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अब मशीनें लड़ेंगी जंग! मिलिट्री AI में आई क्रांतिकारी तकनीक से बदलेगा युद्ध का भविष्य
Military AI Technology: परमाणु बम के बाद अब कोई और तकनीक अगर युद्ध की दुनिया को सबसे ज़्यादा बदलने की ताकत रखती है तो वह है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस.
परमाणु बम के बाद अब कोई और तकनीक अगर युद्ध की दुनिया को सबसे ज़्यादा बदलने की ताकत रखती है तो वह है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस. ये तकनीक दुश्मन को तुरंत पहचान कर निशाना बनाने, साइबर हमलों को अंजाम देने, ड्रोन व लड़ाकू विमानों को खुद से उड़ाने और यहां तक कि हमला करने का निर्णय खुद लेने में भी सक्षम हो रही है.
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हालांकि यह तेज़ी से विकसित हो रही तकनीक युद्ध क्षेत्र में बड़े बदलाव और ताकत लाने का वादा करती है, लेकिन साथ ही यह अस्थिरता और खतरों की आशंका भी बढ़ा रही है. इसी को लेकर अमेरिका के CNAS (Center for a New American Security) के विशेषज्ञों ने सैन्य AI को सुरक्षित और सहयोगी ढांचे के भीतर लाने की चर्चा तेज कर दी है.
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रिपोर्ट की मुख्य बातें में अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) ने अब तक युद्ध में अत्याधुनिक तकनीकों का सफल प्रयोग किया है लेकिन AI और ऑटोनॉमस सिस्टम्स (स्वचालित प्रणालियों) से जुड़े नए खतरे हैं. जैसे इनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया का अस्पष्ट होना और उनके प्रशिक्षण डेटा पर अत्यधिक निर्भरता.
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विशेषज्ञ जोश वालिन की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और उसके प्रतिद्वंद्वी देशों में यह तकनीक बेहद तेज़ी से आगे बढ़ रही है. इसलिए यह ज़रूरी हो गया है कि एक व्यावहारिक और लचीला ढांचा अभी से तैयार किया जाए ताकि रक्षा विभाग AI का इस्तेमाल सुरक्षित और प्रभावी ढंग से कर सके.
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इस सप्ताह CNAS डिफेंस प्रोग्राम ने एक नई पहल की शुरुआत की है जिसमें यह देखा जाएगा कि AI और ऑटोनॉमस टेक्नोलॉजी कैसे युद्ध की रणनीति और संचालन को बदल रहे हैं. यूक्रेन से लेकर रेड सी तक, AI आधारित टारगेटिंग सिस्टम और ऑटोनॉमस ड्रोन पहले ही जंग का चेहरा बदल चुके हैं. अब यह पहल यह समझने की कोशिश करेगी कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश भविष्य के युद्धों में इस तकनीक का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं और इसके लिए तकनीकी व नीतिगत बदलाव क्या ज़रूरी होंगे.
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जहां एक ओर अमेरिका और रूस की पारंपरिक द्विध्रुवीय परमाणु व्यवस्था थी, वहीं अब चीन भी अपनी परमाणु ताकत में तेजी से वृद्धि कर रहा है. ऐसे में AI का सैन्य इस्तेमाल परमाणु असंतुलन को और अधिक अस्थिर बना सकता है. इस खतरे को समझते हुए जैकब स्टोक्स, कॉलिन काहल, एंड्रिया केंडल-टेलर और निकोलस लोकर की रिपोर्ट यह सुझाती है कि अमेरिका को अब उन जोखिमों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए जो AI और न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी के मेल से पैदा हो रहे हैं.
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पश्चिमी देशों की सबसे बड़ी ताकत उनके गठबंधन हैं लेकिन AI के दौर में मिलकर सैन्य संचालन करना पहले से ज्यादा जटिल हो गया है. हर देश अपनी AI क्षमता बढ़ाने में लगा है, इसलिए इस समय यह बेहद ज़रूरी हो गया है कि AI आधारित सैन्य प्रणालियों में इंटरऑपरेबिलिटी यानी आपसी तालमेल की नींव अभी से रखी जाए, इससे पहले कि कोई बड़ा संघर्ष शुरू हो.
Published at : 13 Jun 2025 08:51 AM (IST)
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