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बिना ड्राइवर के दौड़ती रही तेज रफ्तार ट्रेन, ये फिल्मी नहीं असली बात है! जानिए फिर उसे कैसे रोका गया

अब तक बिना ड्राइवर की ट्रेन का किस्सा आपने फिल्मों में ही देखा होगा. लेकिन आज हम आपको ऐसी एक सच्ची घटना के बारे में बताते हैं, जब बड़ी मशक्कतों से बिना ड्राइवर की चलती ट्रेन को रोका गया था.

Unstoppable Train: बिना ड्राइवर की ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही है. अगर उसे रोका न गया भयानक हादसा होगा. तभी हीरो की एंट्री होती है और वो मशक्कत करते हुए किसी तरह ट्रेन को रोक देता है और ऐन मौके पर बड़ा हादसा होने से टल जाता है. कुछ ऐसा ही सीन आपने आज तक कई फिल्मों में देखा होगा. लेकिन आज हम आपको ऐसी एक सच्ची घटना के बारे में बताएंगे, जब एक ट्रेन 100 किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी तक बिना ड्राइवर दौड़ती रही थी. वाकई यह घटना बड़ी दिलचस्प थी. आइए पूरा घटनाक्रम जानते हैं.

ब्रेक लगाया लेकिन ट्रेन ने पकड़ ली  स्पीड

अमेरिका के उत्तर-पूर्व में ओहायो राज्य है. नील आर्मस्ट्रांग भी यहीं के रहने वाले थे. बात है 15 मई, 2001 की, जब यहां CSX नाम की मालगाड़ी चलाने वाली एक कम्पनी के रेलयार्ड में मागाड़ियों से सामना उतारना, चढ़ाना, इंजन, बोगियां, ट्रैक चेंज करना आदि काम चल रहा था. उस दिन क्रू में एक कंडक्टर, एक इंजीनियर और एक ब्रेकमैन, ये तीन ही लोग थे. 8888 नंबर के एक लोकोमोटिव इंजन के साथ 47 बोगियां थीं. जिसमें से ज्यादातर तो खाली थीं लेकिन कुछ बोगियों में लोहा-लक्कड़ भरा हुआ था और दो बोगियां किसी टॉक्सिक केमिकल से भरी थीं, जो पेंट और गोंद बनाने के काम आता है.

इंजीनियर दोपहर 12 बजे इंजन पर चढ़ता है और उसे दूसरे ट्रैक पर ले जाने के लिए एक स्विच दबाना होता था. वो ब्रेक दबाकर उतर कर स्विच चेंज करने चला गया. उसे लगा था कि स्विच बदलकर वह दोबारा ट्रेन में चढ़ जाएगा. लेकिन यह क्या...! उसने देखा कि ट्रेन की स्पीड तो बढ़ रही है. घबराते हुए उसने ट्रेन में चढ़ने की कोशिश की लेकिन उसका पैर फिसल गया. इस सबके बीच ट्रेन 20 किमी/घंटा की रफ़्तार पकड़ चुकी थी. इंजीनियर लगभग 80 फीट तक इंजन की रेलिंग से लटके हुए घिसड़ने के बाद उसने रेलिंग छोड़ दी.

ट्रेन पर चढ़ने की कोशिश करना मौत को दावत देना था

ब्रेकमैन और कंडक्टर ने जब यह सब देखा तो आनन-फानन में अपनी कार ट्रेन के साथ-साथ दौड़ा दी. ट्रेन की स्पीड धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी. कुछ ही देर में इंजन 40 से 50 किमी/घंटा की रफ्तार से दौड़ने लगा था. ब्रेकमैन और कंडक्टर ट्रेन से पहले अगली क्रॉसिंग पर पहुंचे लेकिन अब तक ट्रेन इतनी तेज स्पीड पकड़ चुकी थी कि उस पर कूदने की कोशिश करना मौत को दावत देने जैसा था.

ट्रेन रोकने की खूब की कोशिश

बिना किसी ड्राइवर के ट्रेन 8888 आबादी भरे इलाकों और रोड क्रासिंग से बिना सायरन और सीटी बजाए भागी जा रही थी. ट्रेन को डीरेल करने की कोशिश भी गई, लेकिन रफ्तार तेज होने के कारण वो भी नहीं हो सका. इंजन के बाहर की तरफ लगे इमरजेंसी फ्यूल कट ऑफ बटन पर गोलियां भी दागी गई. लेकिन काम बन न सका.

80Km/Hr की स्पीड पर इंजन को मालगाड़ी से जोड़ा

फिर अधिकारियों को एक तरीका सूझा और डनकर्क नाम की जगह पर खड़ी एक अन्य मालगाड़ी के ड्राइवर को तुरंत सूचना दी गई. प्लान के मुताबिक, ड्राइवर इंजन ने अपनी रेल से डीकपल कर 8888 का पीछा किया और 80 किलोमीटर की स्पीड पर इंजन को मालगाड़ी की आखिरी बोगी से जोड़ दिया. आमतौर पर यह काम अधिकतम 6 से 7 किमी/घंटे की स्पीड तक ही किया जा सकता है. 

पीछे से जुड़ा दूसरा इंजन

8888 के पीछे से जुड़े इंजन ने धीरे-धीरे ब्रेक लगाने शुरू किए. लेकिन दूसरी तरफ आगे का इंजन पूरी ताकत से ट्रेन को दूसरी दिशा में खींच रहा था. लिहाजा, ट्रेन रुकी तो नहीं पर उसकी स्पीड कम हो गई. हॉसफ़ील्ड, जो अपनी कार से ट्रेन का पीछा कर रहे थे, केंटन नाम की क्रासिंग पर ट्रेन से पहले पहुंच गए. उन्होंने देखा कि ट्रेन पहले से धीमी हो चुकी थी, लेकिन अब भी उसकी रफ्तार 20 किमी/ घंटा थी. हॉसफ़ील्ड ने जैसे तैसे इंजन पर चढ़कर जल्दी से ब्रेक लगाए और ट्रेन धीमे-धीमे चलकर रुक गई. यह पूरा घटनाक्रम ढाई घंटे तक चला था और तब तक ट्रेन 106 किलोमीटर दूर पहुंच चुकी थी.

क्या हुई थी गलती?

हॉलीवुड ने इसपर एक फिल्म भी बनाई थी. घटना की जांच में पता चला था कि ब्रेक लगाते समय इंजीनियर गलती हुई थी. दरअसल, ट्रेन के इस मॉडल में ब्रेक लगाने और स्पीड बढ़ाने का लीवर एक ही था. बस एक बटन दबाकर इन्हे बदला जा सकता था. इंजीनियर ने जब ट्रेन का लीवर खींचा था, तब वह एक्सेलरेशन मोड में था. किस्मत से इस मामले में कोई हादसा नहीं हुआ.

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