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क्या मुगलों के यहां भी महिलाएं पहनती थीं हिजाब, कैसे शुरू हुई ये परंपरा?
मुगलकाल में परदा एक सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था था, जो समय के साथ धार्मिक प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा. आइए जानें कि यह परंपरा कब से शुरू हुई.
हिजाब आज सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि राजनीति, पहचान और इतिहास की बहस बन चुका है. पटना से लेकर कश्मीर तक उठे ताजा विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मुस्लिम समाज में परदे की परंपरा हमेशा से धार्मिक थी? खासतौर पर मुगलकाल में, जहां सत्ता, शान और संस्कृति का मेल था, क्या वहां की महिलाएं आज के अर्थों में हिजाब पहनती थीं या परदा कुछ और ही था?
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बिहार में नियुक्ति पत्र वितरण के दौरान एक महिला डॉक्टर के हिजाब को लेकर उठे विवाद ने पूरे देश में चर्चा छेड़ दी है. इस पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ साहित्यिक और सामाजिक हस्तियों की टिप्पणियां भी सामने आईं.
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इसी बहस के बीच इतिहास की ओर लौटना जरूरी हो गया है, ताकि यह समझा जा सके कि हिजाब या परदा की अवधारणा वास्तव में कहां से आई और मुगल शासन में इसका स्वरूप क्या था.
Published at : 21 Dec 2025 02:45 PM (IST)
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