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कहां गिरते हैं सबसे ज्यादा उल्का पिंड, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

कुछ उल्का पिंड वायुमंडल में पूरी तरह नष्ट नहीं होते और पृथ्वी से टकरा जाते हैं. ऐसे उल्कापिंड पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं. चलिए जानते हैं कि सबसे ज्यादा उल्का पिंड कहां गिरते हैं.

कुछ उल्का पिंड वायुमंडल में पूरी तरह नष्ट नहीं होते और पृथ्वी से टकरा जाते हैं. ऐसे उल्कापिंड पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं. चलिए जानते हैं कि सबसे ज्यादा उल्का पिंड कहां गिरते हैं.

उल्का पिंड जिन्हें आम भाषा में टूटते तारे भी कहा जाता है, अंतरिक्ष से पृथ्वी पर गिरने वाले पत्थर या धातु के टुकड़े हैं. ये आकाश में चमकते हुए नजर आते हैं और कई बार पृथ्वी की सतह पर पहुंचकर बड़े गड्ढे या क्रेटर बनाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा उल्का पिंड कहां गिरते हैं और इसके पीछे की वजह क्या है? चलिए जानते हैं.

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वैज्ञानिकों के अनुसार उल्का पिंड पृथ्वी के किसी भी हिस्से में गिर सकते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इनके गिरने की संभावना और सबूत ज्यादा मिलते हैं. अंटार्कटिका सबसे ज्यादा उल्का पिंडों का गढ़ माना जाता है.
वैज्ञानिकों के अनुसार उल्का पिंड पृथ्वी के किसी भी हिस्से में गिर सकते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इनके गिरने की संभावना और सबूत ज्यादा मिलते हैं. अंटार्कटिका सबसे ज्यादा उल्का पिंडों का गढ़ माना जाता है.
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इसका कारण है वहां की बर्फीली चादरें और ठंडा, शुष्क वातावरण. अंटार्कटिका की बर्फ में उल्का पिंड आसानी से संरक्षित हो जाते हैं, क्योंकि वहां नमी और ऑक्सीजन की कमी के कारण ये नष्ट नहीं होते. बर्फ की सफेद सतह पर काले या गहरे रंग के उल्का पिंड आसानी से दिखाई दे जाते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को इन्हें ढूंढने में मदद मिलती है. नासा और अन्य वैज्ञानिक टीमें हर साल अंटार्कटिका में हजारों उल्का पिंड इकट्ठा करती हैं.
इसका कारण है वहां की बर्फीली चादरें और ठंडा, शुष्क वातावरण. अंटार्कटिका की बर्फ में उल्का पिंड आसानी से संरक्षित हो जाते हैं, क्योंकि वहां नमी और ऑक्सीजन की कमी के कारण ये नष्ट नहीं होते. बर्फ की सफेद सतह पर काले या गहरे रंग के उल्का पिंड आसानी से दिखाई दे जाते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को इन्हें ढूंढने में मदद मिलती है. नासा और अन्य वैज्ञानिक टीमें हर साल अंटार्कटिका में हजारों उल्का पिंड इकट्ठा करती हैं.
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इसके अलावा, रेगिस्तानी क्षेत्र जैसे सहारा मरुस्थल और ऑस्ट्रेलिया के शुष्क मैदान भी उल्का पिंडों के लिए मशहूर है. इन क्षेत्रों में कम वनस्पति और खुली जमीन होने के कारण उल्का पिंड आसानी से मिल जाते हैं. भारत में भी, महाराष्ट्र की लोणार झील और राजस्थान का रामगढ़ क्रेटर उल्का पिंडों के प्रभाव से बने हैं, जो वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण हैं.
इसके अलावा, रेगिस्तानी क्षेत्र जैसे सहारा मरुस्थल और ऑस्ट्रेलिया के शुष्क मैदान भी उल्का पिंडों के लिए मशहूर है. इन क्षेत्रों में कम वनस्पति और खुली जमीन होने के कारण उल्का पिंड आसानी से मिल जाते हैं. भारत में भी, महाराष्ट्र की लोणार झील और राजस्थान का रामगढ़ क्रेटर उल्का पिंडों के प्रभाव से बने हैं, जो वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण हैं.
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उल्का पिंड मुख्य रूप से क्षुद्रग्रह बेल्ट (मंगल और बृहस्पति के बीच) से आते हैं. ये छोटे-बड़े पत्थर या धातु के टुकड़े अंतरिक्ष में भटकते रहते हैं और जब पृथ्वी की कक्षा में आते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण वायुमंडल में प्रवेश करते हैं.
उल्का पिंड मुख्य रूप से क्षुद्रग्रह बेल्ट (मंगल और बृहस्पति के बीच) से आते हैं. ये छोटे-बड़े पत्थर या धातु के टुकड़े अंतरिक्ष में भटकते रहते हैं और जब पृथ्वी की कक्षा में आते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण वायुमंडल में प्रवेश करते हैं.
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वायुमंडल में घर्षण के कारण ये जलने लगते हैं, जिससे हमें आकाश में चमकती रोशनी दिखती है. कुछ उल्का पिंड इतने बड़े होते हैं कि वायुमंडल में पूरी तरह नष्ट नहीं होते और पृथ्वी पर गिरकर क्रेटर बनाते
वायुमंडल में घर्षण के कारण ये जलने लगते हैं, जिससे हमें आकाश में चमकती रोशनी दिखती है. कुछ उल्का पिंड इतने बड़े होते हैं कि वायुमंडल में पूरी तरह नष्ट नहीं होते और पृथ्वी पर गिरकर क्रेटर बनाते
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एक अनुमान के मुताबिक पूरी पृथ्वी पर प्रति वर्ष लगभग 6,100 उल्कापिंड गिरते हैं, लेकिन इनका आकार इतना छोटा होता है कि ये नुकसान नहीं पहुंचाते. बड़े उल्का पिंडों के गिरने की घटनाएं दुर्लभ हैं.
एक अनुमान के मुताबिक पूरी पृथ्वी पर प्रति वर्ष लगभग 6,100 उल्कापिंड गिरते हैं, लेकिन इनका आकार इतना छोटा होता है कि ये नुकसान नहीं पहुंचाते. बड़े उल्का पिंडों के गिरने की घटनाएं दुर्लभ हैं.
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1908 की तुंगुस्का घटना (रूस) या 2013 में रूस के चेल्याबिंस्क में हुआ विस्फोट. इन घटनाओं से पता चलता है कि उल्का पिंड पृथ्वी के लिए खतरा भी बन सकते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि 6.5 करोड़ साल पहले मेक्सिको में गिरा उल्का पिंड डायनासोर के विलुप्त होने का कारण बना.
1908 की तुंगुस्का घटना (रूस) या 2013 में रूस के चेल्याबिंस्क में हुआ विस्फोट. इन घटनाओं से पता चलता है कि उल्का पिंड पृथ्वी के लिए खतरा भी बन सकते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि 6.5 करोड़ साल पहले मेक्सिको में गिरा उल्का पिंड डायनासोर के विलुप्त होने का कारण बना.

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