Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद महाराज से जानें साधु और संत का प्रमुख जीवन उद्देश्य क्या होना चाहिए?
Premanand Ji Maharaj Anmol Vachan: प्रेमानंद जी महाराज के सुविचार आपके जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं. महाराज जी से आज जानते हैं कि साधु संत के जीवन उद्देश्य क्या होना चाहिए?

Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमनांद जी महाराज जी का मानना है साधु और संत के जीवन प्रमुख उद्देश्य है संयम, परमात्मा प्राप्ति. संयम इसलिए सबसे पहले रखते हैं क्योंकि परमात्मा प्राप्ति की लालसा और परामात्मा प्राप्ति तभी होती है जब सदाचार जीवन हो. अगर अपवित्र जीवन है,मनमानी जीवन है तो परामात्मा प्राप्ति का लक्ष्य हो नहीं सकता है.
परामात्मा प्राप्ति के लक्ष्य की पूर्ति केवल सदाचारी को होती है.जो अपने मन को, इंद्रियों को, भोगों से हटाकर प्रभु में लगाता है, मन को नियंत्रण में रखता है, अपने चरित्र को पावन रखता है, विचार पावन रखता है. एक क्षण भी परामात्मा के बिना मन में किसी और विचार को नहीं आने देता है. वहीं साधु परमात्मा प्राप्ति के योग्य है. अपने प्रति किए गए तरस्कार को सह जाना, अपमान को शांति पूर्वक सह जाना.जो लोक, परलोक, जो सबको मान दे और खुद अमानी रहे, उसे इसी जन्म में भगवान की प्राप्ति होती है.
जो उत्साह के साथ भगवान के नाम का चिंतन करता हो, भगवान का नाम जप करता है, कीर्तिन करता हो जैसे प्यासे को पानी मिल गया हो इस प्रकार भगवान का नाम जप करता हो. जो अमृत के समान भगवान का नाम जप कर रहा हो, नाच रहा हो, गा रहा हो वहीं साधु है. जैसे नशे में रहने वाले की नशे में आसक्ति होती है वैसे ही साधु की आसक्ति अपने प्रभु में होती है. भगवान के चरित्र कहने और सुनने में उसे आसक्ति हो, लालायित रहें अगर यह लक्षण है तो निश्चित ही हमारे अंदर भगवत प्राप्ति की योग्यता आ जाएगी और उसके हद्वय में प्रेम आ जाएगा और यहीं एक साधु के लक्षण हैं.
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