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LIST: वह सामान जो अब तक हमारे जीवन का हिस्सा रहा है, अब इतिहास का हिस्सा है

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ओल्ड प्रेस (आयरन) का इस्तेमाल लंबे समय से किया जा रहा है. लोहे से बने आयरन में लोग कोयला डालकर कपड़े को प्रेस करते हैं. ये प्रेस वजन में काफी भारी होता है. हालांकि, मार्किट में इलेक्ट्रिक प्रेस आ जाने के कारण लोग इस्तेमाल कम ही करते हैं.
ओल्ड प्रेस (आयरन) का इस्तेमाल लंबे समय से किया जा रहा है. लोहे से बने आयरन में लोग कोयला डालकर कपड़े को प्रेस करते हैं. ये प्रेस वजन में काफी भारी होता है. हालांकि, मार्किट में इलेक्ट्रिक प्रेस आ जाने के कारण लोग इस्तेमाल कम ही करते हैं.
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सदाबहार गीतों की आवाज़ हो या क्रिकेट मैच का शोर, लोग रेडियो से ऐसे चिपकते थे जैसे फिर दिनभर और कोई काम ना हो. टीवी आने से पहले रेडियो का बड़ा महत्व होता था. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सुबह से ही रेडियो चलाकर बैठ जाते थे. सुबह के भजन से लेकर शाम के आकाशवाणी समाचार तक लोग रेडियो को चालू रखते थे. पुराने दौर में रेडियो ही एंटरटेनमेंट का जरिया हुआ करता था.
सदाबहार गीतों की आवाज़ हो या क्रिकेट मैच का शोर, लोग रेडियो से ऐसे चिपकते थे जैसे फिर दिनभर और कोई काम ना हो. टीवी आने से पहले रेडियो का बड़ा महत्व होता था. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सुबह से ही रेडियो चलाकर बैठ जाते थे. सुबह के भजन से लेकर शाम के आकाशवाणी समाचार तक लोग रेडियो को चालू रखते थे. पुराने दौर में रेडियो ही एंटरटेनमेंट का जरिया हुआ करता था.
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एक समय था जब लोगों के घरों में बिजली नहीं हुआ करती थी. लोग लैंप के सहारे ही रात काटते थे. ऐसे में रात के समय उन्हें आने जाने में बहुत दिक्कत होती थी. टॉर्च  मिलने से उनकी ये समस्या दूर हो गई. तीन बैट्रियों से चलने वाले टॉर्च को लोग ज्यादातर अपने पास ही रखते थे. रात को सोते समय लोग टॉर्च को सिराहने में रखकर सोते थे ताकि ज़रुरत पड़ने पर वे टॉर्च का इस्तेमाल कर पाएं.
एक समय था जब लोगों के घरों में बिजली नहीं हुआ करती थी. लोग लैंप के सहारे ही रात काटते थे. ऐसे में रात के समय उन्हें आने जाने में बहुत दिक्कत होती थी. टॉर्च  मिलने से उनकी ये समस्या दूर हो गई. तीन बैट्रियों से चलने वाले टॉर्च को लोग ज्यादातर अपने पास ही रखते थे. रात को सोते समय लोग टॉर्च को सिराहने में रखकर सोते थे ताकि ज़रुरत पड़ने पर वे टॉर्च का इस्तेमाल कर पाएं.
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पुराने दौर का म्यूजिक सिस्टम आज के म्यूजिक सिस्टम से काफी अलग होता था. पहले के समय रील वाला म्यूजिक सिस्टम आता था. कैसेट में रील डाला जाता था जिसमें तरह-तरह के गाने फीड किए जाते थे. पहले के समय जगह म्यूजिक स्टोर हुआ करते थे जहां अलग तरीके के कैसेट उपलब्ध होते थे. आज के समय में रील वाला कैसेट कम ही मिल पाता है.
पुराने दौर का म्यूजिक सिस्टम आज के म्यूजिक सिस्टम से काफी अलग होता था. पहले के समय रील वाला म्यूजिक सिस्टम आता था. कैसेट में रील डाला जाता था जिसमें तरह-तरह के गाने फीड किए जाते थे. पहले के समय जगह म्यूजिक स्टोर हुआ करते थे जहां अलग तरीके के कैसेट उपलब्ध होते थे. आज के समय में रील वाला कैसेट कम ही मिल पाता है.
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आधुनिकता के इस दौर में कुछ पुरानी चीज़ों को हम भूलते जा रहे हैं, गैस स्टोव भी उन्हीं में से एक है. एक समय था जब मिट्टी के तेल से खाना पकाया जाता था. इसके लिए हम गैस स्टोप में पंप के जरिए हवा भरते थे. इसके बाद बर्नल के माध्यम से आग जलाते थे. इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने में थोड़ा व्यक्त लगता था. एलपीजी सिलेंडर आने के बाद हम गैस स्टोव का इस्तेमाल कम करने लगे. लेकिन आज भी कई घरों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
आधुनिकता के इस दौर में कुछ पुरानी चीज़ों को हम भूलते जा रहे हैं, गैस स्टोव भी उन्हीं में से एक है. एक समय था जब मिट्टी के तेल से खाना पकाया जाता था. इसके लिए हम गैस स्टोप में पंप के जरिए हवा भरते थे. इसके बाद बर्नल के माध्यम से आग जलाते थे. इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने में थोड़ा व्यक्त लगता था. एलपीजी सिलेंडर आने के बाद हम गैस स्टोव का इस्तेमाल कम करने लगे. लेकिन आज भी कई घरों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
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एक वक्त था जब हम अपने मन की बात टाइपराइटर के जरिए लिखते थे. उस दौर में हर किसी के पास कंप्यूटर नहीं होता था. कोर्ट-कचहरी में भी टाइपराइटर से ही काम होता था. लेकिन अब धीरे-धीरे टाइपराइटर का इस्तेमाल बहुत कम होने लगा है. आज भी कई घरों में टाइपराइटर को यादगार वस्तु के रूप में संग्रह कर रखा जाता है. आज की युवा पीढ़ी को भी अपने जीवन में कम से कम एक बार टाइपराइटर का इस्तेमाल करना ही चाहिए.
एक वक्त था जब हम अपने मन की बात टाइपराइटर के जरिए लिखते थे. उस दौर में हर किसी के पास कंप्यूटर नहीं होता था. कोर्ट-कचहरी में भी टाइपराइटर से ही काम होता था. लेकिन अब धीरे-धीरे टाइपराइटर का इस्तेमाल बहुत कम होने लगा है. आज भी कई घरों में टाइपराइटर को यादगार वस्तु के रूप में संग्रह कर रखा जाता है. आज की युवा पीढ़ी को भी अपने जीवन में कम से कम एक बार टाइपराइटर का इस्तेमाल करना ही चाहिए.
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एक समय था जब चिट्ठियों के जरिए ही लोगों तक संदेश पहुंचाया जाता है. ऐसे में संदेश आने-जाने में कई महीनों का व्यक्त लग जाता था. टेलीफ़ोन की सुविधा मिलने के बाद ना सिर्फ संदेशों का आदान-प्रदान आसान हुआ बल्कि लोग अपने परिचितों से आसानी से बातचीत भी करने लगे. उस दौर में किसी-किसी के पास ही टेलीफ़ोन की सुविधा होती थी. लेकिन लोग अपनों से बात करने के लिए घंटों लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार करते थे. टेलीफ़ोन ने हमारे जीवन को और आसान बना दिया.
एक समय था जब चिट्ठियों के जरिए ही लोगों तक संदेश पहुंचाया जाता है. ऐसे में संदेश आने-जाने में कई महीनों का व्यक्त लग जाता था. टेलीफ़ोन की सुविधा मिलने के बाद ना सिर्फ संदेशों का आदान-प्रदान आसान हुआ बल्कि लोग अपने परिचितों से आसानी से बातचीत भी करने लगे. उस दौर में किसी-किसी के पास ही टेलीफ़ोन की सुविधा होती थी. लेकिन लोग अपनों से बात करने के लिए घंटों लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार करते थे. टेलीफ़ोन ने हमारे जीवन को और आसान बना दिया.
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टेलीविज़न के आने से ना सिर्फ लोगों का मन बहला बल्कि देश और दुनिया की तमाम ख़बरें भी लोग आसानी से जान पाए. नए दौर में अब लोग धीरे-धीरे पुराने टीवी सेट को भूलते जा रहे हैं. एक वक्त था जब हर किसी के घर टीवी नहीं होता था. लोग रामायण-महाभारत या कोई ज़रूरी खबर देखने के लिए एक जगह इक्कठा होते थे. उस दौर में किसी के घर टीवी होना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी. आज भी कुछ लोग उस दौर को याद कर भावुक हो जाते हैं.
टेलीविज़न के आने से ना सिर्फ लोगों का मन बहला बल्कि देश और दुनिया की तमाम ख़बरें भी लोग आसानी से जान पाए. नए दौर में अब लोग धीरे-धीरे पुराने टीवी सेट को भूलते जा रहे हैं. एक वक्त था जब हर किसी के घर टीवी नहीं होता था. लोग रामायण-महाभारत या कोई ज़रूरी खबर देखने के लिए एक जगह इक्कठा होते थे. उस दौर में किसी के घर टीवी होना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी. आज भी कुछ लोग उस दौर को याद कर भावुक हो जाते हैं.
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'फट-फट-फट की आवाज़ करता स्कूटर अब दिखाई नहीं देता. वो दिन अब भी याद आता है जब स्कूटर के पीछे-पीछे कई बच्चे भागते दिखते थे. किसी के घर यदि नया स्कूटर आता था तो आसपास के लोग देखने पहुंच जाते थे. कभी-कभी पुराने स्कूटरों को स्टार्ट करने में भी काफी वक्त लग जाता था. लेकिन फिर भी लोग अपने स्कूटर से लगाव रखते थे. आज के दौर में पुराने स्कूटर को लोग भूलते जा रहे हैं.
'फट-फट-फट की आवाज़ करता स्कूटर अब दिखाई नहीं देता. वो दिन अब भी याद आता है जब स्कूटर के पीछे-पीछे कई बच्चे भागते दिखते थे. किसी के घर यदि नया स्कूटर आता था तो आसपास के लोग देखने पहुंच जाते थे. कभी-कभी पुराने स्कूटरों को स्टार्ट करने में भी काफी वक्त लग जाता था. लेकिन फिर भी लोग अपने स्कूटर से लगाव रखते थे. आज के दौर में पुराने स्कूटर को लोग भूलते जा रहे हैं.

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