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आखिर कैसे काम करती है CBI, कब हुई थी शुरुआत और क्यों जांच एजेंसी पर लगातार उठते रहे सवाल?

CBI History: देश में सीबीआई को सबसे बड़ी और विश्वसनीय एजेंसी माना जाता है, यही वजह है कि हर केस में सीबीआई जांच की मांग की जाती है. खुद से सीबीआई किसी भी केस में हाथ नहीं डाल सकती है.

CBI History: सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी सीबीआई (CBI) ने अपने 60 साल पूरे कर लिए हैं. सीबीआई को भारत की सबसे बड़ी एजेंसी माना जाता है, जो हर तरह के मामलों की जांच करती है. सीबीआई के 60 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस केंद्रीय जांच एजेंसी की जमकर तारीफ की और इसे न्याय का ब्रांड तक बता दिया, साथ ही इसके व्यापक होते दायरे का भी जिक्र किया. आज हम आपको सीबीआई के पूरे इतिहास के बारे में बताएंगे, साथ ही बताएंगे कि इस एजेंसी ने देश के किन बड़े मामलों को सुलझाया और कैसे लोगों को न्याय दिलाने का काम किया. इसके अलावा सीबीआई को लेकर उठने वाले सवालों का भी जिक्र करेंगे. 

कब और क्यों हुई सीबीआई की शुरुआत?
सीबीआई की शुरुआत सरकारी भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को रोकने के लिए की गई थी. साल 1941 में इसे स्पेशल पुलिस स्टेब्लिशमेंट के तौर पर स्थापित किया गया था. इसके बाद हर तरह के पेचीदा केस इस एजेंसी को दिए जाने लगे. सीबीआई को 1965 में कई तरह के मामलों की जांच के अधिकार दिए गए. सीबीआई को इंटरपोल के साथ सीधे बातचीत का अधिकार भी दिया गया है. अगर इंटरपोल को किसी अंतरराष्ट्रीय क्राइम की जांच करनी है तो उसे सीबीआई से संपर्क करना होगा.

सीबीआई को दिल्ली स्पेशल पुलिस स्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 की धारा 2 सिर्फ केंद्र शासित प्रदेशों में अपराधों की जांच करने का अधिकार देती थी, हालांकि, एक्ट की धारा 5(1) के तहत बताया गया कि रेलवे क्षेत्रों और राज्यों सहित अन्य क्षेत्रों में अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया जा सकता है, बशर्ते राज्य सरकार अधिनियम की धारा 6 के तहत सहमति प्रदान करे. यानी राज्य की इजाजत लेना जरूरी है.  

हर केस में क्यों होती है सीबीआई जांच की मांग?
आपने आमतौर पर ये देखा और सुना होगा कि ज्यादातर मामलों में पीड़ित न्याय पाने के लिए सीबीआई जांच की मांग करते हैं. सीबीआई जांच को लेकर कई लोग प्रदर्शन भी करते हैं, जिसके बाद केंद्र कई बार एजेंसी को जांच के निर्देश देती है. अब सवाल ये है कि आखिर सीबीआई जांच पर लोगों को इतना भरोसा कैसे होता है? इसका जवाब ये है कि सीबीआई जांच का अपना एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर यानी SOP होता है. उसी के तहत सीबीआई अधिकारी काम करते हैं. इसके अलावा सभी मामलों की जांच के लिए सुपरविजन ऑफिसर भी होते हैं. अगर केस में कुछ कमी दिखती है तो ऑफिसर दोबारा जांच के निर्देश देता है. सभी मामलों की जांच के लिए सीबीआई में मल्टीलेयर सुपरविजन को इस्तेमाल किया जाता है. सुपरविजन लेयर दो से लेकर नौ अधिकारियों तक होती है. 

कैसे होती है सीबीआई जांच 
देश में सीबीआई को सबसे बड़ी और विश्वसनीय एजेंसी माना जाता है, यही वजह है कि हर केस में सीबीआई जांच की मांग की जाती है. खुद से सीबीआई किसी भी केस में हाथ नहीं डाल सकती है. सीबीआई केंद्र सरकार के तहत काम करती है. यानी केंद्र सरकार के अप्रूवल के बाद ही कोई भी केस सीबीआई को ट्रांसफर होता है. इसके अलावा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी अधिकार है कि वो सीबीआई को जांच का आदेश दे. देश में कई ऐसे मामले देखे गए हैं, जब कोर्ट ने सीधे सीबीआई जांच के आदेश दिए. 

सीबीआई से सुझाव लेती है सरकार
जब भी किसी राज्य में कोई हाई प्रोफाइल मामला सामने आता है तो राज्य सरकार की तरफ से सीबीआई जांच की सिफारिश की जाती है, इसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से सीबीआई से बातचीत की जाती है और इस पर फैसला लिया जाता है. कई मौकों पर सीबीआई केंद्र सरकार को ये सुझाव देती है कि सिफारिश किए गए केस में इतना दम नहीं है, साथ ही लंबित मामलों का हवाला देते हुए भी कई बार केस ठुकरा दिए जाते हैं. इसी तरह साल 2015 में सीबीआई की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को कहा गया कि वो अब और व्यापम के मामलों की जांच नहीं कर सकती है, क्योंकि उनके पास स्टाफ की कमी है.

राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप
सीबीआई पर देशभर के लोग भरोसा करते हैं, लेकिन इसके राजनीतिक दुरुपयोग और राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं. हर सरकार में इस जांच एजेंसी के दुरुपयोग के आरोप लगते आए हैं. यूपीए शासनकाल के दौरान टू-जी घोटाला और बोफोर्स घोटाले जैसे मामलों में सीबीआई की छवि काफी धूमिल हुई थी. इसके बाद सीबीआई को पिंजरे में रहने वाला तोता भी कहा गया था. 

वहीं अगर मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल की बात करें तो कई मामलों में सीबीआई पर सवाल उठाए गए. जिनमें हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला, ममता के मंत्रियों का शारदा चिटफंड मामले में फंसना, शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी नेता मनीष सिसोदिया पर शिकंजा, लालू परिवार के खिलाफ जांच और ऐसे ही कई मामले शामिल हैं. इसी का नतीजा है कि केंद्र सरकार पर सीबीआई-ईडी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए 14 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. 

सीबीआई ने सुलझाए ये बड़े केस
एलएन मिश्रा केस: सीबीआई ने देश के तमाम बड़े मामलों को सुलझाने का काम किया है. जिनमें 1975 बम ब्लास्ट में मारे गए भारत के रेल मंत्री एलएन मिश्रा का मामला भी शामिल है. पुलिस के बाद जब ये मामला सीबीआई को सौंपा गया तो सीबीआई ने आरोपियों को गिरफ्तार किया और कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया. 

संत हरचंद सिंह लोंगोवाल मर्डर केस: पंजाब के लोगों के हितों को लेकर राजीव गांधी के साथ समझौता करने वाले संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की हत्या का मामला भी सीबीआई ने सुलझाया था. लोंगोवाल शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष थे. जिनकी 1985 में एक सभा के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. सीबीआई ने जांच कर ये पता लगाया कि पंजाब के उग्रवादी संगठनों को राजीव गांधी और लोंगोवाल के बीच हुआ समझौता पसंद नहीं आया, जिसके चलते उनकी हत्या कर दी गई. 

हर्षद मेहता केस: स्टॉक मार्केट के बिग बुल के नाम से मशहूर हुए हर्षद मेहता का केस भी सीबीआई को ही सौंपा गया था. मेहता ने बड़ी ही चालाकी से बैंकिंग सिस्टम का फायदा उठाया और लोन लेकर पैसे शेयर मार्केट में लगाने शुरू कर दिए. जिसके बाद शेयर मार्केट का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया है. बाद में पता चला कि एक स्टॉक ब्रोकर जिसका नाम हर्षद मेहता है उसने 4 हजार करोड़ रुपये का घोटाला कर दिया है. 1992 का ये घोटाला आज होता तो करीब 50 हजार करोड़ से ज्यादा का माना जाता. सीबीआई जांच के बाद हर्षद मेहता को दोषी करार दिया गया. उसके खिलाफ करीब 700 मामले दर्ज हुए थे. 

इन सभी बड़े मामलों के अलावा सीबीआई ने गोल्डन टेंपल में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले जनरल अरुण कुमार वैद्य की हत्या का मामला, पश्चिम बंगाल में पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप केस और टीपू सुल्तान की तलवार चोरी जैसे कई मामलों को भी सुलझाया था. 

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