हुए सुलूक तक. तो खबर को गहराई से समझते हैं.तहव्वुर राना कौन है?तहव्वुर हुसैन राना कोई आम शख्स नहीं है.

ये वो इंसान है जिसने 2008 में मुंबई पर हुए खौफनाक आतंकी हमले की साजिश में अहम किरदार निभाया. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चिचावटनी में 12 जनवरी 1961 को जन्मा राना, पहले पाकिस्तानी फौज में डॉक्टर था. बाद में वो कनाडा चला गया और वहां इमिग्रेशन सर्विस का बिजनेस शुरू किया. लेकिन उसकी असली पहचान तब सामने आई जब उसका नाम डेविड कोलमैन हेडली के साथ जुड़ा. हेडली, जिसका असली नाम दाऊद सईद गिलानी था, मुंबई हमले का मास्टरमाइंड था और राना का बचपन का दोस्त. दोनों ने मिलकर लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के लिए काम किया, जो इस हमले के पीछे की आतंकी तंजीम थी.

राना ने हेडली को मुंबई में रेकी करने के लिए न सिर्फ पैसा और लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया, बल्कि अपनी कंपनी का इस्तेमाल हेडली के लिए कवर के तौर पर भी किया. हेडली ने राना की इमिग्रेशन फर्म के नाम पर मुंबई में ऑफिस खोला और वहां से ताज होटल, CST स्टेशन, नरीमन हाउस और कामा हॉस्पिटल जैसे ठिकानों की जासूसी की. राना खुद भी हमले से ठीक पहले, नवंबर 2008 में मुंबई आया था और ताज होटल में रुका था. ये सब साबित करता है कि वो इस साजिश का एक अहम हिस्सा था.26/11 मुंबई हमला, वो काला दिन 26 नवंबर 2008 को मुंबई की फिज़ा में खून की बू फैल गई थी. 10 लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी, जो पाकिस्तान से समुद्री रास्ते के ज़रिए हिंदुस्तान में दाखिल हुए थे, ने मुंबई को 60 घंटे तक बंधक बना लिया. सीएसटी रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध फायरिंग, ताज महल होटल और ओबेरॉय ट्राइडेंट में बम धमाके, नरीमन हाउस में यहूदी केंद्र पर हमला - इन सबने मिलकर 166 बेगुनाहों की जान ले ली और 300 से ज्यादा लोगों को ज़ख्मी कर दिया.

इनमें विदेशी नागरिक भी शामिल थे.हमले का एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकी, अजमल कसाब, ने बाद में कबूल किया कि ये साजिश पाकिस्तान में रची गई थी. लश्कर के अलावा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का भी इसमें हाथ होने की बात सामने आई. लेकिन राना और हेडली जैसे लोग, जो विदेश में बैठकर इस साजिश को अंजाम दे रहे थे, वो लंबे वक्त तक कानून की पकड़ से बाहर रहे.तहव्वुर हुसैन राना को 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया. वहां उसे 2013 में 14 साल की सजा सुनाई गई, लेकिन ये सजा मुंबई हमले के लिए नहीं, बल्कि लश्कर को सपोर्ट करने और डेनमार्क के एक अखबार पर हमले की साजिश रचने के लिए थी. मुंबई हमले के मामले में अमेरिकी कोर्ट ने उसे बरी कर दिया था.

लेकिन हिंदुस्तान की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने उस पर चार्जशीट दाखिल की और लगातार उसके प्रत्यर्पण की मांग की.पिछले कई सालों से राना अमेरिकी कोर्ट्स में अपने प्रत्यर्पण के खिलाफ लड़ रहा था. उसने दावा किया कि भारत में उसे टॉर्चर किया जाएगा, क्योंकि वो पाकिस्तानी मूल का मुसलमान है. लेकिन मार्च 2025 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी आखिरी अपील ठुकरा दी. इसके बाद NIA और रॉ (R&AW) की एक जॉइंट टीम अमेरिका गई और उसे लेकर स्पेशल फ्लाइट से भारत लाई. उम्मीद है की उसे तिहाड़ जेल के हाई-सिक्योरिटी वार्ड में रखा जाएगा.

पाकिस्तान में 9/11 के मुलजिमों का क्या हुआ?अब बात करते हैं एक और अहम पहलू की. 9/11 के हमले, जिन्होंने अमेरिका को हिला दिया था, उनके कई मुलजिमों और उनके करीबियों का अंजाम भी रहस्यमयी रहा है. पाकिस्तान में ऐसे कई लोग, जो उस हमले से जुड़े थे, नमालूम लोगों के हाथों मारे गए. मिसाल के तौर पर, खालिद शेख मोहम्मद, जो 9/11 का मास्टरमाइंड माना जाता है, को 2003 में पाकिस्तान से पकड़ा गया और अमेरिका को सौंप दिया गया. लेकिन उसके कई साथी, जैसे अम्मार अल-बलूची और रामज़ी बिन अल-शिबह, या तो गायब हो गए या संदिग्ध हालात में मारे गए.

पाकिस्तान की धरती पर ISI और आतंकी तंजीमों के बीच गहरे रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं. कई बार ऐसा देखा गया कि जब कोई मुलजिम या उसका करीबी पकड़ा जाने वाला होता था, तो उसे "ठिकाने" लगा दिया जाता था ताकि सच सामने न आए. ये सिलसिला 9/11 के बाद से लेकर आज तक चल रहा है. मुंबई हमले के मामले में भी हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी जैसे लोग पाकिस्तान में आज़ाद घूम रहे हैं, लेकिन हमले के कुछ मुल्ज़िम नामालूम अफ़राद के हाथों पाकिस्तान में ही मारे गए हैं.जबकि 

हाफिज सईद और जकी-उर-रहमान लखवी को लेकर भारत और दुनिया उनकी सजा की मांग कर रही है. राना के भारत आने से क्या बदलेगा?राना का भारत आना एक बड़ी कामयाबी है. NIA को उम्मीद है कि उसकी पूछताछ से लश्कर और ISI के बड़े हैंडलर्स का पर्दाफाश होगा. मेजर इकबाल और मेजर समीर अली जैसे नाम, जो इस हमले में शामिल थे, उनकी साजिश की और परतें खुल सकती हैं. राना ने हेडली के साथ 231 बार फोन पर बात की थी, जब हेडली मुंबई की रेकी कर रहा था. उसकी ट्रैवल हिस्ट्री - दिल्ली, आगरा, कोच्चि, अहमदाबाद भी जांच के दायरे में आएगी.

लेकिन सवाल ये भी है कि क्या राना सच बोलेगा? या फिर वो चुप्पी साध लेगा, जैसा कि कई आतंकी करते हैं? और अगर वो बोलता भी है, तो क्या पाकिस्तान पर दबाव डाला जा सकेगा कि वो हाफिज सईद जैसे लोगों को सौंपे? ये एक लंबी लड़ाई है, और राना का प्रत्यर्पण इसमें सिर्फ एक कदम है.हिंदुस्तान की जीत, लेकिन राह अभी लंबी है , राना का भारत आना हिंदुस्तान की कूटनीतिक ताकत को दिखाता है. 17 साल बाद, 26/11 के एक साजिशकर्ता को सजा देने का मौका मिला है. लेकिन डेविड हेडली, जो इस हमले का असली मास्टरमाइंड है, अभी भी अमेरिका में 35 साल की सजा काट रहा है और भारत को नहीं सौंपा गया.

अमेरिका ने उसकी डील को मानते हुए उसे बचाया, जबकि राना को भेज दिया. ये दोहरा मापदंड भी सोचने वाली बात है.फिर भी, ये पल हिंदुस्तान के लिए गर्व का फख्र का है. मुंबई के उस चायवाले, मोहम्मद तौफीक उर्फ छोटू चायवाला, ने कहा था, "राना को बिरयानी नहीं, सख्त सजा मिलनी चाहिए." उसकी बात में दम है. अब देखना ये है कि कोर्ट में राना के खिलाफ क्या सबूत पेश होते हैं और उसे क्या सजा मिलती है.

आखिरी बात ये है की तहव्वुर राना की कहानी एक सबक है, कि कानून का हाथ लंबा होता है, और देर सही, अंधेर नहीं. लेकिन ये भी सच है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग अभी खत्म नहीं हुई. पाकिस्तान में छुपे मुलजिम, आईएसआई का सपोर्ट, और विदेशों में बैठे साजिशकर्ता - इन सब से निपटने के लिए भारत सरकार को और मजबूत कदम उठाने होंगे.

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