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AI आपकी सोच पर काबू पा रहा? जानें कहीं आप AI साइकॉसिस के शिकार तो नहीं, एक्सपर्ट का बड़ा अलर्ट
पिछले कुछ समय से AI साइकॉसिस शब्द तेजी से चर्चा में है. यह उस मानसिक स्थिति को दर्शाता है जिसमें लोग AI चैटबॉट्स से बातचीत करते हुए ऐसी उलझन में पड़ जाते हैं कि वह सच और कल्पना में फर्क नहीं कर पाते.
पिछले कुछ समय से AI साइकॉसिस शब्द तेजी से चर्चा में है. यह उस मानसिक स्थिति को दर्शाता है जिसमें लोग AI चैटबॉट्स से बातचीत करते हुए ऐसी उलझन में पड़ जाते हैं कि उन्हें सच और कल्पना में फर्क करना मुश्किल होने लगता है. कई यूजर्स को यह महसूस होने लगा है कि चैटबॉट की दुनिया ही वास्तविक है जबकि असलियत किसी और ही दिशा में होती है. यह समस्या उन लोगों में ज्यादा दिखाई दे रही है जो पहले से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से गुजर रहे हैं. हालिया अध्ययनों में सामने आया है कि कई लोग काउंसलिंग, सपोर्ट, या आत्महत्या रोकथाम जैसी गंभीर स्थितियों के लिए ChatGPT, Gemini या Grok जैसे AI चैटबॉट्स पर निर्भर हो रहे हैं और यही ओवर-रिलायंस उनकी मानसिक स्थिति बिगाड़ने का कारण बन रहा है.
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डेनमार्क की आरहोस यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक सॉरेन ऑस्टरगार्ड ने अपनी रिसर्च में बताया कि AI चैटबॉट्स अक्सर ऐसे जवाब देते हैं जो सकारात्मक लगते तो हैं लेकिन कई बार वास्तविकता से दूर होते हैं. इससे मानसिक रूप से संवेदनशील यूजर्स की सोच और अधिक भ्रमित हो जाती है. स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी पाया कि कई चैटबॉट्स मानसिक बीमारियों से जुड़े गलत विश्वासों को अनजाने में बढ़ावा दे देते हैं जिससे परेशान लोगों की हालत और खराब हो सकती है.
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विशेषज्ञों का कहना है कि चैटबॉट्स यूजर की भाषा, भावनाओं और विचारों को ही दोहराना शुरू कर देते हैं. इससे एक तरह का इको चैंबर बन जाता है जहां उपयोगकर्ता की नकारात्मक सोच और अधिक गहरी हो जाती है. कुछ मामलों में तो ऐसा भी देखा गया कि मानसिक रूप से कमजोर लोग चैटबॉट्स से बातचीत करते-करते इतनी उलझन में आ गए कि वे गंभीर मानसिक विकारों, यहां तक कि आत्मघाती विचारों की ओर बढ़ गए.
Published at : 18 Nov 2025 10:54 AM (IST)
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