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मूल अधिकारों के शोषण के खिलाफ क्या पहले हाई कोर्ट जाना होगा या सीधा सुप्रीम कोर्ट में भी इसकी याचिका दी जा सकती है?

अगर किसी नागरिक के मूल अधिकारों को हनन होता है तो क्या वह सीधा सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगा सकता है या फिर इसके लिए पहले उसे हाई कोर्ट का दरवाजा ही खटखटाना होगा? आइए जानते हैं...

Supreme Court and High Court: भारत के एक लोकतांत्रिक देश है. यहां पर जनता के लिए मौलिक अधिकार निर्धारित किए गए हैं. अब सवाल यह उठता है कि अगर ऐसे में कोई आपके मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो आप क्या करेंगे? इसके संबंध में याचिका दाखिल करने के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ता है या सीधा सुप्रीम कोर्ट में भी आप इसकी याचिका दाखिल करा सकते हैं? आइए जानते हैं.

क्या होते हैं मौलिक अधिकार?

मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है, जो देश के किसी नागरिक के जीवन, स्वतंत्रता एवं उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के समुचित और बहुमुखी विकास के लिए अनिवार्य होते हैं. इन अधिकारों को राज्य के विरुद्ध न्यायपालिका का संरक्षण प्राप्त होता है. इन अधिकारों के बिना लोकतंत्र का संचालन सही रूप से हो ही नही सकता है. इस स्थिति में लोकतंत्र मात्र एक कल्पना ही सिद्ध होगा.

ये वो अधिकार हैं जो देश के किसी नागरिक के जीवन एवं उसके सम्पूर्ण विकास हेतु मौलिक एवं अनिवार्य होने के कारण संविधान अपने नागरिकों को प्रदान करता है और इन अधिकारों में राज्य भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. यही अधिकार मौलिक अधिकार कहलाते हैं.

इन अधिकारों को मौलिक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इन्हें देश के संविधान में प्रमुखता से स्थान दिया जाता है. साधारणतः इनमें संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है और न ही कोई राज्य अधिकारों का किसी भी रूप में, पूर्णतः या आंशिक रूप से अपहरण ही कर सकता है. 

मौलिक अधिकारों का अपहरण संभव नहीं!

किसी भी लोकतंत्र की सफलता या असफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि उस देश की जनता को आमतौर पर किस तरह की नागरिक स्वतंत्रताएं मिली हुई हैं. मौलिक अधिकार साधारणतः उल्लंघनीय नहीं होते हैं और संसद या कोई भी सरकार, यहां तक कि बहुमत से भी इनको नष्ट नहीं किया जा सकता है. अगर किसी नागरिक के साथ ऐसा होता भी है तो वह अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय में गुहार लगा सकता है. न्यायपालिका उस व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा सकती है.

मौलिक अधिकार पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाई कोर्ट से मौलिक अधिकारों को संरक्षण प्राप्त है. अब सवाल यह कि जब दोनों ही न्यायालयों से मौलिक अधिकारों को संरक्षण प्राप्त है और जब सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट से उच्च होता है तो क्या मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए कोई व्यक्ति सीधा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करा सकता है या पहले उसे हाईकोर्ट में याचिका लगाना होगी? इसका उत्तर है कि कोई भी नागरिक अपने मौलिक अधिकार संरक्षण के लिए दोनों में से किसी भी कोर्ट में याचिका दाखिल करा सकता है. वह हाईकोर्ट में जाये बिना भी सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करवा सकता है.

मौलिक अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के अधिकार

इस संबंध में हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट सिर्फ मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए ही रिट याचिका जारी कर सकता है. लेकिन, हाईकोर्ट मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य प्रयोजनों के लिए भी इसे जारी कर सकता है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट अगर अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी आदेश पारित कर देता है तो वह आदेश हाईकोर्ट में भी प्रभावी होगा.

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