कौआ दिन लेकर आया: एक आदमी था जिसके पास दिन था
दिन वाले आदमी के पास बहुत सारे नौकर-चाकर थे. उसके एक बेटी भी थी. हालांकि उसकी बेटी बड़ी हो चुकी थी फिर भी उसका पिता उस पर कड़ी नजर रखता था और उसको एक कोने वाले कमरे में अकेले रखता था.

कौआ दिन लेकर आया
सुषमा गुप्ता
यह उन दिनों की बात है जब न दिन था, न सूरज था, न चांद था और न तारे थे. चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. रैवन (पक्षी) एक गांव में गया और वहां के लोगों से उसने पूछा कि क्या वे कुछ देख सकते थे? लोगों ने कहा कि नहीं वे कुछ नहीं देख सकते थे क्योंकि सब जगह अंधेरा ही अंधेरा था. पर उन्होंने रैवन को यह भी बताया कि वहां एक आदमी था जिसके पास दिन था. मगर वह आदमी उस दिन को एक बक्से में बंद करके रखता था और बाहर नहीं निकालता था.
उस गांव के लोग कोई भी काम नहीं कर पाते थे क्योंकि वहां हमेशा ही अंधेरा रहता था. रैवन ने पता लगाया कि वह दिन वाला आदमी कहां रहता था और उसके घर पहुंच गया. इस आदमी के पास केवल दिन ही नहीं था बल्कि सूरज चांद और तारे भी इसकी मुठ्ठी में रहते थे. रैवन उसके घर में घुस गया और उसका सारा घर देख कर बाहर निकल आया. उसने सोच लिया था कि दिन को बाहर लाने के लिए उसको क्या करना है.
दिन वाले आदमी के पास बहुत सारे नौकर-चाकर थे. उसके एक बेटी भी थी. हालांकि उसकी बेटी बड़ी हो चुकी थी फिर भी उसका पिता उस पर कड़ी नजर रखता था और उसको एक कोने वाले कमरे में अकेले रखता था. उस लड़की के पास सफेद रंग की एक बाल्टी थी जिसमें से वह पानी पीया करती थी पर पानी पीने से पहले वह हमेशा उस पानी की अच्छी तरह जांच कर लिया करती थी कि उस पानी में कहीं कुछ है तो नहीं. उसके पिता के नौकर हमेशा उस बाल्टी में पानी भर जाया करते थे.
एक दिन रैवन ने अपने आपको सीडर के एक पत्ते में बदला और पानी की उस बाल्टी में बैठ गया जो उस आदमी के नौकर उसकी बेटी के लिए ले कर जा रहे थे. उस लड़की ने यह पहले ही देख लिया था कि उस बाल्टी में कुछ पड़ा था सो उसने उस बाल्टी का सारा पानी पीने से पहले ही फेंक दिया.
रैवन फिर अपने असली रूप में आ गया और अगले दिन वह फिर से सीडर की एक बहुत ही छोटी सी पत्ती के रूप में पानी की उसी बाल्टी में बैठ गया जिसको उस आदमी के नौकर उसकी बेटी के कमरे में लिए जा रहे थे. इस बार उस लड़की को पानी में कुछ भी दिखाई नहीं दिया सो वह उस बाल्टी का सारा पानी पी गई. इस तरह रैवन उसके पेट में घुस गया और उस लड़की को बच्चे की आशा हो गई.
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(सुषमा गुप्ता की कहानी का यह अंश जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)
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