अजातशत्रु अटल: पद से बड़ा क़द
1957 में जब वह पहली बार सांसद बने थे तो उस ज़माने में वाजपेयी बैक बेंचर हुआ करते थे, लेकिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू बहुत ध्यान से वाजपेयी के उठाए मुद्दों को सुनते थे.

अटल ने शुरुआत की –बहुत दिनों बाद मिले हैं दीवाने...उनका इतना कहना था कि माहौल तालियों से गड़गड़ा उठा और दो-तीन मिनट तक तालियां थमीं नहीं. फिर तालियों का शोर शांत हुआ तो उनकी अगली लाइन थी... कहने सुनने को हैं बहुत से अफसाने... फिर तालियां... रुकते ही फिर अगली लाइन... जरा खुली हवा में सांस तो ले लें, कब तक है आजादी कौन जानें....
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बस फिर क्या था तालियां और सुप्त जनता पूरी तरह से ऊर्जा से परिपूर्ण हो गई. अटल खूब बोले और लोगों ने खूब इसका इस्तकबाल भी किया. ये अटल का जनता से संवाद का अपना निराला, चुटीला और विश्वसनीय अंदाज था. पहली लाइन में उन्होंने जता दिया कि बहुत दिनों बाद मिले हैं और दूसरी लाइन में वे बता गए कि अभी वे बहुत बातें करेंगे. चार लाइनों में उन्होंने देश के माहौल को भी जता दिया. वे जनता के दिलो-दिमाग से सीधा संवाद करने में महारथी थे. वे सिर्फ शब्दों के ही नहीं बल्कि कृतित्व के भी धनी थे, लिहाजा लोग उनसे अंतर्मन से जुड़ जाते थे.
शानदार वक्ता, लाजवाब हाजिरजवाबी
उनकी वक्तृत्व शैली और हाजिरजवाबी का तो लोहा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष अनंतशायनम अयंगर भी मानते थे. उन्होंने एक बार कहा था लोकसभा में अंग्रेज़ी में हीरेन मुखर्जी और हिंदी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है. जब वाजपेयी के एक नज़दीकी दोस्त अप्पा घटाटे ने उन्हें यह बात बताई तो वाजपेयी ने ज़ोर का ठहाका लगाया और बोले ‘तो फिर बोलने क्यों नहीं देता.’
पद से बड़े कद के नेता
वाजपेयी जब युवा थे और उनके पास कोई बड़ा पद नहीं था तो भी उनका कद खासा बड़ा था. 1957 में जब वह पहली बार सांसद बने थे तो उस ज़माने में वाजपेयी बैक बेंचर हुआ करते थे, लेकिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू बहुत ध्यान से वाजपेयी के उठाए मुद्दों को सुनते थे. वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग अपनी किताब 'अटलबिहारी वाजपेयी- ए मैन फ़ॉर ऑल सीज़न' में लिखते हैं कि एक बार नेहरू ने भारत यात्रा पर आए एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वाजपेयी को मिलवाते हुए कहा था, "इनसे मिलिए. ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं. हमेशा मेरी आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूँ. एक बार एक दूसरे विदेशी मेहमान से नेहरू ने वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी कराया था.
बड़े मन वाले वाजपेयी
वाजपेयी की एक कविता है कि –छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई बड़ा नहीं होता...... ये उनके शब्द नहीं, बल्कि उनका जीवन-दर्शन भी था. वाजपेयी के मन में भी नेहरू के लिए बहुत इज़्ज़त थी.
1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभालने साउथ ब्लॉक के अपने दफ़्तर गए तो उन्होंने नोट किया कि दीवार पर लगा नेहरू का एकचित्र ग़ायब है. किंगशुक नाग बताते हैं कि उन्होंने तुरंत अपने सचिव से पूछा कि नेहरू का चित्र कहां है, जो यहां लगा रहता था. उनके अधिकारियों ने ये सोचकर उस चित्र को वहां से हटवा दिया था कि इसे देखकर शायद वाजपेयी ख़ुश नहीं होंगे. वाजपेयी ने आदेश दिया कि उस चित्र को वापस लाकर उसी स्थान पर लगाया जाए जहां वह पहले लगा हुआ था.
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प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि जैसे ही वाजपेयी उस कुर्सी पर बैठे जिस पर कभी नेहरू बैठा करते थे, उनके मुंह से निकला, "कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एकदिन मैं इस कमरे में बैठूँगा." विदेश मंत्री बनने के बाद उन्होंने नेहरू के ज़माने की विदेश नीति में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं किया.
उर्दू पर भी जोरदार पकड़़
हिंदी ही नहीं उर्दू पर भी उनकी कितनी जबर्दस्त पकड़ थी इसका मुजाहिरा मणिशंकर अय्यर के संस्मरण से किया जा सकता है. अय्यर याद करते हैं कि जब वाजपेयी पहली बार 1978 में विदेश मंत्री के तौर पर पाकिस्तान गए तो उन्होंने सरकारी भोज में खांटी उर्दू में भाषण दिया. पाकिस्तान के विदेश मंत्री आगा शाही चेन्नई में पैदा हुए थे. उनको भी वाजपेयी की गाढ़ी उर्दू समझ में नहीं आई.
प्रधानमंत्री रहते वाजपेयी के निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा बताते हैं कि एक बार न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ वाजपेयी से बात कर रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करना था. उन्हें चिट भिजवाई गई कि बातचीत ख़त्म करें ताकि वो भाषण देने जा सके. चिट देखकर नवाज़ शरीफ़ ने वाजपेयी से कहा,"इजाज़त है... फिर उन्होंने अपने को रोका और पूछा आज्ञा है." वाजपेयी ने हंसते हुए जवाब दिया, "इजाज़त है."वाजपेयी अपनी सहजता और मिलनसार स्वभाव के लिए हमेशा मशहूर रहे हैं.
फक्कड़ नेता
वाजपेयी को सत्ता और सियासत बिल्कुल नहीं बदल सकी थी. वह फक्कड़ ही थे. इसका जिक्र किंगशुक नाग की किताब में भी है. घटना है कि एक बार जाने-माने पत्रकार एचके दुआ अपने स्कूटर से एक संवाददाता सम्मेलन को कवर करने प्रेस क्लब जा रहे थे जिसे अटल बिहारी वाजपेयी संबोधित करने जा रहे थे. उस ज़माने में वो युवा रिपोर्टर हुआ करते थे. रास्ते में उन्होंने देखा कि जनसंघ के अध्यक्ष वाजपेयी एक ऑटो को रोकने की कोशिश कर रहे हैं. दुआ ने अपना स्कूटर धीमा करके वाजपेयी से ऑटो रोकने का कारण पूछा. उन्होंने बताया कि उनकी कार ख़राब हो गई है. दुआ ने कहा कि आप चाहें तो मेरे स्कूटर के पीछे की सीट पर बैठकर प्रेस क्लब चल सकते हैं. वाजपेई दुआ के स्कूटर पर पीछे बैठकर उस संवाददाता सम्मेलन में पहुंचे जिसे वो ख़ुद संबोधित करने वाले थे.
अजातशत्रु अटल
वाजपेयी क्यों अजातशत्रु थे और क्यों पूरा देश उनकी सलामती की दुआयें मांग रहा है, इसे पिछले पांच दशकों से वाजपेयी के सबसे करीबी रहे शिव कुमार के शब्दों से समझा जा सकता है. शिव कुमार एक घटना बताते हैं कि "उन दिनों मैं उनके साथ 1,फ़िरोज़शाह रोड पर रहा करता था वो बेंगलुरु से दिल्ली वापस लौट रहे थे. मुझे उन्हें लेने हवाई अड्डे जाना था. जनसंघ के एक नेता जेपी माथुर ने मुझसे कहा चलो रीगल में अंग्रेज़ी पिक्चर देखी जाए. छोटी पिक्चर है जल्दी ख़त्म हो जाएगी. उन दिनों बेंगलुरु से आने वाली फ़्लाइट अक्सर देर से आती थी. मैं माथुर के साथ पिक्चर देखने चला गया.
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"उस दिन पिक्चर लंबी खिंच गई और बेंगलुरु वाली फ़्लाइट समय पर लैंड कर गई. मैं जब हवाई अड्डे पहुंचा तो पता चला कि फ़्लाइट तो कब की लैंड कर चुकी. घर की चाभी मेरे पास थी. मैं डरता हुआ 1,फ़िरोज़ शाह रोड पहुंचा. वाजपेयी अपनी अटैची पकड़े लॉन में टहल रहे थे. उन्होंने मुझसे पूछा कहाँ चले गए थे? मैंने डरते हुए कहा कि पिक्चर देखने गया था. वाजपेई ने मुस्कराकर कहा यार हमें भी ले चलते. चलो कल चलेंगे. ज़ाहिर है कि स्वभाव से फक्कड़ अटल में सत्ता या सियासत से आने वाली अहंमन्यता जगह नहीं बना सकी.
खाने-बनाने का शौक, मिठाई के दीवाने
वाजपेयी को खाना खाने और बनाने का बहुत शौक़ था. मिठाइयां उनकी कमज़ोरी थी. रबड़ी, खीर और मालपुए के वो बेहद शौक़ीन थे. आपातकाल के दौरान जब वो बेंगलुरु जेल में बंद थे तो वो आडवाणी, श्यामनंदन मिश्र और मधु दंडवते के लिए ख़ुद खाना बनाते थे. उनके क़रीबी बताते हैं, जब वो प्रधानमंत्री थे तो सुबह नौ बजे से एक बजे तक उनसे मिलने वालों का तांता लगा करता था. आने वालों को रसगुल्ले और समोसे आदि परोसे जाते थे. परोसने वालों को ख़ास निर्देश दिए जाते थे कि साहब के सामने समोसे और रसगुल्ले की प्लेट न रखी जाए.
निराला, बच्चन फैज के मुरीद
अटल बिहारी वाजपेयी के पसंदीदा कवि थे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, हरिवंशराय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़. शास्त्रीय संगीत भी उन्हें बेहद पसंद था. भीमसेन जोशी, अमजद अली खाँ और कुमार गंधर्व को सुनने का कोई मौक़ा वह नहीं चूकते थे.
विकास के युग दृष्टा
वाजपेयी अच्छे वक्ता, राजनेता और कवि ही नहीं, बल्कि देश को विकास की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले युग दृष्टा के रूप में याद किए जाएंगे. अच्छे प्रशासक और विकास को लेकर स्पष्ट दिशा उन्होंने दिखाई. खासतौर से बुनियादी ढांचे और आर्थिक क्षेत्र के साथ विदेश नीति में भी उनकी क्षमताओं का लोहा सब मानते हैं. वरिष्ठ पत्रकार और वाजपेयी के करीबी रहे प्रशांत मिश्र के मुताबिक, हालांकि वाजपेयी की पैठ विदेशी मामलों में अधिक थी लेकिन अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने सबसे ज़्यादा काम आर्थिक और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में किया. वह कहते हैं, " दूरसंचार के क्षेत्र और सड़क निर्माण में वाजपेयी के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता. भारत में आजकल जो राजमार्गों का जाल बिछा हुआ देखते हैं उसके पीछे वाजपेयी की ही सोच है. प्रशांत मिश्र तो साफ कहते हैं कि शेरशाह सूरी के बाद उन्होंने ही भारत में सबसे अधिक सड़कें बनवाई हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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