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7 हजार सालों से जमीन में दबी थी ये अनोखी सभ्यता, ASI ने खोज निकाला, जानें क्या-क्या मिला अब तक
ओडिशा के तिरीमल गांव में ASI की खुदाई में 7000 साल पुरानी चाल्कोलिथिक बस्ती के अवशेष मिले हैं. जानिए क्या थे इस सभ्यता के प्रमाण और क्यों है यह खोज भारत के लिए बेहद खास.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से की गई खुदाई में ओडिशा के खुर्दा जिले में इतिहास की एक अनमोल परत सामने आई है.
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तिरीमल गांव के पास नारा हुडा इलाके में ASI को चाल्कोलिथिक यानी ताम्र-पाषाण युग की एक स्थायी बस्ती के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो लगभग 7000 साल पुराने हैं.
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से की गई खोज न केवल ओडिशा के इतिहास को नया आयाम देती है, बल्कि यह भारत की प्राचीनतम सभ्यताओं की श्रृंखला में एक और महत्वपूर्ण कड़ी जोड़ती है.
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Archaeologist पीके दीक्षित के अनुसार, खुदाई में कई गोलाकार झोपड़ियों, मिट्टी की दीवारों और खंभों के लिए बनाए गए गड्ढों के अवशेष मिले हैं. इनसे यह साबित होता है कि चाल्कोलिथिक युग के लोग यहां स्थायी रूप से रहते थे. न कि घूम-घूमकर रहते थे.
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यह भी संकेत करता है कि चाल्कोलिथिक युग से संबंधित लोगों के पास निर्माण तकनीक, सामाजिक ढांचा और कृषि आधारित जीवनशैली पहले से विकसित थी.
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ASI की टीम यहां 2021 से खुदाई कर रही है. इससे पहले पास के अन्नालाजोडी गांव में भी नियो-चाल्कोलिथिक सभ्यता के प्रमाण मिल चुके हैं. इन सब खोजों से यह स्पष्ट होता है कि ओडिशा का यह क्षेत्र भारत की प्राचीन सभ्यताओं का एक समृद्ध केंद्र रहा है.
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चाल्कोलिथिक युग उस ऐतिहासिक काल को कहते हैं जब मानव ने नवपाषाण (New Stone Age) से बाहर निकल कर तांबा और पत्थर दोनों के औजारों का प्रयोग शुरू किया.
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चाल्कोलिथिक युग लगभग 4000 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक फैला माना जाता है. इस समय मनुष्य ने स्थायी बस्तियां बनानी शुरू की, कृषि और पशुपालन को अपनाया और मिट्टी के बर्तन बनाना सीखा.
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चाल्कोलिथिक युग की विशेषता थी कि इस समय तांबे के औजारों का प्रयोग होता था. लोग मिट्टी और लकड़ी से बनी झोपड़ियों में रहते थे.
Published at : 20 Apr 2025 02:53 PM (IST)
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