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'अब इनका कोई मतलब नहीं', राज्यपाल के खिलाफ दाखिल अपनी याचिकाओं पर बोली केरल सरकार, जानें SC ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में कहा था कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबे समय तक रोक कर नहीं रख सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (25 जुलाई, 2025) को केरल सरकार को राज्यपाल के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को वापस लेने की अनुमति दे दी है. विधानसभा में पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ राज्य सरकार ने याचिकाएं दायर की थीं.

न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच के सामने केरल सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट के के वेणुगोपाल ने याचिका वापस लेने का अनुरोध किया और कहा कि तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में हाल में दिए गए फैसले के मद्देनजर यह मुद्दा निरर्थक हो गया है. इसके बाद बेंच ने राज्य सरकार को याचिकाएं वापस लेने की अनुमति दे दी.

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि विधेयकों को मंजूरी देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को कहा था कि वह इस बात पर गौर करेगा कि विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए समयसीमा तय करने के संबंध में तमिलनाडु की एक याचिका पर हाल में दिए उसके फैसले में केरल सरकार की याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे भी आते हैं या नहीं.

8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल आरएन रवि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल लंबे समय तक विधेयकों को रोक कर नहीं रख सकते हैं. साथ ही कोर्ट ने विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए राज्यपाल के लिए समय-सीमा भी निर्धारित की थी. कोर्ट ने कहा था, 'राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चित समय तक रोके नहीं रह सकते. वह सरकार को दोबारा विचार के लिए विधेयक भेज सकते हैं, लेकिन अगर विधानसभा विधेयक को पुराने स्वरूप में वापस पास करती है, तो राज्यपाल के पास उसे मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं. वह उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के नाम पर लटकाए नहीं रह सकते.'

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की याचिका पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए दूसरे दौर में राष्ट्रपति के विचार के लिए 10 विधेयकों को रोककर रखने के फैसले को अवैध और कानून के लिहाज से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया था.

कोर्ट ने पहली बार यह निर्धारित किया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल की ओर से उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर उस तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना चाहिए, जिस दिन विधेयक उन्हें भेजा गया था. केरल ने अपने मामले में इसी तरह के निर्देश देने का अनुरोध किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में केरल के तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की ओर से राज्य विधानसभा में पारित विधेयकों पर दो साल तक कोई फैसला न लेने पर नाराजगी व्यक्त की थी. आरिफ मोहम्मद खान वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 26 जुलाई को केरल की उस याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दी गई.

केरल सरकार ने आरोप लगाया कि आरिफ मोहम्मद खान ने कुछ विधेयक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे थे और उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है. याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और केरल के राज्यपाल के सचिवों को नोटिस जारी किए. राज्य ने कहा था कि उसकी याचिका राज्यपाल की ओर से सात विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने से संबंधित है, जिन पर उन्हें स्वयं विचार करना था. केरल सरकार ने कहा था कि सातों विधेयकों में से किसी का भी केंद्र-राज्य संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है.

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