बारिश के कम-ज्यादा होने का पता कैसे चलता है? कौन-सा है वो मीटर जिससे नापा जाता है कि इस बार कितनी हुई?
पिछले कुछ दिनों में जमकर मेघ बरसे हैं. बारिश इतनी ज्यादा हुई है कि कई इलाकों में बाढ़ आ गई. आज की इस खबर में हम आपको बताएंगे कि बारिश को मापा कैसे जाता है.

Measure Rain: मानसून चल रहा है. हर तरफ मेघ बरस रहे हैं. आलम यह है कि हिमाचल से लेकर उत्तर प्रदेश तक बाढ़ के हालात पैदा हो गए हैं. कई इलाकों में तो बाढ़ का मंजर देखने को भी मिला है. कई रिपोर्ट्स बता रही हैं कि इस साल की जुलाई की वर्षा ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. आपने खबरों में या सोशल मीडिया पर सुना होगा कि उस जगह इतने मिलीमीटर बारिश हुई है. लेकिन, क्या आपको पता है कि बारिश को नापते कैसे हैं?
वर्षामापी से नापते हैं बारिश
किसी भी जगह पर हुई बारिश को नापने के लिए वर्षामापी (rain gauge) का इस्तेमाल किया जाता है. दुनियाभर के देशों में मौसम विभाग के पास बारिश को नापने के लिए वर्षामापी यंत्र होता है. वर्षामापी यंत्र से बारिश को इंचों या मिलीमीटर में नापा जाता है. आजकल तो कई तरह के वर्षामापी यंत्र बना दिए गए हैं, लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा इस्तेमाल पुराने वर्षामापी यंत्र का किया जा रहा है. वर्षामापी यंत्र में पैमाना वाली कांच की बोतल लोहे के बेलनाकार डिब्बे में रखी जाती है. इसके बाद, बोतल के मुंह पर एक कीप रख उसे खुली और सुरक्षित जगह पर रख दिया जाता है. कीप का व्यास बोतल के व्यास से 10 गुना अधिक होता है.
कैसे काम करता है वर्षामापी यंत्र?
बारिश होने पर बूंदे कीप में गिरती हैं, जिससे पानी बॉटल के अंदर एकत्रित होता रहता है. 24 घंटे तक बॉटल को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है. 24 घंटे के बाद, इकठ्ठा हुए पानी को बॉटल पर लगे पैमाने की सहायता से माप लिया जाता है. बारिश माप का दसवां हिस्सा होती है क्योंकि कीप का व्यास बोतल के व्यास से 10 गुना अधिक होता है. ऐसे में, बॉटल में इकट्ठा होने वाला पानी भी दस गुना ज्यादा होता है.
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