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Rape Definition In India: क्या 'ब्रेस्ट पर हाथ रखना' और 'नाड़ा खोलना' नहीं माना जाता है रेप, हमारे देश में क्या है बलात्कार की परिभाषा?

Rape Definition In India: हाल ही में रेप के एक मामले पर हाई कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उसकी हर तरफ निंदा हो रही है. ऐसे में जान लेते हैं कि जो उन्होंने कहा है वो कहां तक सही है.

Rape Definition In India: हाल ही में नाबालिग लड़की से रेप के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने एक फैसला सुनाया है. उनका कहना है कि किसी महिला के ब्रेस्ट पर हाथ लगाना और पायजामे की डोरी खोलना रेप या रेप की कोशिश की श्रेणी में नहीं आता है. उनके इस बयान पर देशभर में हंगामा मचा हुआ है. केंद्र सरकार की एजेंसी नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार भारत में हर 20 मिनट में एक महिला रेप का शिकार होती है. ऐसे हालातों में जब इस तरीके का फैसला सुनाया जाएगा तो हंगामा मचेगा ही. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के मामलों में अगल फैसला सुनाया है. चलिए जान लेते हैं. 

मामला क्या है

इस मामले में लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि जब वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ 10 नवंबर 2021 को शाम करीब 5 बजे ननद के घर से लौट रही थीं, तब आरोपी रास्ते में उसे मिले थे. आरोपियों ने उनसे पूछा कि वो कहां से आ रही हैं, जवाब देने पर उनमें से एक आरोपी ने महिला की नाबालिग बेटी को बाइक पर बैठाने का ऑफर दिया और कहा कि वह उसे घर छोड़ देगा. भरोसे पर महिला ने बेटी को आरोपियों के साथ छोड़ दिया, लेकिन रास्ते में आरोपियों ने लड़की के प्राइवेट पार्ट्स को छुआ, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और पुलिया के नीचे घसीटा. चीख पुकार सुनने के बाद दो लोग आए और पिस्तौल दिखाकर धमकी दी तो आरोपी भाग गए. पीड़िता और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद अदालत ने आरोपियों को रेप के आरोप में तलब किया. 

किस फैसले पर हो रहा बवाल

हाई कोर्ट ने इस मामले पर कहा पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पकड़ना, कपड़े उतारने की कोशिश करना ये पर्याप्त तथ्य नहीं हैं कि निष्कर्ष निकाला जा सके कि आरोपियों ने पीड़िता के साथ रेप की कोशिश का पक्का इरादा बना लिया था. हाई कोर्ट ने निचली अदालत को कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ IPC की धारा 354 (बी) कपड़े उतारने के इरादे से हमला और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 और 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. 

ऐसे ही केस में जब सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला

वहीं एक ऐसा ही मामला बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे फैसले को पलट दिया था. साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बच्चे के प्राइवेट पार्ट को छूना अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन हिंसा माना जाएगा. चाहे इसमें त्वचा का संपर्क हुआ हो या नहीं. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा था कि इस फैसले के हिसाब से कोई भी किसी महिला के प्राइवेट पार्ट पर ग्लव्स पहनकर टच कर सकता है, लेकिन उसे यौन शोषण का दोषी नहीं माना जाएगा. उन्होंने कहा था कि इस तरह के फैसले खतरनाक उदाहरण कायम करेंहे इसलिए इसे बदल देना चाहिए और अब यह बदल दिया गया है. ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडिवाला ने अभियुक्त को यह कहकर बरी कर दिया था कि त्वचा से संपर्क नहीं हुआ है.  

क्या कहता है कानून

धारा 375 रेप को पारिभाषित करती है, इसके अनुसार जब तक मुंह या प्राइवेट पार्ट में लिंग या किसी वस्तु का प्रवेश न हो तो वो रेप की श्रेणी में नहीं आता है. जस्टिस मिश्रा की बेंच ने इस केस में  यह साफ किया था कि सेक्शन 376, 511 आईपीसी या 376 आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के तहत सेक्शन 18 का मामला नहीं बनता है. 

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