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फैटी लिवर और इंसुलिन रेसिस्टेंस के बीच क्या कनेक्शन, बिना ब्लड टेस्ट कराए कैसे पहचानें लक्षण?
ये दोनों कंडीशन एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं और धीरे-धीरे शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करती हैं. ज्यादातर लोगों को इनका पता तब चलता है जब लिवर को नुकसान पहुंच चुका होता है.
आजकल बदलती लाइफस्टाइल, गलत खान-पान और कम फिजिकल एक्टिविटी की वजह से फैटी लिवर और इंसुलिन रेसिस्टेंस जैसी समस्याएं बहुत आम हो गई हैं. ये दोनों स्थितियां एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं और धीरे-धीरे शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करती हैं. ज्यादातर लोगों को इनका पता तब चलता है जब लिवर को नुकसान पहुंच चुका होता है या ब्लड शुगर बहुत बढ़ चुकी होती है. लेकिन अगर हम अपने शरीर के कुछ संकेतों को ध्यान से देखें, तो बिना ब्लड टेस्ट के भी इन बीमारियों के शुरुआती लक्षण पहचान सकते हैं.
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फैटी लिवर का मतलब है कि लिवर में जरूरत से ज्यादा फैट जमा हो गया है. लिवर हमारे शरीर का एक अहम अंग है, जो खाने को पचाने, एनर्जी बनाने और शरीर से टॉक्सिन्स निकालने का काम करता है. जब इसमें फैट बढ़ जाता है, तो यह काम धीमा हो जाता है. अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यह स्थिति नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज, फिर सूजन और आगे चलकर फाइब्रोसिस या सिरोसिस तक पहुंच सकती है.
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इंसुलिन एक हार्मोन है जो ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है. जब शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन को ठीक से नहीं पहचानती, तो इसे इंसुलिन रेसिस्टेंस कहते हैं. इस स्थिति में शरीर को ज्यादा इंसुलिन बनाना पड़ता है, जिससे धीरे-धीरे ब्लड शुगर और लिवर फैट दोनों बढ़ने लगते हैं. लिवर में फैट बढ़े तो इंसुलिन रेसिस्टेंस बढ़ता है, और इंसुलिन रेसिस्टेंस बढ़े तो फैट और बढ़ता है. ये दोनों एक-दूसरे को खराब करते रहते हैं.
Published at : 06 Nov 2025 07:24 PM (IST)
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