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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कैसे एटम बम की तरह इंसानों के लिए बड़ा खतरा? क्यों इसके जनक को AI बनाकर हो रहा पछतावा

जेफ्री हिंटन की बात का आपने जिक्र किया तो उन्होंने गूगल की नौकरी छोड़कर जाते वक्त ये वॉर्निंग दी कि आने वाले वक्त में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य से भी ज्यादा तेज हो जाएगा. उन्होंने ये भी कहा कि एआई किस तरह से दुनिया के लिए हानिकारक हो सकता है. इस संदर्भ में अगर हम भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रचलन की बात करें तो पिछले 5 साल में नीति आयोग की तरफ से इस पर एक क्लोज्ड वॉच रखा जा रहा है और किन-किन क्षेत्रों में इसका सकारात्मक इस्तेमाल किया जा सकता है, उसे लेकर काफी काम हुआ है. अगर आप देखेंगे तो कृषि क्षेत्र, शिक्षा के क्षेत्र में और विकास के अन्य क्षेत्रों में देश के विकास के लिए एआई का कैसे सही इस्तेमाल हो सकता है, इस पर काम चल रहा है.

अब चूंकि एक जेनरेटिव AI की बात हो रही है तो लोगों को थोड़ी से हैरानी भी हो रही है. पिछले नवंबर में जब जीपीटी 4 का ओपेन एआई कंपनी ने उसे लॉन्च किया तब यह देखा गया कि चैट बॉक्स के माध्यम से जब आप किसी भी चीज के ऊपर इंफॉर्मेशन चाहिए होता है तो वह आपको जवाब देता है, इमेज उपलब्ध कराता है, वह आपको उस बारे में निबंध लिखकर भेज देता है, कविता लिखकर देता है. यानी जिस प्रभाव से हर क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से कॉन्टेंट जेनरेट हो रहे थे उससे एक डर पैदा हो गया कि मशीन और प्रोग्रामिंग अपने आप में बहुत कुछ कर सकता है.

अब बात है कि इसे हम कैसे नियंत्रण में रख सकते हैं? जहां तक भारत का सवाल है, तो हम एक जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग को लेकर बातचीत कर रहे हैं और इस वक्त तक किसी भी हानिकारक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रोग्रामिंग की चेष्टा नहीं की गई है. दूसरी बात ये कि पिछले साल नवंबर में भारत ने एआई (जीपीएआई) पर वैश्विक भागीदारी के परिषद अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यभार संभाला है. GPAI एक 25 सदस्य देशों की संस्था है और इसमें विशेष रूप से वैसे देश हैं जो अपने यहां AI का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें अमेरिका, जापान, UK आदि मिलकर ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को चला रहे हैं. 

अब चूंकि इसके काउंसिल का चेयरमैनशिप भारत के पास है तो इसमें भारत की बड़ी भूमिका होगी कि वह किस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का लोगों के लिए दुनिया भर में सही इस्तेमाल किया जा सकता है. कैसे इसके हानिकारक गतिविधियों पर रोक लगाई जाएगी और इसका आगे विस्तार न हो सके. इन सभी आयामों पर सरकार की तरफ से प्रयास किए जा रहे हैं. भारत में बहुत सारी कंपनियां हैं और सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो AI पर मिलकर काम कर रहे हैं ताकि इसे एक सकारात्मक और फायदेमंद टूल्स के हिसाब से उपयोग किया जा सके.

मुझे नहीं लगता कि AI के आने से साइबर सुरक्षा को लेकर जो चिंताएं हैं वो नकारात्मक दृष्टि की ओर जाएंगे. साइबर सुरक्षा जिस तरह से समाज और सिस्टम के ऊपर प्रभाव लाते हैं वो अभी चलेगा. क्रिमिनल क्राइम करना तो बंद नहीं कर देंगे. लेकिन बात आती है कि हम इसे कैसे रेगुलेट करते हैं? कोई भी घटना जब होती है तो हम उस पर कितने देर में रिस्पॉन्स करते हैं? व्यक्तिगत तौर पर और सिस्टम की तरफ से कैसे उसे रिट्रेशल दे सकता है और हमें प्रोग्रामिंग को उस तरीके से बनाना होगा कि किसी भी तरह से जो ऑटोमेटेड साइबर अटैक है, उसे रोका जा सके. मुझे लगता है कि हमें एक मल्टी स्टेकहोल्डर के माध्यम से सिर्फ साइबर सुरक्षा को ही नहीं बल्कि इंटरनेट गवर्नेंस को लेकर काम किया जा रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उपयोगिता और उसके रेगुलेशन को भी मल्टी स्टेकहोल्डर के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए. जिस तरह से लोगों में आज साइबर सुरक्षा को लेकर जागरूकता पैदा हुआ है, उसी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में भी लोगों को जागरूक होने के आवश्यक्ता है. मुझे लग रहा है कि बहुत कम समय में जो लोग एआई के बारे में जानते तक नहीं थे, वे अब इसे लेकर सोचने लगे हैं कि उनके डिजिटल यात्रा में एआई का प्रभाव पड़ सकता है. लोग सतर्क हो रहे हैं और सरकार के स्तर से भी बहुत सारी जागरूकता गतिविधियों को करना होगा और इससे संबंधित रेगुलेशन और लॉ को देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे बनाया जाना चाहिए.

AI का रोल भारत के विकास यात्रा में काफी अहम होने वाला है. लेकिन हमें एक रेस्पॉन्सिबल एआई, एथिकल एआई के ऊपर ध्यान देना पड़ेगा. जहां तक आज की स्थिति है तो सरकार और इंडस्ट्री दोनों की तरफ से यह प्रयास किया जा रहा है कि हम एक रेस्पॉन्सिबल एआई का इस्तेमाल करके अपनी समस्याओं का निदान करें. आपने देखा होगा कि प्रधानमंत्री ने उत्साह बढ़ाते हुए एक स्मार्ट हैकथॉन प्रोग्राम को चलाने पर जोर दिया है. उसमें कॉलेज के शोधार्थी और वैसे सभी लोग जो एआई को लेकर एक पॉजिटिव एप्रोच के साथ काम कर रहे हैं. देश की विकास यात्रा में जो गैप्स हैं उसे कम करने का प्रयास किया जा रहा है. साइबर अटैक, डीप फेक्स आदि की दिशा में इसका इस्तेमाल बहुत कम देखा जा रहा है. मुझे लगता है कि हमारे पास समय है अभी भी रेगुलेशन और कानूनों को सही करने का. डिजिटल इंडिया एप और डेटा प्रोटेक्शन की बात की जा रही है और इन सब को लेकर जब हमारे देश में अगले कुछ महीनों में कानून व रेगुलेशन को लागू कर दिया जाएगा. लेकिन जहां तक दिशा की बात है तो एआई के तकनीकों का मल्टी डायरेक्शन उपयोगिता को बढ़ावा देने में एक बड़ी भूमिका रहेगी.

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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