अप्रैल के बाद क्यों पड़ने लगती है इतनी गर्मी...क्या सूरज के ताप में कोई बदलाव होता है?
मौसम के बदलाव का सबसे बड़ा कारण है धरती का अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुका होना. दरअसल, इसी वजह से सूरज की दूरी धरती के अलग-अलग हिस्सों पर निर्भर करती है.े

भारत एक ऐसा देश है जहां आपको एक ही समय में अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग मौसम का अनुभव हो सकता है. लेकिन उत्तर भारत में आपको कुछ महीने ठंड और कुछ महीने गर्मी का अहसास होता है. चलिए आज जानते हैं कि आखिर अप्रैल के खत्म होते-होते ऐसा क्या होता है कि हमें गर्मी का अहसास होने लगता है.
गर्मी का अहसास होने के मुख्य कारण
विज्ञान के नजरिए से देखें तो सर्दी से गर्मी का मौसम तब आता है जब सूर्य उत्तरी अक्षांश की ओर खिसकता है. दरअसल, सूरज की किरणे साल भर विषुवत रेखा पर लंबवत पड़ती हैं. विषुवत रेखा यानी शून्य डिग्री अक्षांश. जबकि, गर्मियां शुरू होते ही सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध पर 23.5 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर खिसक जाती हैं. यानी कर्क रेखा की ओर आ जाती हैं. इसे आम भाषा में सूर्य का उत्तरायण होना कहते हैं. इसी की वजह से उत्तरी गोलार्ध का तापमान बढ़ने लगता है और उत्तर भारत में गर्मी पड़ना शुरू हो जाती है.
गर्म हवाएं भी जिम्मेदार हैं
मौसम विभाग के अनुसार, अप्रैल खत्म होते-होते उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में गर्म हवाओं का दौर शुरू हो जाता है. इसे आप हीटवेव के नाम से भी जानते हैं. इनकी वजह से पूरे उत्तर भारत में पारा चढ़ने लगता है और तापमान 40 डिग्री तक पहुंच जाता है. हालांकि, इन हवाओं के लिए भी कहीं ना कहीं धरती का अपने अक्ष पर झुकाव जिम्मेदार है.
मौसम के बदलाव का कारण
मौसम के बदलाव का सबसे बड़ा कारण है धरती का अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुका होना. दरअसल, इसी वजह से सूरज की दूरी धरती के अलग-अलग हिस्सों पर निर्भर करती है. यानी कभी सूरज धरती के एक हिस्से के नजदीक होता है तो कभी धरती के दूसरे हिस्से के. सूरज जिस वक्त धरती के जिस हिस्से के नजदीक होता है उस वक्त वहां गर्मी पड़ती है और दूसरी तरफ मौसम ठंडा रहता है.
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