दिल्ली: नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने फिर की मांग, 'सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए स्कूल फीस बिल'
Delhi News: दिल्ली में नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने कहा कि जब तक जनता की रायशुमारी नहीं ली जाती है, तब तक पिछले साल की स्कूल फीस को ही माना जाए और उसी के बराबर फीस ली जाए.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी सरकार से एक बार फिर स्कूल फीस बिल को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की है. नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने कहा कि इस बिल पर अभी तक किसी से कोई रायशुमारी नहीं की गई है. इसलिए इसे सिलेक्ट कमेटी को भेजा जाना चाहिए. सिलेक्ट कमेटी में ‘आप’ और बीजेपी के विधायक होंगें. कमेटी द्वारा बिल पर जनता से राय ली जाए.
उन्होंने कहा, ''जब तक जनता की रायशुमारी नहीं ली जाती है, तब तक पिछले साल की फीस को ही माना जाए और उसी के बराबर फीस ली जाए. साथ ही इस साल की बढ़ी फीस को रद्द किया जाए.''
सरकार का ध्यान सिर्फ पब्लिक स्कूलों के इर्द-गिर्द-अनिल झा
उधर, अनिल झा ने कहा, ''शिक्षा पर पूरी सरकार का ध्यान केवल पब्लिक स्कूलों के इर्द-गिर्द घूम रहा है. यह विधेयक अगस्त में लाया गया है. अगर यह बिल मार्च-अप्रैल में लाया जाता, तो पब्लिक स्कूल फीस नहीं बढ़ाते, जिन्होंने बेतहाशा फीस बढ़ा दी? तब अभिभावक स्कूलों के दरवाजों पर खड़े होकर रोते रहे और सरकार के पास मदद मांगते रहे, लेकिन सरकार ने जानबूझकर इसे तब नहीं लाया.''
'शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा'
उन्होंने आगे कहा, ''बीजेपी के एक विधायक ने तो कह ही दिया कि यह ऐसा विधेयक है, जो स्कूलों को फीस बढ़ाने का अधिकार देता है. यह मूल रूप से शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा दे रहा है, जो पूंजीपतियों के इर्द-गिर्द घूम रहा है. एक-एक स्कूल के पास 50-50 करोड़ रुपये की सावधि जमा (एफडी) है. वे इन एफडी के जरिए स्कूल का पूरा खर्च चलाते हैं, फिर भी फीस बढ़ाते हैं.
जूते स्कूल से ही खरीदने पड़ते हैं- अनिल झा
AAP नेता ने ये भी कहा कि कमाल की बात है कि जूते स्कूल से ही खरीदने पड़ते हैं, यूनिफॉर्म स्कूल से ही खरीदनी पड़ती है, खेल के नाम पर अलग पैसे लिए जाते हैं और विभिन्न आयोजनों के नाम पर भी अलग-अलग पैसे वसूले जाते हैं. इससे मध्यम वर्ग की कमर तोड़ दी जाती है.
'सरकार किसी भी मुद्दे पर सुनने को तैयार नहीं'
अनिल झा ने आगे कहा, ''जिन स्कूलों को सरकारी जमीन आवंटित की गई है, वे भी अभिभावकों से सारा पैसा वसूल रहे हैं. मुझे लगता है कि यह सब जनता के खिलाफ है. हम इस पर व्यापक चर्चा चाहते हैं, चाहे वह जीएसटी का मामला हो, स्कूलों में फीस वृद्धि का मामला हो या शिक्षा पर लाए गए पारदर्शिता विधेयक का मामला हो. लेकिन सरकार किसी भी मुद्दे पर सुनने को तैयार नहीं है. अब हम सड़क से लेकर सदन तक हम आंदोलन कर सकते हैं. जब हम बात करते हैं, तो में मार्शल आउट कर दिया जाता है.''
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Source: IOCL






















