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त्रिदेव का रूप है ॐकार, जानें मंत्रों में सबसे अधिक प्रयोग होने वाले 'ॐ' का शास्त्रीय महत्व

मंत्रों में सबसे अधिक 'ॐ' का प्रयोग होता है. कहा जाता है कि ॐ में संपूर्ण वेद और ॐकार त्रिदेवों का रूप है. आइये शास्त्रीय प्रमाणों के साथ जानते हैं ॐ का महत्व और अर्थ.

हम सभी ने अवलोकन किया होगा कि जब भी हम कोई वेद अथवा बीज मंत्र पढ़ते हैं तो ज्यादातर मंत्र से शुरू होते हैं. भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली दो मंत्र हैं, पंचाक्षर (ॐ नमः शिवाय) और महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् – संक्षिप्त) दोनों ॐ से शुरु होते हैं. भगवान विष्णु के भी सबसे शक्तिशाली मंत्र, नारायण कवच (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) भी ॐ से शुरु होता है. आइये जानते हैं मंत्रों में सबसे अधिक प्रयोग होने वाले ॐ का अर्थ शास्त्रीय प्रमाणों से.

ॐकार का स्वरूप

अग्नि पुराण 372 के कथनानुसार, ॐ में सम्पूर्ण वेदों की स्थिति है. वाणी का जितना भी विषय है, सब प्रणव (ॐ) है, इसलिए प्रणव का अभ्यास करना चाहिए (यह स्वाध्याय के अन्तर्गत हैं). 'प्रणव' अर्थात् 'ओंकार' में अकार, उकार तथा अर्धमात्राविशिष्ट मकार है. तीन मात्राएं, भूः आदि तीन लोक, तीन गुण, जाग्रत् स्वप्न और सुषुप्ति – ये तीन अवस्थाएं तथा ब्रह्मा, विष्णु और शिव – ये तीनों देवता प्रणव रूप हैं. ब्रह्मा, विष्णु, स्कन्द, देवी और महेश्वर, श्री और वासुदेव, ये सब  क्रमशः ॐकार के ही स्वरूप हैं.

ॐकार मात्रा से रहित अथवा अनन्त मात्राओं से युक्त है. वह द्वैतकी निवृत्ति करने वाला तथा शिव स्वरूप हैं. वैसे ही मूर्द्धा में स्थित परब्रह्म भी भीतर अपनी ज्ञानमयी ज्योति छिटकाए रहता है. मनुष्य को चाहिए कि मन से हृदय कमल में स्थित आत्मा या ब्रह्म का ध्यान करें और जिह्वा से सदा प्रणव का जप करता रहे (यही 'ईश्वर प्राणिधान' है.) 'प्रणव' धनुष है, 'जीवात्मा' बाण है तथा 'ब्रह्म' उसका लक्ष्य कहा जाता है. सावधान होकर उस लक्ष्य का भेदन करना चाहिए और बाण के समान उसमें तन्मय हो जाना चाहिए. यह एकाक्षर (प्रणव) ही ब्रह्म है, यह एकाक्षर ही परम तत्त्व है, इस एकाक्षर ब्रह्म को जानकर जो जिस वस्तु की इच्छा करता हैं, उसको उसी की प्राप्ति हो जाती है. इस प्रणव का देवी गायत्री छन्द है, अन्तर्यामी ऋषि हैं, परमात्मा देवता हैं तथा भोग और मोक्ष की सिद्धि के लिए इसका विनियोग किया जाता है.  ऐसे ॐकार को जिसने जान लिया, वही मुनि है, दूसरा नहीं.

प्रणव की चतुर्थीमात्रा (जो अर्धमात्रा के नाम से प्रसिद्ध है) 'गान्धारी' कहलाती है. वह प्रयुक्त होने पर मूर्द्धा में लक्षित होती है. वही 'तुरीय' नाम से प्रसिद्ध परब्रह्म हैं. वह ज्योतिर्मय हैं. जैसे घड़े के भीतर रखा हुआ दीपक वहां प्रकाश करता है, वैसे ही मूर्द्धा में स्थित परब्रह्म भी भीतर अपनी ज्ञानमयी ज्योति छिटकाए रहता है. इसके अङ्ग- न्यास की विधि इस प्रकार है-'ॐ भूः अग्न्यात्मने हृदयाय नमः।' - इस मन्त्र से हृदय का स्पर्श करें. “ॐ भुवः प्राजापत्यात्मने शिरसे स्वाहा।” ऐसा कह कर मस्तक का स्पर्श करे. “ॐ स्वः सर्वात्मने शिखायै वषट्।” - इस मन्त्र से शिखा का स्पर्श करें.

अब कवच बताया जाता है- “ॐ भूर्भुवः स्वः सत्यात्मने कवचाय हुम्।” इस मन्त्र से दाहिने हाथ को अंगुलियों द्वारा बायीं भुजा के मूलभाग का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिनी बांह के मूलभाग का एक साथ स्पर्श करें. इसके बाद पुनः “ॐ भूर्भुवः स्वः सत्यात्मने अस्त्राय फट्।” कहकर चुटकी बजाए। इस प्रकार अंगन्यास करके भोग और मोक्ष की सिद्धि के लिए भगवान विष्णु का पूजन, उनके नामों का जप तथा उनके उद्देश्य से तिल और घी आदि का हवन करें, इससे मनुष्य की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं. (यही ईश्वर पूजन है; इसका निष्काम भावसे ही अनुष्ठान करना उत्तम है.).

जो मनुष्य प्रति दिन बारह हजार प्रणव का जप करता है, उसको बारह महीने में परब्रह्म का ज्ञान हो जाता है. एक करोड़ जप करने से अणिमा आदि सिद्धियां प्राप्त होती हैं, एक लाख के जप से सरस्वती आदि की कृपा होती है. भगवान विष्णु का यजन तीन प्रकार का होता है - वैदिक, तान्त्रिक और मिश्र. तीनों में से जो अभीष्ट हो, उसी एक विधि का आश्रय लेकर श्री हरि की पूजा करनी चाहिए. जो मनुष्य दण्ड की भांति पृथ्वी पर पड़कर भगवान को साष्टांग प्रणाम करता है, उसे जिस उत्तम गति की प्राप्ति होती है, वह सैकड़ों यज्ञों के द्वारा दुर्लभ हैं. जिसके आराध्य देव में पराभक्ति हैं और जैसी देवता में हैं, वैसी ही गुरु के प्रति भी हैं, उसी महात्मा को इन कहे हुए विषयों का यथार्थ ज्ञान होता है.

ॐ उच्चारण का महत्व

योग और ध्यान करते समय भी का उच्चारण किया जाता है. पूज्य श्री श्री रविशंकर जी के अनुसार सुदर्शन क्रिया (आत्मा और परमात्मा का मिलन) करने से पहले ॐ का लंबा उच्चारण करना आवश्यक है. सुदर्शन क्रिया करने के पश्चात सारी नकारात्मक ऊर्जा शरीर से बहार निकल आती है. ॐ के उच्चारण के बाद के अलग ही उर्जा हमारे शारीर में आ जाती है जिसे वर्णन करना बहुत कठिन है. ॐ में ही कई प्रकार के विज्ञान छुपे हुए हैं जिसे समझना सिर्फ महात्माओं के बस की बात है.

जब भी कभी किसी का मृत्यु का समाचार आता है उस समय भी हम “ॐ शांति शांति शांति” बोलते हैं. कई लोग तो आजकल RIP बोलते हैं अंग्रजी परंपरा से ग्रसित होने के कारण. हमारे वेद मंत्रों में ही वर्णन हैं की मृत्यु का समाचार सुनने के पश्चात क्या बोलें. यजुर्वेद 40.14 के अनुसार : –

वा॒युरनि॑लम॒मृत॒मथे॒दं भस्मा॑न्त॒ꣳ शरी॑रम्। ओ३म् क्रतो॑ स्मर। क्लि॒बे स्म॑र। कृ॒तꣳ स्म॑र ।

अर्थ:- इस समय गमन करता हुआ प्राण वायु अमृत (अमरता) रूप वायु को प्राप्त हो. यह देह अग्नि में हुत होकर भस्म रूप हो. हे प्रणव रूप ॐ / ब्रह्म (ब्रह्म स्वरूप आत्मा) बल्यावस्थादि मे किये कर्मों के स्मरण पूर्वक मैं लोकादि की कामना करता हूं. कृपया करके सभी सनातनी RIP के बदले ॐ शान्ति शान्ति शान्ति बोलें क्योंकि ये वेद मंत्र है.

ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप है ॐकार 

  • कई वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष में जो आवाज गूंजती हैं वह ॐकार की ही ध्वनि है. पूरी सृष्टि ॐमय है. स्वस्तिक की तरह ॐ भी एक प्रकार से चिन्ह हैं सनातन धर्म का.
  • देवी पुराण 5.1.23 अनुसार, ॐकार का 'अ' ब्रह्मा का रूप है, ‘उ’ विष्णु का रूप है, 'म्' भगवान् शिव का रूप है और अर्धमात्रा (चन्द्रबिन्दु) भगवती महेश्वरी का रूप है. ये उत्तरोत्तर क्रम से एक दूसरे से उत्तम है. 
  • इन सब प्रमाणों से स्पष्ट होता हैं की ॐ ही परमात्मा हैं, उसे शिव कह लें या विष्णू, या जगदम्बा, या फिर सूर्य या तो फिर गणपति. अद्वैत के अनुसार देखेंगे तो हम सबमें भी ॐ (परमात्मा) हैं, फर्क यही है कि हम माया से ग्रसित होने के कारण समझ नहीं पाते.
  • ऊँ या ऊँकार को समझने के लिए आपको मन और शरीर से सात्विक बनना पड़ेगा. योग और ध्यान पर भी जोर डालना होगा. ॐ ही अपको मुक्ति दिलाएगा.
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