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Sam Manekshaw Death Anniversary: सेना में क्या होती है फील्ड मार्शल की पोस्ट, सैम मानेकशॉ को कैसे मिला ये ओहदा?

भारतीय सेना में फील्ड मार्शल सेना का अत्यन्त उच्च पद होता है जो जनरल से भी ऊंचा होता है. सैम मानेकशॉ इसी पद पर थे.

Sam Manekshaw Death Anniversary: भारतीय सेना में ऐसे कई अफसर रहे जिनके बहादुरी के किस्से आज भी हम भारतीय लोगों का सीना गर्व से चौड़ा कर देते हैं. सैम मानेकशॉ उन्हीं में से एक थे. वो भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे जिन्हें सेना के सर्वोच्च पद फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था. उनका नाम भारतीय सेना में गर्व से लिया जाता है. वो साहस, दूरदर्शी और सैन्य नेतृत्व के प्रतीक थे, उन्हें साल 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत की शानदार जीत का प्रतीक भी माना जाता है.

उनका सैन्य करियर बहुत बड़ा रहा, आजादी से पहले ब्रिटिश काल से शुरू हुआ उनका सैन्य जीवन द्वितीय विश्व युद्ध से होकर भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हुए तीन युद्धों तक चला. इस दौरान उन्होंने कई रेजिमेंटल, स्टाफ और कमांड कार्य संभाले. 1971 में युद्ध की सफलता के बाद उन्हें फील्ड मार्शल बनाया गया. अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये फिल्ड मार्शल की पोस्ट क्या होती है और सैम मानेकशॉ को ये पद कैसे मिला?

सेना में फील्ड मार्शल की पोस्ट क्या होती है?

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि सेना में सर्वोच्च पद जनरल का होता है, लेकिन फील्ड मार्शल का पद उससे भी ऊंचा होता है. भारतीय सेना में पांच सितारा रैंक और सबसे बड़ी पोस्ट पाने वाला फील्ड मार्शल होता है. ये एक औपचारिक या युद्धाकालीन रैंक है. भारतीय सेना में अबतक दो बार ही फील्ड मार्शल की पोस्ट दी गई है.

बता दें कि फील्ड मार्शल को सेना में सबसे बड़ी पोस्ट माना जाता है. उन्हें जनरल का पूरा वेतन मिलता है साथ ही उन्हें उनकी मृत्यु तक एक सेवारत अधिकारी माना जाता है.

सैम मानेकशॉ को कैसे मिली फील्ड मार्शल की पोस्ट?

सैम मानेकशॉ उत्तराखंड में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) के लिए चुने जाने वाले 40 कैडेटों के पहले बैच में थे और उन्हें 4 फरवरी 1934 को ब्रिटिश भारतीय सेना (अब भारतीय सेना ) की 12 FF राइफल्स में सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर नियुक्त किया गया था.

उन्होंने सेना में 40 साल अपनी सेवाएं दी थीं. इस दौरान उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध, 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में भी भाग लिया. युद्ध के दौरान एक बार उन्हें 9 गोलियां लग गईं, इस दौरान उन्होंने मौत को भी मात दे दी.

भारत को दिलाई जीत

1971 के युद्ध में थल सेनाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने भारतीय सेना को युद्ध के लिए एक कारगर हथियार बनाकर दिया. जब वो चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष रहे तब उन्होंने थल सेना, नौसेना और वायुसेना को तालमेल के साथ काम करने वाली एक अच्छी टीम बनाई. मानेकशॉ का कुशल नेतृत्व ही था कि भारत ने पाकिस्तान को महज 13 दिनों में घुटनों पर ला दिया. जिसके चलते 90 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

1971 के संघर्ष के दौरान भारतीय सेना की जीत ने देश को आत्मविश्वास की एक नई ऊंचाईयां दीं. जिसके बाद भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने सैम की सेवाओं को मान्यता देने के साथ जनवरी 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया था.

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