Premanand Ji Maharaj: क्या अपनों के प्रति मोह और आसक्ति भजन मार्ग में बाधा हैं? जानें प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल वचन
Premanand Ji Maharaj Anmol Vachan: प्रेमानंद जी महाराज के सुविचार आपके जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं. जिंदगी में सफल बनने के लिए यहां पढ़ें उनके अनमोल वचन और जानें अपनों के प्रति मोह भजन में बाधा हैं

Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज जी का मानना है कि एक मन है और वो अगर वो बहुत जगह प्यार किया हुआ है तो वह भगवान से प्यार नहीं कर पाएगा. अगर आपको अपनो के प्रति मोह है तो और आप उनके नहीं छोड़ सकते हैं तो सब में प्रभु को देख लो, बेटे से प्रेम करते है तो बेटे में भगवान को देख लो. माता-पिता में भगवान बैठे हैं. भगवान को देख कर किया गया व्यवहार भक्ति है. भगवान से विमुख होकर किया गया व्यवहार भक्ति नहीं है.
सब का मोह हटा लो और भगवान के चरणों में समर्पित कर दो. मोह और त्याग हटाना बहुत कठिन है. अगर त्याग नहीं कर सकते तो उसमें जोड़ दें. जब हम चराचर जगत में भगवान का भाव कर सकते हैं तो हम अपने परिवार में क्यों नहीं. क्योंकि भगवान सब जगह है. हमें अपने भाव बदलने हैं, भक्ति भाव प्रधान होती हैं. पुत्र में भगवान, पत्नी में भगवान. व्यवहार वैसे ही करना है जैसे सबसे करते हैं पर भाव रखना है भगवान का. मोह का त्याग करना कठिन है, लेकिन मोह को अगर भक्ति बना लेने से आप जीत सकते हैं.
शरीर की आसक्ति कैसे टूटे?
अगर शरीर की आसक्ति को तोड़ना चाहते हैं तो नाम जप करें और बड़ों की सेवा करें. सेवा से आसक्ति का नाश होता है. पति की सेवा, सास ससुर की सेवा, पुत्र परिवार की सेवा, पशु पक्षी की सेवा, सेवा से शरीर पवित्र होता है. मलिन स्वभाव का परिचय है देह आसक्त होगा और निर्मल स्वभाव का परिचय है देह राह का त्याग किए हुए है. देह राग का त्याग करने के लिए शुद्ध ज्ञान हो या शुद्ध भक्ति. जैसे सांप को अपनी केचुली से प्यार नहीं होता वैसे ही ज्ञानी पुरुष को अपने शरीर से कोई प्रेम नहीं होता. ज्ञान प्राप्त करना कठिन है तो हम भक्ति से शुरु करते हैं भगवान की सेवा में, समाज की सेवा में अगर हम अपने शरीर को लगाते हैं तो हमारा शरीर पवित्र होगा. शरीर में हमारी आसक्ति है तो हमारी आसक्ति पवित्र होने लगेगी, पवित्र आसक्ति आत्मा में होती है भगवान में होती है. अपवित्र आसक्ति शरीर में होती है, भोगों में सगे संबंधियों में होती है. नाम जप, सेवा इन दो के द्वारा हम आसक्ति का परिवर्तन कर सकते हैं.
Premanand Ji Maharaj: आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हो, जानें प्रेमानंद जी महाराज से उनके अनमोल वचन
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