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सौरव गांगुली के महाराज से दादा बनने तक का सफर, कैसे हुई क्रिकेट की शुरुआत? दिलचस्प है कहानी
सौरव गांगुली क्रिकेट की दुनिया में दादा के नाम से मशहूर हैं. गांगुली का नाम भारत के सबसे सफल कप्तानों में शुमार है. हालांकि, उनके लिए क्रिकेट के मैदान में पहुंचना बहुत मुश्किल रहा है.
सौरव गांगुली
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सौरव गांगुली आज 8 जुलाई को अपना 53वां जन्मदिन मना रहे हैं. गांगुली का नाम भारत के सबसे सफत कप्तानों में शामिल है. गांगुली के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं रहा. इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी. आइए जानते हैं उनकी कहानी.
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गांगुली कोलकाता के रहने वाले हैं. जहां पर फुटबॉल बहुत ज्यादा फेमस है, लेकिन गांगुली को क्रिकेट की लत लगी. इसके पीछे उनके भाई स्नेहाशीष बड़ी वजह रहे. गांगुली सभी काम दाएं हाथ से ही करते थे, लेकिन अपने भाई को देखकर उन्होंने बाएं हाथ से खेलना शुरू किया.
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गांगुली के भाई खुद एक क्रिकेटर थे. वो बंगाल के लिए रणजी और फर्स्ट क्लास मैच खेलते थे. हालांकि वो भारतीय टीम में नहीं खेल पाए. लेकिन उनकी वजह से गांगुली ने क्रिकेट खेलना शुरू किया.
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गांगुली के माता-पिता दोनों को ही उनका क्रिकेट खेलना पसंद नहीं था. वो नहीं चाहते थे कि गांगुली क्रिकेट खेलें. लेकिन उनके भाई की वजह से उन्हें खेलने की इजाजत मिली.
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गांगुली को उनके पिता महाराज बुलाते थे. इसके बाद वो अपने क्रिकेट करियर में दादा के नाम से मशहुर हुए. बाद में गांगुली को इंग्लैंड के दिग्गज क्रिकेटर जेफ्री बॉयकॉट ने प्रिंस ऑफ कोलकाता नाम दिया.
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गांगुली ने भारत के लिए 113 टेस्ट और 311 वनडे खेले. टेस्ट में गांगुली ने 35 अर्धशतक और 16 शतक की मदद से 7212 रन बनाए. वहीं वनडे में गांगुली ने 22 शतक और 72 अर्धशतक की बदौलत 11363 रन बनाए. गांगुली ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है.
Published at : 08 Jul 2025 03:18 PM (IST)
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