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Recession Fear: क्या होती है आर्थिक मंदी! मंदी और इकॉनमिक स्लोडाउन में क्या है अंतर?

US- Euro Zone Recession Fear: फेडरल रिजर्व ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है. फेड के इस फैसले के चलते अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की संभावना बढ़ गई है.

Recession Fear: अमेरिकी अर्थव्यवस्था ( United States Economy) पर मंदी ( Recession) का साया मंडरा रहा है. रेटिंग एजेंसियों (Rating Agencies) से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ( IMF), वर्ल्ड बैंक ( World Bank) सभी कह चुके हैं अमेरिका में आने वाले दिनों में मंदी आ सकती है. यहां तक अमेरिकी राष्ट्रपति ( US President) जो बाइडेन ( Joe Biden) भी कह चुके हैं अमेरिका को मंदी का सामना करना पड़ सकता है भले ही वो छोटे अवधि के लिए हो. दुनियी की सबसे बड़ी और मजबूत माने जाने वाली अर्थव्यवस्था पर मंदी की मार की आशंका ने दुनिया को चिंता में डाल रखा है. क्योंकि इसका असर बाकी देशों पर भी पड़ेगा. 

फेड रिजर्व चाहता है मंदी!
अमेरिका में भारी महंगाई है. बल्कि महंगाई 40 सालों के उच्चतम स्तरों पर जा पहुंचा है. महंगाई पर लगाम लगाने, मांग घटाने, वेतन बढ़ोतरी पर नकेल कसने के लिए अमेरिका का सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ( Federal Reserve) लगातार ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है. और आने वाले दिनों में और भी ब्याज दरें बढ़ाई जा सकती है जिससे कर्ज महंगा होगा. कर्ज के महंगे होने से मांग (Demand) को घटाने में मदद मिलेगी तो महंगाई कम होगी. लेकिन फेड रिजर्व के इस फैसले के चलते अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की संभावना बढ़ गई है. कई जानकार तो ये भी मानते हैं कि खुद फेड रिजर्व चाहता है कि अमेरिका में मंदी आए जिससे मांग को घटाने में मदद मिलेगी और महंगाई कम होगी. 

क्या है मंदी? 
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार मंदी क्या होती है जिसे लेकर सभी चिंतित है. जब भी किसी देश के आर्थिक गतिविधि में महीनों, तिमाही और वर्षों तक गिरावट जारी रहती है तो उस अवस्था को मंदी काल कहा जाता है. जब किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद ( Gross Domestic Demand) यानि जीडीपी ( GDP) नेगेटिव ग्रोथ दिखलाने लगता है, बेरोजगारी बढ़ती जाती है, खुदरा सेल्स घटने लगती है, आय घटने लगती है और मैन्युफैक्चरिंग में लंबी अवधि तक गिरावट जारी रहती है तो माना जाता है कि वो देश मंदी के दौर से गुजर रहा है. सभी देशों को अपने जीवनचक्र के दौरान मंदी का सामना करना पड़ता है. क्योंकि सभी अर्थव्यवस्था लगातार तेजी की राह पर नहीं चल सकती है. भारत में आरबीआई ऐसी अथॉरिटी है जो मंदी काल की व्याख्या करती है. आरबीआई के मुताबिक जब किसी अर्थव्यवस्था में लंबी अवधि तक उत्पादन में गिरावट जारी रहे तो ये मंदी का दौर माना जाता है. 

मंदी और इकॉनमिक स्लोडाउन में क्या है फर्क? 
जब भी किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी में गिरावट आती है तो उसे आर्थिक मंदी कहा जाता है. जबकि देश के जीडीपी के ग्रोथ रेट में गिरावट को इकॉनमिक स्लोडाउन कहा जाता है. इसे उदाहरण के जरिए समझा जा सकता है. ये ठीक उसी प्रकार है जैसे किसी कर्मचारी के वेतन में कटौती करना और कम वेतन बढ़ोतरी किया जाना. जब वेतन काट लिया जाता है तो आय घट जाती है और जब वेतन में कम बढ़ोतरी होती है या वो वेतन बढ़ोतरी के ग्रोथ रेट की धीमी रफ्तार कहलाएगी. 

अमेरिका यूरो जोन में मंदी!
अब आपको बताते हैं क्यों ये कहा जा रहा है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था में मंदी आ सकती है. बात करें अमेरिका की तो 2021 में अमेरिका का जीडीपी 5.7 फीसदी रहा था. 2022 में इसके घटकर केवल 1.6 फीसदी रहने का अनुमान है. जबकि अगले वर्ष 2023 में जीडीपी घटकर केवल 1 फीसदी रह सकता है. यूरोजोन की बात करें तो 2021 में यूरो जोन का ग्रोथ रेट 5.2 फीसदी रहा था जो 2022 में घटकर 3.1 फीसदी रहने का अनुमान है. और आईएमएफ का मानना है कि 2023 में ये घटकर 0.5 फीसदी रह सकता है. यूरो जोन में जर्मनी, इटली जैसे देशों का ग्रोथ रेट नेगेटिव में रहने का अनुमान है यानि इन देशों को मंदी का सामना करना पड़ सकता है.  

चीन और भारत के ग्रोथ रेट में कमी 
अमेरिका और यूरोपीय देशों पर मंदी छाने का खतरा है. जबकि चीन और भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो सकती है. 2021 में चीन का जीडीपी 8.1 फीसदी रहा था. 2022 में 3.2 फीसदी रहने का अनुमान है. 2023 में चीन का जीडीपी 4.4 फीसदी रह सकता है. वहीं भारत का जीडीपी 2021 में 8.7 फीसदी रहा था. 2022 में 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है तो 2023 में 6.1 फीसदी रहने के आसार हैं. यानि चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाओं को इकॉनमिक स्लोडाइन का सामना करना पड़ रहा है. 

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