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कितने में आती है चांगथांगी बकरी, जिसकी ऊन से बनती है पश्मीना शॉल?

Changthangi Goat Cost: जिस पश्मीना को दुनिया शान से ओढ़ती है, उसको भेड़ से नहीं, बल्कि बकरी की ऊन से बनाया जाता है. आइए जानते हैं कि इस बकरी की कीमत क्या होती है.

Changthangi Goat Cost: जिस पश्मीना को दुनिया शान से ओढ़ती है, उसको भेड़ से नहीं, बल्कि बकरी की ऊन से बनाया जाता है. आइए जानते हैं कि इस बकरी की कीमत क्या होती है.

लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों में रहने वाली चांगथांगी बकरी को दुनिया में सबसे खास माना जाता है. यही वह प्रजाति है जिसकी मुलायम और गर्म ऊन से पश्मीना शॉल बनती है, जिसे पहनना सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि एक स्टेटस सिंबल माना जाता है. लेकिन इसके पीछे की असली कहानी है उस बकरी की, जिसकी ऊन निकालने में सालों लग जाते हैं. यह बकरी जितनी खूबसूरत होती है, उतनी ही महंगी भी.

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भारत में एक चांगथांगी बकरी की औसत कीमत 10,000 रुपये से 12,000 रुपये तक होती है, लेकिन यह तो सामान्य दर है. बकरी की उम्र, ऊन की गुणवत्ता, सेहत और प्रजनन क्षमता जैसी चीजें कीमत को ऊपर-नीचे करती रहती हैं.
भारत में एक चांगथांगी बकरी की औसत कीमत 10,000 रुपये से 12,000 रुपये तक होती है, लेकिन यह तो सामान्य दर है. बकरी की उम्र, ऊन की गुणवत्ता, सेहत और प्रजनन क्षमता जैसी चीजें कीमत को ऊपर-नीचे करती रहती हैं.
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कई बार ऊन की बेहतर गुणवत्ता के कारण कीमत इससे भी अधिक हो जाती है. स्थानीय चरवाहों के अनुसार नर बकरियों की कीमत ऊन के हिसाब से 350 से 375 रुपये प्रति किलो, जबकि मादा की कीमत 280 से 320 रुपये प्रति किलो तक रहती है.
कई बार ऊन की बेहतर गुणवत्ता के कारण कीमत इससे भी अधिक हो जाती है. स्थानीय चरवाहों के अनुसार नर बकरियों की कीमत ऊन के हिसाब से 350 से 375 रुपये प्रति किलो, जबकि मादा की कीमत 280 से 320 रुपये प्रति किलो तक रहती है.
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यह फर्क इसलिए है क्योंकि नर बकरियों में ऊन की मात्रा और क्वालिटी कई मामलों में बेहतर पाई जाती है.  चांगथांगी बकरी सिर्फ एक पशु नहीं, बल्कि पहाड़ों की कठोर जिंदगी के बीच पनपा हुआ एक ऐसा खजाना है जो सिर्फ अत्यधिक ठंड में ही अपना असली पश्मीना कोट विकसित करती है.
यह फर्क इसलिए है क्योंकि नर बकरियों में ऊन की मात्रा और क्वालिटी कई मामलों में बेहतर पाई जाती है. चांगथांगी बकरी सिर्फ एक पशु नहीं, बल्कि पहाड़ों की कठोर जिंदगी के बीच पनपा हुआ एक ऐसा खजाना है जो सिर्फ अत्यधिक ठंड में ही अपना असली पश्मीना कोट विकसित करती है.
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यानी तापमान जितना कम, ऊन की क्वालिटी उतनी ही बेहतरीन. यही कारण है कि यह प्रजाति दुनिया में केवल कुछ चुनिंदा क्षेत्रों, जैसे लद्दाख, चांगथांग प्लेटो और तिब्बत में ही पाई जाती है. कठोर जलवायु की वजह से इन बकरियों की देखभाल भी बेहद चुनौतीपूर्ण होती है, जिससे इनकी कीमत और भी बढ़ जाती है.
यानी तापमान जितना कम, ऊन की क्वालिटी उतनी ही बेहतरीन. यही कारण है कि यह प्रजाति दुनिया में केवल कुछ चुनिंदा क्षेत्रों, जैसे लद्दाख, चांगथांग प्लेटो और तिब्बत में ही पाई जाती है. कठोर जलवायु की वजह से इन बकरियों की देखभाल भी बेहद चुनौतीपूर्ण होती है, जिससे इनकी कीमत और भी बढ़ जाती है.
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बाजार की मांग भी कीमत को काफी प्रभावित करती है. पश्मीना शॉल दुनिया भर में बिकती हैं, और चांगथांगी ऊन की डिमांड साल-दर-साल बढ़ रही है. ऐसे में इनकी कीमतें लगातार ऊपर जाती दिखती हैं.
बाजार की मांग भी कीमत को काफी प्रभावित करती है. पश्मीना शॉल दुनिया भर में बिकती हैं, और चांगथांगी ऊन की डिमांड साल-दर-साल बढ़ रही है. ऐसे में इनकी कीमतें लगातार ऊपर जाती दिखती हैं.
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कई बार सामान्य बकरियों की कीमत जहां 7,224 रुपये प्रति क्विंटल तक होती है, वहीं चांगथांगी बकरी अपनी ऊन और प्रजातीय महत्व के कारण कहीं ज्यादा महंगी बिकती है.
कई बार सामान्य बकरियों की कीमत जहां 7,224 रुपये प्रति क्विंटल तक होती है, वहीं चांगथांगी बकरी अपनी ऊन और प्रजातीय महत्व के कारण कहीं ज्यादा महंगी बिकती है.
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इनकी कीमत का एक और बड़ा कारण है, सीमित उत्पादन. एक चांगथांगी बकरी साल में केवल 80-170 ग्राम तक का शुद्ध पश्मीना कोट देती है. इतना कम ऊन मिलने के कारण एक शॉल बनाने में कई महीनों से लेकर एक साल तक का समय लग सकता है. यही वजह है कि बाजार में एक प्रीमियम पश्मीना शॉल की कीमत हजारों से लेकर लाखों तक होती है.
इनकी कीमत का एक और बड़ा कारण है, सीमित उत्पादन. एक चांगथांगी बकरी साल में केवल 80-170 ग्राम तक का शुद्ध पश्मीना कोट देती है. इतना कम ऊन मिलने के कारण एक शॉल बनाने में कई महीनों से लेकर एक साल तक का समय लग सकता है. यही वजह है कि बाजार में एक प्रीमियम पश्मीना शॉल की कीमत हजारों से लेकर लाखों तक होती है.

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