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कितनी होती है एक रॉकेट की रफ्तार, जो यह बड़े-बड़े अंतरिक्ष यानों को लेकर उड़ जाता है?

Chandrayaan-3: 300 से भी अधिक वर्ष पहले, आइजैक न्यूटन नामक वैज्ञानिक ने तीन बुनियादी नियम बताए जो चीजों के चलने के तरीके का वर्णन करते हैं. रॉकेट के चलाने का सिद्धांत भी इन्ही नियमों पर आधारित है.

इसरो ने chandrayaan-3 के लॉन्चिंग रिहर्सल को पूरा कर लिया है. लॉन्चिंग से पहले रिहर्सल इसलिए किया जाता है, ताकि सभी यूनिट्स को उनका काम अच्छी तरह समझ आ जाए और लॉन्चिंग के समय कोई भी गलती होने की संभावना न रहे. चंद्रयान-3 को इसरो का बाहुबली रॉकेट LVM-3 अंतरिक्ष में लेकर जाएगा. आइए आज जानते हैं कि रॉकेट कैसे काम करता है और यह कितनी स्पीड से उड़ता है.

बड़े सैटेलाइट के लिए चाहिए बड़ा रॉकेट और अधिक प्रोपेलेंट

हम सेटेलाइट्स और अंतरिक्षयानों को टनों प्रोपेलेंट ले जाने वाले रॉकेटों पर रखकर अंतरिक्ष में प्रक्षेपित (Launch) करते हैं. प्रोपेलेंट रॉकेट को पृथ्वी की सतह से दूर जाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा देते हैं. आसान भाषा में कहें तो रॉकेट के ईंधन को प्रोपेलेंट कहा जाता है. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव के कारण, सबसे बड़े, सबसे भारी अंतरिक्ष यान को सबसे बड़े रॉकेट और सबसे अधिक प्रोपेलेंट की आवश्यकता होती है.

रॉकेट कैसे उड़ान भरता है?

300 से भी अधिक वर्ष पहले, आइजैक न्यूटन नामक वैज्ञानिक ने तीन बुनियादी नियम बताए जो चीजों के चलने के तरीके का वर्णन करते हैं. एक नियम कहता है कि प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है. रॉकेट कैसे काम करते हैं इसके पीछे यह सबसे महत्वपूर्ण विचार है.

ऐसे ऊपर उठता है रॉकेट

यदि आप किसी लॉन्च की तस्वीरें या वीडियो देखें, तो आप रॉकेट के नीचे से बहुत सारा धुआं बाहर निकलते हुए देखेंगे. दरअसल, यह और कुछ नहीं, बल्कि आग की लपटें, गर्म गैसें और धुआं है, जो रॉकेट के फ्यूल को जलाने से निकलता है. रॉकेट के इंजन से निकलने वाला धुंआ नीचे जमीन की ओर धकेलता है. वह क्रिया शक्ति है . जवाब में, रॉकेट जमीन से ऊपर उठते हुए विपरीत दिशा में चलना शुरू कर देता है. वह प्रतिक्रिया बल है.

एग्जॉस्ट से मिलता है पर्याप्त 'थ्रस्ट'

यह इतना आसान नहीं है. पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अभी भी रॉकेट को नीचे खींच रहा है. जब कोई रॉकेट फ्यूल या प्रोपेलेंट को जलाता है और एग्जॉस्ट को बाहर धकेलता है, तो इससे ऊपर की ओर एक बल उत्पन्न होता है, जिसे थ्रस्ट कहा जाता है . लॉन्च करने के लिए, रॉकेट को पर्याप्त प्रोपेलेंट की आवश्यकता होती है, ताकि रॉकेट को ऊपर धकेलने वाला जोर रॉकेट को नीचे खींचने वाले गुरुत्वाकर्षण बल से अधिक हो.

एक रॉकेट को कम से कम 17,800 मील (या 28646 किलोमीटर) प्रति घंटे की गति की आवश्यकता होती है और पृथ्वी के चारों ओर एक घुमावदार पथ में, वायुमंडल के अधिकांश भाग से ऊपर उड़ना होता है. यह सुनिश्चित करता है कि इसे वापस जमीन पर नहीं खींचा जाएगा. लेकिन आगे क्या होता है यह अलग है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां जाना चाहते हैं, यानी रॉकेट को कहां भेजना चाहते हैं.

पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करें

मान लीजिए कि आप एक उपग्रह (Satellite) लॉन्च करना चाहते हैं जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है. रॉकेट लॉन्च होगा और जब यह पृथ्वी से एक खास दूरी पर पहुंच जाएगा, तो यह उपग्रह को छोड़ देगा और उससे अलग हो जायेगा. सैटेलाइट कक्षा में रहता है क्योंकि इसमें अभी भी गति है. रॉकेट से मिली ऊर्जा इसे एक दिशा में आगे बढ़ाती रहती है. पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण इसे दूसरी दिशा में खींचता है. गुरुत्वाकर्षण और संवेग के बीच यह संतुलन सैटेलाइट को पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने में मदद करता है. 

इस उदाहरण से समझें

यह बिल्कुल वैसे ही है, जैसे आप किसी पत्थर या गेंद को धागे से बांधकर उसे घुमाएं. संवेग के कारण गेंद आपकी उंगली के चारो ओर घूमती है, इसके अलावा इसपर एक बल और लग रहा होता है. यह बाल रस्सी लगाती है, जो गेंद को एक आपकी उंगली से बांधे रखती है. सैटेलाइट भी ठीक इसी तरह आसमान में घूमते हैं, रॉकेट से मिली ऊर्जा के संवेग से वो पृथ्वी के चारों ओर घूमते हैं और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण उन्हे बांधे रखता है, यह उन्हे पृथ्वी की कक्षा से बाहर नहीं निकलने देता.

पास वाले सैटेलाइट की तेज तो दूर वाले की गति होती है धीमी

पृथ्वी के निकट परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का तीव्र खिंचाव महसूस होता है. कक्षा में बने रहने के लिए, उन्हें दूर परिक्रमा कर रहे उपग्रह की तुलना में तेज़ गति से यात्रा करनी होती है. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पृथ्वी से लगभग 250 मील (लगभग 400 किलोमीटर) ऊपर परिक्रमा करता है और करीब 17,150 मील (27590 किमी) प्रति घंटे की गति से यात्रा करता है. इसकी तुलना ट्रैकिंग और डेटा रिले सेटेलाइट्स से करें, तो ये सेटेलाइट्स 22,000 मील (35400 किलोमीटर) से अधिक की ऊंचाई पर परिक्रमा करते हैं और अपनी उच्च कक्षा को बनाए रखने के लिए बहुत धीमी गति से (लगभग 6,700 मील/107803 किमी प्रति घंटे) यात्रा करते हैं.

अन्य ग्रहों पर कैसे जाते हैं?

अगर बात करें अन्य ग्रह पर जाने की, तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण पर काबू पाने के लिए तेज़ गति से चलने वाले रॉकेट की आवश्यकता होती है. विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार, अगर किसी भी चीज को अंतरिक्ष में भेजना है तो उसकी स्पीड 11.2 किलोमीटर प्रति सेकंड होनी चाहिए, तभी वह चीज पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र को पार करके अंतरिक्ष में पहुंच सकती है. ऐसा करने के लिए लगभग 25,000 मील (करीब 40225 किमी) प्रति घंटे की गति बढ़ानी होगी. लेकिन उस ग्रह पर जाने के लिए पृथ्वी छोड़ने का सबसे अच्छा समय भी पता होना जरूरी होता है.

उदाहरण के लिए, मंगल और पृथ्वी लगभग हर दो साल में एक दूसरे से अपनी निकटतम दूरी पर आते हैं. मंगल पर जाने के लिए यह सबसे अच्छा समय है, क्योंकि वहां पहुंचने के लिए सबसे कम मात्रा में प्रोपेलेंट और समय की आवश्यकता होती है. लेकिन अभी भी रॉकेट को सही समय पर लॉन्च करने की आवश्यकता होती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंतरिक्ष यान और मंगल एक ही समय पर एक ही स्थान पर पहुंचें.

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About the author आकाश कुमार

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से ग्रेजुएशन की है। पत्रकारिता में लगभग 4 साल का अनुभव है। नॉलेज, लाइफस्टाइल और टेक्नोलॉजी के लेखन में दिलचस्पी है. ABP Live के लिए नॉलेज से जुड़ी खबरें लिखता हूं. खबरें अच्छी हों, रीडर्स को पढ़ने में अच्छा लगे और जो तथ्य हों वो सही हों, इसी पर पूरा जोर रहता है.

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