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सातवें महीने में ही हो गई डिलीवरी तो ये कितना खतरनाक? जानें बच्चे की सेहत पर क्या पड़ता है असर

महिलाओं के लिए गर्भावस्था में 9 महीने तक बच्चे को रखना जरूरी होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर कोई महिला सातवें महीने में बच्चे को जन्म देती है, तो उसका असर सहेत पर क्या पड़ता है.

महिलाओं को डॉक्टर्स समेत सभी एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि गर्भावस्था में 9 महीने तक बच्चे को रखना जरूरी होता है. हालांकि कुछ स्थिति में महिलाओँ को सातवें और आठवें महीने में भी बच्चों को जन्म देना पड़ता है. आज हम आपको बताएंगे कि सातवें महीने में डिलीवरी होना कितना खतरनाक होता है, इससे क्या-क्या जोखिम बढ़ जाता है.  

गर्भावस्था

अब सवाल ये है कि आम तौर पर महिलाओं को गर्भावस्था के बारे में कैसे पता चलता है. बता दें कि गर्भावस्यथा के समय महिलाओं को इसके लक्षण दिखने लगते हैं, कुछ स्थितियों में ये लक्षण नहीं भी दिखते हैं. लेकिन कुछ महिलाओं के ऊपर तो पीरियड्स में देरी होने के साथ बाकी सब लक्षण शरीर पर दिखाई देने लगते हैं. बता दें कि गर्भधारण के 1-2 सप्ताह बाद इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग हो सकती है, यह हल्का रक्तस्राव या थोड़ी मात्रा में गुलाबी रंग का स्राव हो सकता है. इतना ही नही भ्रूण के गर्भाशय की दीवार से जुड़ने पर हल्का ऐंठन हो सकता है. गर्भावस्था के हार्मोन सूजन का कारण बन सकते हैं.हार्मोनल उतार-चढ़ाव से सिरदर्द हो सकता है.

शरीर में होते हैं ये बदलाव 

इसके अलावा गर्भावस्थ कंसीव करने के बाद महिलाएं जब सुबह उठती हैं, तो उन्हें उल्टी या मतली जैसा महसूस हो सकता है. यह दिन में कभी भी हो सकता है. माना जाता है कि ऐसा हार्मोनल बदलाव की वजह से हो सकता है. ऐसे लक्षण होने पर प्रेगनेंसी टेस्ट करवाना चाहिए. उल्टी और मतली दिन या रात के किसी भी समय हो सकती है.गर्भावस्था के हार्मोन मूड स्विंग का कारण बन सकते हैं. खासकर कंसीव होने के बाद ब्रेस्ट में बदलाव महसूस हो सकता है. इससे ब्रेस्ट में भारीपन, सूजन और दर्द हो सकता है. ये प्रेग्नेंसी के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं. इतना ही नहीं निपल्स का रंग गहरा हो सकता है. निपल्स के चारों तरफ त्वचा में बदलाव हो सकता है.

गर्भावस्था का समय

डॉक्टर्स के मुताबिक अच्छे और स्वस्थ बच्चों के लिए 8 महीने से अधिक करीब 9 महीने की गर्भावस्था होनी ही चाहिए. लेकिन कई महिलाओं को अलग-अलग कारणों और दर्द के कारण पहले भी बच्चों को जन्म देना पड़ता है. एक्सपर्ट के मुताबिक गर्भावस्था के सातवें महीने में डिलीवरी होना प्रीमैच्योर डिलीवरी या प्रीटर्म लेबर कहलाता है. यह स्थिति खतरनाक हो सकती है. 

प्रीमैच्योर डिलीवरी

प्रीमैच्योर डिलीवरी में मां और बच्चे दोनों को लेकर खतरा बढ़ जाता है. अगर बच्चा इस दौरान जन्म लेता है, तो उसे शारीरिक रूप से कई तरह के दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जैसे सांस लेने में भी दिक्कत होती है. इसके अलावा समय से पहले जन्मे बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. हार्ट डिज़ीज़ का खतरा,मस्तिष्क से जुड़ी परेशानियां, पाचन से जुड़ी परेशानियां भी हो सकती हैं. 

ये भी पढ़ें:भारत में तेजी से फैल रहे ये दो तरह के कैंसर, महिलाओं के लिए बढ़ रहा खतरा; देखें आंकड़े 

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