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कितना कीमती होता है ज्वालामुखी का लावा, जानें किन-किन चीजों में होता है इस्तेमाल?
ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा भले ही विस्फोट के समय तबाही लाता है, लेकिन इसे ठंडा होने के बाद बनने वाली चट्टानें और मिट्टी बहुत उपयोगी और कीमती मानी जाती हैं.
ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर बनी वे दरारें होती हैं, जिनसे गर्म लावा, गैस और राख बाहर निकलती है. यह पृथ्वी के अंदर मौजूद पिघली चट्टानों यानी मैग्मा को बाहर आने का रास्ता देती है. वहीं ज्यादातर ज्वालामुखी को हम तबाही से जोड़कर देखते हैं लेकिन सच यह है कि ज्वालामुखी प्रकृति और इंसानों दोनों के लिए कई कीमती चीज भी लेकर आती है. ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा से बनी उपजाऊ मिट्टी, कीमती खनिज और ऊर्जा संसाधन इसके बड़े उदाहरण माने जाते हैं. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि ज्वालामुखी का लावा कितना कीमती होता है और इसे किन-किन चीजों में इस्तेमाल किया जाता है?
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ज्वालामुखी में जब विस्फोट होता है, उस वक्त उससे निकलने वाला लावा भले ही तबाही लाता है, लेकिन ठंडा होने के बाद इससे बनने वाली चट्टानें और मिट्टी बहुत उपयोगी और कीमती मानी जाती है. लावा से बनने वाले पत्थर, खनिज और मिट्टी का इस्तेमाल खेती से लेकर निर्माण और ज्वेलरी तक में किया जाता है. इसी वजह से ज्वालामुखी का लावा दुनिया के कई देशों में आर्थिक रूप से भी बहुत अहम माना जाता है.
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ठंडा होने पर लावा से बेसाल्ट, ऑब्सिडियन और प्यूमिस जैसे खास पत्थर बनते हैं. बेसाल्ट का उपयोग सड़कें, पुल और इमारतें बनाने में बड़े पैमाने पर किया जाता है, क्योंकि यह बहुत मजबूत होता है. वहीं ऑब्सिडियन अपने काले कांच जैसी चमक के कारण गहनों और सजावटी चीजों के लिए इस्तेमाल होता है. इसके अलावा प्यूमिस ब्यूटी प्रोडक्ट, स्क्रब और निर्माण सामग्री में काम आता है.
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ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बनने वाली मिट्टी में प्राकृतिक पोषक तत्व भरपूर रहते हैं. यह मिट्टी फैसले उगाने के लिए बहुत उपयुक्त मानी जाती है. इस मिट्टी की वजह से इटली, हवाई और जापान के कई क्षेत्रों में अंगूर, केला और कॉफी जैसी फसल बड़ी मात्रा में उगाई जाती है. भारत में भी काली मिट्टी वाले कई इलाके पुराने ज्वालामुखी क्षेत्र से बने हैं.
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कुछ ज्वालामुखी का लावा अपने साथ पेरिडॉट, ऑब्सिडियन और कभी-कभी हीरे जैसे कीमती रत्न तक लेकर आते हैं. ये रत्न बाद में ज्वैलरी इंडस्ट्री में बड़ी कीमत पर बिकते हैं. खासकर ऑब्सिडियन और पेरिडॉट को दुनियाभर में खूब पसंद किया जाता है.
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इसके अलावा ज्वालामुखी क्षेत्र में धरती के अंदर मौजूद गर्मी का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जाता है. कई देश इसी गर्मी से बिजली बनाते हैं, जिसे भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं. यह ऊर्जा सस्ती और प्राकृतिक मानी जाती है.
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ज्वालामुखी के लावा से बने पहाड़, क्रेटर और गर्म झरने बड़ी संख्या में पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं. ऐसे इलाकों में पर्यटन स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और आय का साधन भी बन जाता है.
Published at : 26 Nov 2025 05:10 PM (IST)
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