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आपातकाल के अंधकार में लोकतंत्र की निर्भीक आवाज थे श्री नरेंद्र मोदी

25 जून 1975… भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन. रात 11:45 बजे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने उस अध्यादेश पर दस्तखत किए, जिसने लोकतंत्र को जेलतंत्र में तब्दील कर दिया. 

आतंरिक अशांति को नाम पर लिया गया यह निर्णय, वास्तव में इंदिरा गांधी की अपनी सत्ता बचाने की तानाशाही मानसिकता का परिणाम था. जब पूरा भारत तानाशाही की जंजीरों में जकड़ गया. लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया. संविधान को ताक पर रखकर नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए. प्रेस की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई. विपक्ष के तमाम बड़े नेता सलाखों के पीछे डाल दिए गए. 1 लाख से ज्यादा निर्दोष नागरिकों को बिना मुकदमे जेल में ठूंस दिया गया. 

ऐसे भयावह दौर में जब पूरा देश दहशत और निराशा में डूबा था, तब कुछ ऐसे लोग थे जिन्होंने डर के आगे झुकने से इनकार कर दिया. उन्हीं में से एक थे युवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और आज भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी. 

इमरजेंसी में सरदार बनकर पंजाब के गांवों में घूमते थे PM मोदी

आपातकाल के उस भीषण कालखंड में नरेंद्र मोदी जी ने अद्भुत दूरदर्शिता और रणनीतिक कौशल का परिचय दिया था, वे कभी सरदार बनकर पंजाब में तो कभी गांव-गांव घूमकर उन परिवारों से मिलते, जिनके अपने या तो जेल में थे या पुलिस की नजरों से बचते फिर रहे थे. मोदी न केवल उनका दुख-सुख बांटते, बल्कि उन्हें तानाशाही के खिलाफ डटने का हौसला भी देते.

मोदी जी ने खुद को छिपाने के लिए सिख का वेश धारण किया. चांदनी चौक से पगड़ी खरीदी गई. सब्जी मंडी के एक सरदारजी ने उन्हें बाकायदा पगड़ी बांधना सिखाया. इस रूप में मोदी जी ने पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए दिल्ली से सूरत तक ट्रेन में सफर किया. पुलिस मोदी जी के पीछे पड़ी थी. गिरफ्तारी का वारंट जारी था. बावजूद इसके मोदी जी इंदिरा सरकार की तानाशाही पुलिस को चकमा देते हुए अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहे.

अंडरग्राउंड रहकर संभाला संगठन का काम

आपातकाल के दौरान मोदी जी ने दिल्ली के अशोक विहार में गुप्त रूप से रहकर संगठन का काम संभाला. उस कठिन समय में दिल्ली के विजय राजपाल का सहयोग उन्हें प्राप्त हुआ.
विजय राजपाल जी के शब्दों में, "मोदी जी का धैर्य और उस कठिन समय में उनका दृढ़ संकल्प अद्वितीय था. वह देश के लिए किसी भी बलिदान के लिए तैयार थे, और मैंने तब भी उनकी नेतृत्व क्षमता को महसूस किया था. दबाव में आकर स्थिति को समझने और रणनीतिक रूप से काम करने की उनकी क्षमता उन्हें दूसरों से अलग करती थी." 

तानाशाही के उस दौर में जब मोदी जी की गिरफ्तारी के लिए हर तरफ जाल बिछा हुआ था, उन्होंने साधु का वेश धारण कर जेल के भीतर अपने साथियों से मिलने चले जाते थे, राष्ट्रप्रेम के प्रति अपने समर्पण में उन्होंने कभी भी अपने व्यक्तिगत जीवन की परवाह नहीं की. कड़ी सेंसरशिप के बावजूद नरेंद्र मोदी भूमिगत साहित्य, गुप्त बैठकों और संवादों के जरिए जनता को सच्चाई बताते रहे. सरकार की तानाशाही को उजागर करना, लोगों में जागरूकता फैलाना और लोकतंत्र की अलख जलाए रखना उनका लक्ष्य था.

इमरजेंसी के खिलाफ PM मोदी ने सूचना तंत्र को किया मजबूत

आपातकाल के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूचना तंत्र को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. नाथ जागड़ा और वसंत गजेंद्रगडकर जैसे वरिष्ठ आरएसएस नेताओं के साथ और सहयोग से उन्होंने सूचनाओं को अधिक से अधिक लोगों तक प्रसारित करने के लिए कई नए तरीके तलाशे. उदाहरण स्वरूप उस समय मोदी जी ने संविधान और कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों से जुड़ी सामग्री को गुजरात से रवाना होने वाली ट्रेनों में भर दी ताकि आपातकाल के खिलाफ सूचना को देश के कोने कोने तक पहुंचाया जा सके.

सरदार पटेल की बेटी के साथ आए नरेंद्र मोदी

जब लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुत्री मणिबेन भी तानाशाही के खिलाफ सड़क पर उतरीं, तब मोदी जी ने उनका पूरा साथ दिया. उस आंदोलन में नरेंद्र मोदी की सक्रिय भागीदारी बताती है कि उनके लिए लोकतंत्र किसी पद या प्रतिष्ठा से कहीं अधिक बड़ा था.

नरेंद्र मोदी ने लिखी आपातकाल पर किताब

आपातकाल के बाद 1978 में नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली किताब 'संघर्ष मा गुजरात' लिखी. इसमें उन्होंने उस काले दौर की सच्चाई दुनिया के सामने रखी, जिसे कांग्रेस लगातार छिपाने की कोशिश कर रही थी.

अब, वर्षों बाद, 'द इमरजेंसी डायरीज – इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर' नामक एक नई किताब प्रकाशित हुई है, जिसमें आपातकाल के दौर में नरेंद्र मोदी के संघर्षों और उनके नेतृत्व क्षमता के निर्माण की विस्तार से चर्चा की गई है. यह किताब बताती है कि कैसे आपातकाल के अंधकारमय वर्षों ने नरेंद्र मोदी को केवल एक कार्यकर्ता नहीं, बल्कि भविष्य का जननेता बनाने में भूमिका निभाई.

आपातकाल ने मुझे लोकतंत्र की अहमियत सिखाई- नरेंद्र मोदी 

स्वयं प्रधानमंत्री मोदी जी के शब्दों में, "जब आपातकाल लगा, मैं एक युवा प्रचारक था. उस समय ने मुझे लोकतंत्र की अहमियत और उसकी रक्षा के लिए संघर्ष करना सिखाया. अलग-अलग विचारधारा के लोगों से सीखने और एकता से तानाशाही के खिलाफ लड़ने का अनुभव मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना."

आज नरेंद्र मोदी यशस्वी प्रधानमंत्री के रूप में संविधान की रक्षा और लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं. उनकी अगुवाई में भारत का लोकतंत्र और संविधान न केवल सुरक्षित है, बल्कि पहले से ज्यादा सशक्त हो रहा है. आपातकाल के उस काले इतिहास से सबक लेकर आज देश आगे बढ़ रहा है. तानाशाही चाहे कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, जब जनता जागती है और कोई मोदी जैसा संघर्षशील नेता साथ होता है, तो लोकतंत्र हर बार विजयी होता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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