कोई नीति लागू किये बगैर भारत कैसे रोक पायेगा जनसंख्या-विस्फोट?

आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी पर दिए गए भाषण के बाद से ही देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने को लेकर बवाल मचा हुआ है. हालांकि मोदी सरकार कानून बनाने के पक्ष में नहीं है लेकिन संघ का लगातार बढ़ता दबाव सरकार को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनाने पर तो अवश्य मजबूर कर सकता है. एक सवाल ये भी है जब तक केंद्र ऐसी नीति नहीं बनाता, तो क्या राज्यों को इसके लिए अपनी अलग नीति बनाने की पहल करनी चाहिये?
हालांकि मोहन भागवत ने अपने भाषण के जरिये सरकार को साफ संदेश दिया है कि भारत को व्यापक सोच के बाद जनसंख्या नीति तैयार करनी चाहिए और यह सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए. उनका जोर इस बात पर भी था कि जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या संतुलन एक महत्वपूर्ण विषय है जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
हालांकि राजस्थान, मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और गुजरात चार ऐसे राज्य हैं, जो जनसंख्या नियंत्रण पर अपनी नीति लागू कर चुके हैं और पिछले साल ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी इस संबंध में एक विधेयक पारित किया था. उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण बिल 2022 को पिछले साल 11 जुलाई को जब सरकार ने लॉन्च किया था तो साफ किया गया था कि एक साल बाद इसे प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा.
बीते दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ जब जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरूकता रथों को रवाना कर रहे थे तो उन्होंने सीधे तो नहीं, संकेतों में जनसंख्या विस्फोट को प्रदेश के विकास में बाधक बताया था. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या बिल लॉन्च किए जाने के एक साल के बाद उसे लागू कर दिया गया है? हालांकि इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई बयान सामने नहीं आया है, लेकिन नियमों के आधार पर इसे प्रदेश में लागू किया जा सकता है.
दरअसल, पिछले कुछ सालों में संघ व बीजेपी नेताओं की तरफ से जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने की मांग इसलिये तेज हुई है क्योंकि उन्हें लगता है कि एक ख़ास समुदाय यानी मुसलमानों की आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही है. लेकिन मुस्लिम नेता व विचारक इस धारणा को गलत बताते हुए आंकड़ों के दम पर दावा करते हैं कि पिछले एक दशक में उनकी आबादी की रफ़्तार बढ़ने की बजाय घट रही है.
भागवत के बयान पर हैदराबाद से लोकसभा सांसद और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दो ट्वीट किए थे. दरअसल, भागवत इससे पहले कह चुके हैं कि हिंदू और मुसलमान दोनों के डीएनए एक ही हैं. ओवैसी ने इसी पर तंज करते हुए कहा, ''जब हिंदू और मुसलमान का डीएनए एक ही है तो फिर इसमें संतुलन की बात कहां से आई. ''
ओवैसी ने ये भी कहा, "जनसंख्या नियंत्रण की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि हमने पहले ही रिप्लेसमेंट रेट हासिल कर लिया है. चिंता का विषय है उम्रदराज लोगों की बढ़ती आबादी और बेरोजगार नौजवान जो कि अपने बुजुर्गों की मदद नहीं कर पा रहे हैं. मुसलमानों के फर्टिलिटी रेट में सबसे तेज गति से कमी आई है.
लेकिन मुस्लिमों में बुद्धिजीवियों का एक तबका ऐसा भी है जो जनसंख्या नियंत्रण पर भागवत के विचारों से सहमत है और उन्होंने इसका स्वागत भी किया है. शिक्षित मुसलमानों के एक पांच सदस्यीय दल ने हाल ही में मोहन भागवत से मुलाकात की थी जिसमें पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, भारतीय सेना के पूर्व उप-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह (रिटायर्ड), उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीक़ी और एक कारोबारी साद शेरवानी शामिल थे. बता दें कि क़ुरैशी ने पिछले साल ही इस मुद्दे पर एक किताब भी लिखी है - 'द पॉपुलेशन मिथ : इस्लाम, फ़ैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया'.
भागवत से मुलाकात के दौरान उन्होंने अपनी यह किताब भी उन्हें भेंट की थी. संघ प्रमुख के विचार का स्वागत करते हुए कुरैशी कहते हैं- "भागवत ने मुसलमानों का नाम नहीं लिया. उन्होंने इस तरह की कोई बात नहीं की कि मुसलमान जानबूझकर आबादी बढ़ा रहे हैं ताकि राजनीतिक सत्ता हासिल कर सकें. उन्होंने जनसंख्या के संबंध में शिक्षा, सेवाएं और आमदनी की बात की है. उन्होंने बहुत ही संतुलित बात की है. उनकी बातों का मुख्य बिंदु यही है कि हर समाज, हर मजहब के लोगों को फ़ैमिली प्लानिंग करनी चाहिए. "
कुरेशी के मुताबिक "जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने और कोई नीति बनाने में बहुत बड़ा फर्क है. भागवत ने जनसंख्या नीति की बात की है ना कि जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की. नीति का मतलब शिक्षा देना, स्वास्थ्य सेवाएं देना और ग़रीबी दूर करना भी है. " लेकिन सच तो ये है कि जिस रफ्तार से भारत में आबादी की रफ़्तार बढ़ रही है, वह बेहद चिंताजनक है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्ष यानी 2023 में भारत अपने पड़ोसी देश चीन (China)को पीछे छोड़ दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में जाना जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया कि नवंबर 2022 के मध्य तक दुनिया की आबादी आठ अरब तक पहुंचने का अनुमान है.
भारत में अंतिम जनगणना साल 2011 में हुई थी, जिसके अनुसार, भारत की कुल आबादी एक अरब 20 करोड़ है. इसमें हिंदू करीब 80 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की आबादी 14. 2 फीसदी थी. ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन कुल मिलाकर भारत की आबादी के महज छह फीसदी हैं.
भारत की आबादी हर महीने क़रीब 10 लाख की रफ्तार से बढ़ रही है. यानी साल भर में करीब सवा करोड़ जनसंख्या बढ़ जाती हैऔर अगर यही दर जारी रही तो भारत, चीन को पछाड़ कर सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा. लिहाजा, किसी ठोस नीति को लागू किये बगैर भारत आखिर कैसे रोक पायेगा जनसंख्या का ये विस्फ़ोट?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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