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मई में गर्मी और हीट वेव से मिलेगी राहत, 4-5 डिग्री तक गिरेगा तापमान, मानसून पर अल नीनो का प्रभाव नहीं

इस बार अप्रैल के महीने में ही देश के तमाम शहरों में गर्मी का भीषण प्रकोप देखने को मिल रहा है. हीट वेव से कई लोगों की जानें भी चली गई हैं. ऐसे में लोग इस बात से चिंतित हैं कि अगर अप्रैल में ही मौसम ने यह हाल कर दिया है तो आगे मई और जून में क्या हालत होगी.

लोग गर्मी से परेशान हैं. ऐसे में सवाल है कि आगे आने वाले समय में देश में क्या स्थिति रहेगी और मानसून पर इसका कैसा प्रभाव होगा? भारत में अभी हीट वेव की परिस्थितियां बनी हुई हैं. अलग-अलग जगहों पर अप्रैल के महीने में तापमान में जो वृद्धि हो रही है. इसका कारण है कि अप्रैल और मई के महीने में थंडर स्टॉर्म एक्टिविटी और प्री-मानसून सॉवर होता है.

थंडर स्टॉर्म एक्टिविटी में ये होता है कि लेट आफ्टरनून यानी तकरीबन दोपहर दो बजे के आसपास अच्छे बादलों का फॉर्मेशन होता है और बिजली कड़कती है, हल्की वर्षा होती है. कभी कभार उसमें हेल का भी फॉर्मेशन  होता है जो धरती के सतह पर आती है. ऐसा होने से उन जगहों पर 4-5 डिग्री तक तापमान में गिरावट दर्ज की जाती है. अभी जो हमने पूरे नॉर्थ इंडिया में और सेंट्रल इंडिया में देखा है.

अगर हम हैदराबाद और कर्नाटक की बात करें या महाराष्ट्र में देखेंगे तो इन जगहों पर हीट वेव की स्थिति बनी हुई है. 12 से 15 लोगों की हीट वेव के कारण मौत भी हुई है. मुझे ऐसा लगता है कि थंडर स्टॉर्म एक्टिविटी होती थी प्री-मानसून महीने खास करके अप्रैल और मई में वो इस बार बिल्कुल नहीं हुई है. इस कारण अप्रैल के महीने से ही तापमान में वृद्धि शुरू हो गई है. ऐसा नहीं है कि अप्रैल में जो तापमान में वृद्धि हुई है वो आपको मई के महीने में भी जारी रहेगा. ऐसा हम लोग उम्मीद नहीं करते हैं कि मई में तापमान 45-50 डिग्री के बीच चला जाएगा. ऐसा मुझे नहीं लगता है. क्योंकि थंडर स्टॉर्म एक्टिविटी एक नेचुरल फिनोमेना है, जो प्री-मानसून महीने में नॉर्थ इंडिया और सेंट्रल इंडिया के रीजन में हमेशा से होते रहा है. मेरा ऐसा मानना है कि इसकी वजह से तापमान में 4-5 डिग्री सेल्सियस तक की जो गिरावट होगी वो अलग-अलग जगहों पर होगी और इससे लोगों को गर्मी से राहत मिलेगी.

अगर बिहार और दिल्ली इन दो जगहों की बात करूं तो अभी हमने ये देखा है कि तीन से पांच दिन पहले से थंडर स्टॉर्म एक्टिविट हुई है. बिहार में भी हुई है. इसके कारण तापमान  4-5 डिग्री सेल्सियस तक कम हुई है. इससे लोगों को राहत मिली है. इसमें दो बातें निकल कर आती हैं. भारत में और पूरे विश्व में जिस तरीके से तेजी से  शहरीकरण हो रहा है, वो योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो रहा है. जब शहरीकरण तेजी से होता है तो हीट अर्बन फेनोमेनन आईलैंड का फॉर्मेशन होता है. इसका प्रभाव यह होता है कि ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों में आपको 5-7 डिग्री सेल्सियस तक तापमान ज्यादा मिलेगा. ये जो तापमान का एक बड़ा हब बन जाता है तो इसे हमलोग अर्बन हीट आईलैंड कहते हैं. यह हीट वेव को बढ़ावा देने लगता है. चूंकि वहां पर जब तापमान ज्यादा रहेगा और गर्म हवा चलेगी और इस कारण ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों में तापमान ज्यादा रहेगा और ऐसे में हीट वेव की संभावना ज्यादा बनी रहती है.

दूसरी बात यह है कि ये जो शहरीकरण हो रहा है भारत के अलग-अलग जगहों पर और उसी तरह अगर आप प्रदूषण की बात करेंगे जो वैक्यूलर प्रदूषण हैं वो भी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से आ रहे हैं. अगर हम बात करेंगे दिल्ली की तो वहां कुछ और हो सकता है. हैदराबाद में कुछ और हो सकता है. पटना में कुछ और हो सकता है, मुंबई में कुछ और हो सकता है. ये जो अलग-अलग तरीके से कंसंट्रेशन हो रहे हैं, पॉल्यूशन के एटमॉस्फेयर में उसमें कौन से ऐसे पार्टिकल्स जा रहे हैं जो रेनफॉल को फेवर करते हैं और जो रेनफॉल को फेवर नहीं करते हैं, ये डिसाइड करता है कि उस इलाके में लोकल रेनफॉल की एक्टिविटी हो रही है की नहीं. प्रदूषण का ऐसा रोल होता है. मेरा ऐसा मानना है कि ये क्लाइमेट चेंज का डायरेक्ट इंपैक्ट नहीं होकर हम इसे सिग्नल के रूप में ले सकते हैं. मुझे लगता है कि ऐसी चीजों को होने देने के लिए हम लोग खुद ही जिम्मेदार हैं. चूंकि अगर हम फास्ट अर्बनाइजेशन नहीं करते हैं और प्रदूषण को कंट्रोल नहीं करते हैं तो यह स्पष्ट है कि क्लाइमेट चेंज का जो प्रभाव होता है, लोकर एरिया में वो बहुत ही कम हो जाएगा.

प्रदूषण को कंट्रोल करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि हम अपने जीवन शैली में सुधार करें. कई बार हर प्लेटफॉर्म पर और बड़े फोरम पर कई वैज्ञानिकों ने भी यह कहा और हमारे प्रधानमंत्री ने भी यह बात कही है कि जब तक हम अपने जीवन जीने के तरीकों में बदलाव नहीं करेंगे तब तक हम क्लाइमेट में जो चेंज हो रहे हैं उसके प्रभाव को कम नहीं कर पाएंगे. उदाहरण के तौर बहुत सारे लोगों के पास एक गाड़िया होती और वे आगे और गाड़ियां खरीदते हैं. ऐसे में सभी गाड़ियां अगर रोड पर चलेंगी तो समझिये कि प्रदूषण कितना और बढ़ जाएगा. मुझे लगता है कि गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण सबसे ज्यादा क्लाइमेट को नुकसान पहुंचा रहा है.

दूसरी बात यह भी है कि भौगोलिक स्थिति भी इसमें बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. अगर हम दिल्ली की बात करें तो ठंड के दिनों में आप दिल्ली से बिहार तक यानी पूरे गंगेटिक प्लेन की बात करें तो इस इलाके में एक हाई प्रेशर सेल बना रहता है. टेम्परेचर इनवर्जन रहता है. इस कारण होता है ये है कि प्रदूषण का डिस्पर्शन अच्छे से हो नहीं पाता है. इस कारण से एक ही जगह पर पूरे गंगेटिक प्लेन में कन्फाइंड हो जाता है. इस कारण स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है. ब्रोंकाइटिस की समस्या और श्वास लेने में तकलीफ होने लगती है. इसलिए जब तक हम अपने जीवन शैली को नहीं बदलेंगे तब तक हम क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को नहीं रोक पाएंगे.

अभी कुछ दिनों पहले तक दो चर्चाएं चल रहीं थी. पहला यह कि अल नीनो का इस वर्ष के मानसून पर क्या प्रभाव होगा. पिछला रिकॉर्ड जब आप देखेंगे कई सालों का तो कई बार अल नीनो के रहने के बावजूद भारतीय मानसून में रेनफॉल बहुत अच्छा रहा है. कई बार ऐसा भी हुआ है कि इसका प्रभाव पड़ा है. ये मिक्स्ड सिग्नल है. आप ये नहीं कह सकते हैं कि इस बार अल नीनो है तो मानसून खराब रह सकता है. ऐसा हम नहीं कह सकते हैं. क्योंकि भारतीय मानसून एक कॉम्प्लेक्स फेनोमेना है. इस साल मुझे लगता है कि मानसून सामान्य रहेगी. सामान्य का जो वैल्यू है वो 100 सेंटीमीटर जो ऑल ओवर इंडिया एवरेज मॉनसून रेनफॉल कहा जाता है. वो रहेगा. इसमें थोड़ा सा घटाव-बढ़ाव हो सकता है लेकिन यह 5 % से ज्यादा नहीं होगा. अल नीनो का इस बार मुझे नहीं लगता है कि मानसून पर ज्यादा प्रभाव रहेगा. क्योंकि भारत का मॉनसून सिर्फ अल नीनो से गाइड नहीं होता है. हमारे यहां यह बंगाल की खाड़ी में जो मानसून डिप्रेशन होता है, टर्फ होता है और उसकी जो पोजीशन होती है गंगेटिक प्लेन के ऊपर तो ये दो ऐसे फेनोमेना हैं, जो भारत में और खास तौर पर उत्तरी भारत में वर्षा को कंट्रोल करते हैं.

(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)

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