लैब में बने हीरे सस्ते और दिखने में टॉप क्लास, फिर भी खदानों से क्यों निकाले जा रहे डायमंड?
प्राकृतिक हीरे और लैब में महज कुछ ही हफ्तों में तैयार होने वाले हीरे में कोई खास फर्क नहीं होता, लेकिन फिर भी खदानों में हीरों को निकालने में मेहनत की जाती है क्यों? आइये जानते हैं

हीरे को रत्नों का राजा कहते हैं अपनी चमक और कठोरता के लिए ये सदियों से लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा है. प्राकृतिक रूप से बनने वाले हीरे पृथ्वी की गहराई में लाखों सालों में बनते हैं, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने लैब में हीरे बनाने की तकनीक विकसित कर ली है. लेकिन फिर भी खदानों में हीरे की खोज जारी है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब लैब में हीरे बनाए जा सकते हैं, तो खदानों में इतनी मेहनत क्यों की जाती है? आइये जानते हैं.
लैब में तैयार हो रहा हीरा
खदानों से हीरे निकालना पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है. खनन से जमीन, पानी और जंगल प्रभावित होते हैं. दूसरी ओर, लैब में बने हीरे पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक हैं और नैतिक रूप से बेहतर माने जाते हैं. फिर भी, खदानों से हीरे निकालना बंद नहीं हुआ, क्योंकि यह कई समुदायों और देशों के लिए रोजगार और आय का स्रोत है. हालांकि लैब में बने हीरे धीरे-धीरे बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं और ये प्राकृतिक हीरों से कम दामों में उपलब्ध हैं.
प्राकृतिक हीरा बना पहली पसंद
लैब में बने हीरे सस्ते होने के साथ-साथ गुणवत्ता में भी प्राकृतिक हीरों के बराबर हैं. भारत में इनकी मांग तेजी से बढ़ी भी है. फिर भी, खदानों से हीरे निकालने का काम पूरी तरह बंद होने की संभावना कम है. इसका कारण है प्राकृतिक हीरों की सांस्कृतिक मांग और खनन पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएं. इसके साथ ही प्रकृति की गहराई में सालों साल बनने के कार इनकी दुर्लभता इसे और अधिक मूल्यवान बना देती है. यही कारण है कि प्राकृतिक हीरा अभी भी लोगों की पहली पसंद बना है इसके साथ ही ये भावना और परंपरा से भी जुड़ा है.
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