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Health Day Special: मोबाइल फोन और बच्चों की आंखों की सेहत, बढ़ती स्क्रीन टाइम की समस्या और उपाय

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं. इन तकनीकी उपकरण की वजह से लोगों को संचार, शिक्षा, मनोरंजन और सामाजिक संपर्क जैसे कई लाभ मिलते हैं, लेकिन किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती है. मोबाईल फोन, कम्प्यूटर जैसे तकनीक ने हमें भले ही दूर बैठे परिजनों व मित्रों से बांधे रखा हो या हमारे कई कार्यों को आसान बनाया हो, लेकिन इनके अत्यधिक उपयोग से लोगों में शारीरिक समस्याएं देखी जा रही हैं. विशेष रूप से बच्चों में मोबाईल फोन पर लगातार गेम खेलने या रील विडियो देखने की वजह से उनमें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं देखी जा रही हैं. विशेष रूप से आंखों की सेहत पर इसका नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है. इस विषय से संबंधित अपने विचार साझा कर रहे हैं इंदौर स्थित कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. राजदीप जैन, जो कि जागरुक कर रहे हैं उन पेरेन्ट्स को जो अपने बच्चों में इन समस्याओं को लेकर संभल जाएं.

बढ़ते स्क्रीन टाइम के प्रभाव

आजकल बच्चों का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ता जा रहा है. चाहे वह कार्टून देखना हो, गेम खेलना हो, सोशल मीडिया पर समय बिताना हो, या ऑनलाइन क्लास अटेंड करना हो- बच्चे दिन का अधिकांश समय स्क्रीन पर ही बिताते हैं. इसके परिणामस्वरूप आंखों की समस्याएं, जैसे- डिजिटल आई स्ट्रेन या कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम, की घटनाएं बढ़ रही हैं. एक अध्ययन के अनुसार, 5 से 15 वर्ष की उम्र के बच्चे औसतन 6 से 8 घंटे तक स्क्रीन पर समय बिताते हैं, जो कि विशे द्वारा सुझाए गए सीमा से कहीं अधिक है. यह अत्यधिक स्क्रीन टाइम आंखों में कई प्रकार की समस्याओं का कारण बन रहा है, जिनसे बचने के लिए हमें जल्द ही कदम उठाने की आवश्यकता है.

डिजिटल आई स्ट्रेन और कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम

स्क्रीन पर लगातार समय बिताने से बच्चों में डिजिटल आई स्ट्रेन या कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम की समस्या उत्पन्न हो सकती है. इसके प्रभाव से बच्चों की आंखों में थकान, जलन, सूखापन, और दृष्टि में धुंधलापन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. निम्नलिखित समस्याएं सबसे आम हैं:

1. आंखों में थकान (Eye Strain): लगातार स्क्रीन देखने से आंखों की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है, जिससे आंखों में थकान, जलन और दर्द का अहसास होता है. यह समस्या विशेष रूप से तब बढ़ती है जब बच्चे लंबे समय तक बिना किसी ब्रेक के स्क्रीन पर समय बिताते हैं.

2. आंखों का सूखापन: स्क्रीन को देखने के दौरान बच्चे कम पलकें झपकाते हैं, जिससे आंखों में नैतिक मॉइस्चर की कमी हो जाती है. इस कारण आंखों में सूखापन और जलन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं.
3. निकट दृष्टि दोष (Myopia): स्क्रीन पर अधिक समय बिताने और बाहरी गतिविधियों का अभाव बच्चों में मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष का कारण बन सकता है. यह समस्या आगे चलकर गंभीर आंखों की बीमारियों का कारण बन सकती है.

स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण और उपाय

बच्चों में स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करना और उनकी आंखों की सेहत का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. कुछ सरल और असरदार उपायों से बच्चों की आंखों को बेहतर किया जा सकता है:

1. संतुलित आहार: बच्चों को हरी सब्जियां, गाजर, आंवला, और ड्राई फ्रूट्स जैसे अखरोट व बादाम देना चाहिए. ये खाद्य पदार्थ आंखों की रोशनी को मजबूत करने में मदद करते हैं और आंखों की सेहत को बेहतर बनाए रखते हैं.

2. आउटडोर एक्टिविटी: बच्चों को कम से कम 2 घंटे बाहर खेलने का समय देना चाहिए. यह न केवल शारीरिक सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि स्क्रीन से दूर रहने से आंखों की सेहत में भी सुधार होता है. इससे बच्चे को आंखों का नंबर बढ़ने से भी रोका जा सकता है.

3. स्क्रीन टाइम का नियंत्रण: अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार, 5 साल से छोटे बच्चों को दिन में केवल 1 घंटे स्क्रीन पर समय बिताना चाहिए, जबकि बड़े बच्चों के लिए यह सीमा 2 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए. यह सीमा बच्चों की आंखों और समग्र स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है.

4. 20-20-20 रूल का पालन करें: स्क्रीन पर काम करते समय 20-20-20 रूल का पालन करना चाहिए. इसका मतलब है कि हर 20 मिनट बाद, 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर कुछ देखें. इससे आंखों पर पड़ने वाला दबाव कम होता है और उनकी सेहत बेहतर रहती है.

5. पलकों को बराबर झपकाएं: स्क्रीन देखते समय अक्सर हम पलकों को कम झपकाते हैं, जिससे आंखों में सूखापन और जलन बढ़ जाती है. बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि वे पलकों को नियमित रूप से झपकाएं ताकि आंखों में नैतिक मॉइस्चर बना रहे.

6. आंखों की नियमित जांच: बच्चों को साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच जरूर करानी चाहिए. इससे किसी भी आंखों की समस्या का समय रहते पता चल सकता है और उसका सही इलाज किया जा सकता है.

7. नई तकनीकी दवाइयों और ग्लासेस का प्रयोग: आजकल कुछ नई दवाइयां और चश्मे उपलब्ध हैं, जो बच्चों की आंखों के नंबर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं. यह विशेष रूप से मायोपिया और अन्य दृष्टि दोषों के लिए लाभकारी हो सकते हैं.

आज के डिजिटल युग में बच्चों का मोबाइल फोन और स्क्रीन पर बढ़ता समय एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है. हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों की सेहत और उनकी आँखों की सुरक्षा के लिए सही कदम उठाएं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

डॉक्टर राजदीप जैन इंदौर स्थित कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में Consultant, Ophthalmologist हैं.  

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