हिमाचल की धरती पर पहली बार पहुंचे चालदा महासू, सिरमौर में उमड़ा आस्था का जनसैलाब
Himachal Pradesh News: जौनसार से 70 किमी की पदयात्रा के बाद चालदा महासू महाराज ने टौंस नदी पार कर पहली बार हिमाचल के सिरमौर में प्रवेश किया. पश्मी गांव में देव आगमन को लेकर भारी आस्था का सैलाब उमड़ा.

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में शनिवार (13 दिसंबर) शाम एक ऐतिहासिक और भावुक क्षण देखने को मिला, जब उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र से चली चालदा महासू महाराज की पदयात्रा पहली बार हिमाचल की धरती पर पहुंची. जैसे ही देवता ने टौंस नदी पार कर हिमाचल-उत्तराखंड सीमा में प्रवेश किया, वैसे ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. चारों ओर ढोल-नगाड़ों की गूंज, देव जयकारे और आस्था का अद्भुत दृश्य देखने को मिला.
70 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा
चालदा महासू महाराज की यह पदयात्रा 8 दिसंबर 2025 को उत्तराखंड के हनोल क्षेत्र से शुरू हुई थी. करीब 70 किलोमीटर की यह यात्रा दुर्गम पहाड़ी रास्तों, जंगलों और नदियों को पार करते हुए सिरमौर जिले के शिलाई क्षेत्र तक पहुंची. भारी जनसैलाब के कारण देवता को उत्तराखंड से हिमाचल सीमा में प्रवेश करने में करीब एक घंटे का समय लगा.
पश्मी गांव में होगा विधिवत विराजमान
यह यात्रा सिरमौर के पश्मी गांव में संपन्न होगी, जहां आज रविवार (14 दिसंबर) को चालदा महासू महाराज विधिवत रूप से विराजमान होंगे. पश्मी और घासन गांव के लोगों ने मिलकर लगभग दो करोड़ रुपये की लागत से भव्य मंदिर का निर्माण किया है. पश्मी गांव के 45 और घासन गांव के 15 परिवारों ने इस मंदिर निर्माण में अहम योगदान दिया है.
देव आगमन के अवसर पर उद्योग मंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान, नाहन के विधायक अजय सोलंकी सहित हजारों श्रद्धालु मौजूद रहे. लोगों ने फूल बरसाकर, ढोल-नगाड़ों के साथ और पारंपरिक रीति-रिवाजों से देवता का स्वागत किया. पूरा इलाका धार्मिक उल्लास में डूबा नजर आया.
5 साल पहले पड़ा था देव आगमन का संकेत
पश्मी गांव में महासू महाराज के आगमन की नींव 5 साल पहले ही पड़ चुकी थी. वर्ष 2020 में जौनसार क्षेत्र के दसऊ गांव से एक विशाल बकरा, जिसे स्थानीय भाषा में ‘घांडुआ’ कहा जाता है, अचानक पश्मी गांव आकर रुक गया. दो वर्षों तक ग्रामीण उसे सामान्य पशु मानते रहे. लेकिन 2022 में देव वक्ता के माध्यम से बताया गया कि यह देवता का दूत है, जो देव प्रवास से पहले संकेत के रूप में भेजा जाता है.
मान्यता के अनुसार महासू देवता भगवान शिव और माता पार्वती के अंश से उत्पन्न चार भाइयों बासिक, बोथा, पवासी और चालदा महासू का समूह हैं. ये देवता उत्तराखंड और हिमाचल दोनों क्षेत्रों में न्याय और रक्षा के लिए पूजे जाते हैं. कहा जाता है कि उन्होंने राक्षस किरमिक का वध कर क्षेत्र में शांति स्थापित की थी.
महासू देवता का मुख्य मंदिर उत्तराखंड के हनोल में स्थित है, जहां अखंड ज्योति जलती रहती है और एक रहस्यमयी जलधारा निकलती है. यहां आज भी हर साल राष्ट्रपति भवन से नमक भेजा जाता है. यह परंपरा सदियों पुरानी है, जब पहले ब्रिटिश वायसराय और अब राष्ट्रपति अपनी मन्नत पूरी होने पर न्याय के देवता महासू को नमक अर्पित करते हैं. यह परंपरा आस्था, विश्वास और न्याय की प्रतीक मानी जाती है.
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