क्या राज्यपाल के बिना कोई भी कानून नहीं बना सकते हैं राज्य? जान लीजिए जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा लंबित रखे गए विधेयकों को पारित मान लिया. इस तरह यह पहली बार है जब किसी राज्य में कोई विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बिना ही पास हो गया और कानून बन गया.

Tamil Nadu Governor Case: तमिलनाडु में हाल ही में सामने आए राज्यपाल बनाम राज्य सरकार मामले ने देश की राजनीति में भूचाल लाकर रख दिया है. यहां कुछ विधेयकों को लंबित रखने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और अदालत ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखने की समयसीमा निर्धारित कर दी. इस फैसले की जद में राष्ट्रपति भी आए, जिसको लेकर बवाल मचा हुआ है और देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को यह तक कहना पड़ा कि अदालतें देश के राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विधेयकों को लंबित रखने की समयसीमा निर्धारित करते हुए कहा था कि अगर राष्ट्रपति के पास कोई विधेयक पहुंचता है तो उनके पास भी इस पर फैसला लेने के लिए तीन महीने का वक्त होगा. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा बीते कुछ सालों में लंबित रखे गए विधेयकों को पारित मान लिया. इस तरह यह पहली बार है जब किसी राज्य में कोई विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बिना ही पास हो गया और कानून बन गया. ऐसे में सवाल यह है कि क्या राज्यपाल के बिना राज्य सरकार कोई भी कानून नहीं बना सकती हैं? विधेयकों पर राज्यपाल की मंजूरी क्यों जरूरी होती है? आइए जानते हैं...
क्या होती है राज्यपाल की भूमिका
भारत के संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा. राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाएगी, जो कि एक संवैधानिक पद है और राज्य व केंद्र के बीच संबंध बहुत हद तक राज्यपाल पर ही निर्भर करते हैं. राज्यपाल किसी भी राज्य का कार्यकारी प्रमुख होता है और समस्त कार्यपालिका की शक्ति उसी में निहित होती है. यहां तक कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक उनकी सहमति के अधीन होता है, जिसका साफ मतलब है कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक पर राज्यपाल की मंजूरी जरूरी होती है.
कैसे बनता है कानून?
किसी भी राज्य में किसी कानून के बनने से पहले उस विधेयक को राज्य विधानसभा में पारित होना आवश्यक है. राज्य विधानसभा में पारित विधेयक को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है. अगर राज्यपाल उस विधेयक पर हस्ताक्षर कर देता है तो उसे पास मान लिया जाता है और विधेयक कानून की शक्ल ले लेता है. हालांकि, राज्यपाल के पास किसी विधेयक को विचार के लिए रोकने का भी अधिकार होता है. राज्यपाल किसी विधेयक मंजूरी दिए बिना वापस भी लौटा सकते हैं. हालांकि, अगर विधेयक दूसरी बार विधानसभा में पारित होकर राज्यपाल के पास पहुंचता है तो राज्यपाल को उस पर हस्ताक्षर करने होते हैं. वहीं राज्यपाल किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज सकते हैं. ऐसा इस स्थिति में होता है जब राज्यपाल को लगता है कि इस विधेयक के केंद्र सरकार के कानून या नीति के विपरीत होने की संभावना है.
तो क्या बिना राज्यपाल नहीं बन सकता कानून?
हमारे देश के संविधान में किसी भी विधेयक को कानूनी मंजूरी देने के लिए राज्यपाल की अनुमति जरूरी की गई है. हालांकि, हाल में सामने आए तमिलनाडु प्रकरण में ऐसा पहली बार हुआ है जब राज्यपाल की अनुमति के बिना ही विधेयकों को पारित माना गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि राज्यपाल बिना किसी ठोस वजह के विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो राज्य सरकार को अदालत में चुनौती देने का अधिकार प्राप्त है.
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