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दो वक्त की रोटी के लिए बदतर स्थिति में इंसान, मन को झकझोर रही हैं मजदूरों के पलायन की तस्वीरें

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सिस्टम से पार पाना हर किसी के बस की बात है नहीं, ट्रेन-बस भी सिर्फ जुगाड़ वालों को मिल पाती हैं, बाकी बेजार ही चले जाते हैं मगर साथ में आइना भी दिखाते हैं कि देश की सड़कों पर खींची जा चुकी मुफलिसी की तमाम लकीरें ये बताती हैं कि आपके खूबसूरत और चमकते-धमकते शहरों के अंदर कितना अंधेरा है और शायद इसीलिए ये लोग जिनका शरीर भी ठीक से साथ नहीं दे रहा, इनको अब अपने गांव की झोपड़ी के अंधकार में ही जिदंगी का आफताब नजर आने लगा है.
सिस्टम से पार पाना हर किसी के बस की बात है नहीं, ट्रेन-बस भी सिर्फ जुगाड़ वालों को मिल पाती हैं, बाकी बेजार ही चले जाते हैं मगर साथ में आइना भी दिखाते हैं कि देश की सड़कों पर खींची जा चुकी मुफलिसी की तमाम लकीरें ये बताती हैं कि आपके खूबसूरत और चमकते-धमकते शहरों के अंदर कितना अंधेरा है और शायद इसीलिए ये लोग जिनका शरीर भी ठीक से साथ नहीं दे रहा, इनको अब अपने गांव की झोपड़ी के अंधकार में ही जिदंगी का आफताब नजर आने लगा है.
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सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या राज्य सरकारें मजदूरों के लिए कुछ नहीं कर पा रही हैं?
सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या राज्य सरकारें मजदूरों के लिए कुछ नहीं कर पा रही हैं?
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आखिर कब, आखिर कब तक ये तस्वीरें देश को देखने को मिलती रहेंगी, कब तक लोग पैदल और ट्रकों में भरे चलते रहेंगे, सिस्टम कब सुधरेगा, सरकारें कब सोचेंगी?
आखिर कब, आखिर कब तक ये तस्वीरें देश को देखने को मिलती रहेंगी, कब तक लोग पैदल और ट्रकों में भरे चलते रहेंगे, सिस्टम कब सुधरेगा, सरकारें कब सोचेंगी?
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देश भर के अलग-अलग राज्यों से पलायन कर रहे मजदूरों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. पलायन कर रहे ज्यादातर मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं. वहीं पंजाब और हरियाणा से भी मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफर कर अपने घरों को लौट ने पर मजबूर हैं.
देश भर के अलग-अलग राज्यों से पलायन कर रहे मजदूरों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. पलायन कर रहे ज्यादातर मजदूर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं. वहीं पंजाब और हरियाणा से भी मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफर कर अपने घरों को लौट ने पर मजबूर हैं.
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स्थिति ये है कि आज इंसान भेड़-बकरियों से बदतर स्थिति में पहुंच गया और इसके लिए जितनी जिम्मेदार सरकार है, उतना ही दोषी है पढ़ा-लिखा शहरी समाज, क्योंकि पिछले कई दिनों और हफ्तों से पैदल ही चलते जा रहे ये वो लोग हैं, जो शहरों के बंगलों- बिल्डिंगों के लिजलिजे तहखानों में जानवरों की तरह पड़े थे, हमारे आस-पास ही रहते थे, कभी दिखते थे, कभी हम देखना नहीं चाहते थे और इस कोरोना काल में शहरों ने दुत्कार दिया, अमीरों ने पैसे देने से इनकार किया तो फिर अब ये दाल-भात की तलाश में सड़कों पर सरफरोशी तमन्ना पाले निकल पड़े तो हर किसी को बखूबी नजर आने लगे, वो भी सैकड़ों-हजारों की संख्या में और इस संख्या के आगे सरकारें और सुविधाएं दोनों बेबस हो गईं.
स्थिति ये है कि आज इंसान भेड़-बकरियों से बदतर स्थिति में पहुंच गया और इसके लिए जितनी जिम्मेदार सरकार है, उतना ही दोषी है पढ़ा-लिखा शहरी समाज, क्योंकि पिछले कई दिनों और हफ्तों से पैदल ही चलते जा रहे ये वो लोग हैं, जो शहरों के बंगलों- बिल्डिंगों के लिजलिजे तहखानों में जानवरों की तरह पड़े थे, हमारे आस-पास ही रहते थे, कभी दिखते थे, कभी हम देखना नहीं चाहते थे और इस कोरोना काल में शहरों ने दुत्कार दिया, अमीरों ने पैसे देने से इनकार किया तो फिर अब ये दाल-भात की तलाश में सड़कों पर सरफरोशी तमन्ना पाले निकल पड़े तो हर किसी को बखूबी नजर आने लगे, वो भी सैकड़ों-हजारों की संख्या में और इस संख्या के आगे सरकारें और सुविधाएं दोनों बेबस हो गईं.
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ऐसे में सरकार ने क्यों नहीं पहले ही सोच लिया कि भूखे लोगों को रोटी नहीं मिलेगी हाल यही होगा और वो लाखों की तनख्वाह उठाने वाले अधिकारी कहां हैं जो सरकारी नीतियां बनाते थे, कहां थी उनकी दुहाई, कहां थी उनकी पढ़ाई लिखाई, जिन्होंने इस दिशा में सोचा ही नहीं, सरकार को समझाया ही नहीं.
ऐसे में सरकार ने क्यों नहीं पहले ही सोच लिया कि भूखे लोगों को रोटी नहीं मिलेगी हाल यही होगा और वो लाखों की तनख्वाह उठाने वाले अधिकारी कहां हैं जो सरकारी नीतियां बनाते थे, कहां थी उनकी दुहाई, कहां थी उनकी पढ़ाई लिखाई, जिन्होंने इस दिशा में सोचा ही नहीं, सरकार को समझाया ही नहीं.
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इस भीषण पलायन के दौर में देश में अब तक 89 मजदूर चलते-चलते रोड और ट्रेन एक्सीडेंट में मारे जा चुके हैं, भुखमरी की वजह से 58 मजूदरों की मौत हुई, चलते-चलते हुई थकान से 29 मजदूर जान से हाथ धो बैठे, चिकित्सा के अभाव में 40 मजदूरों की जान गई, 91 प्रवासी मजदूरों ने अकेलेपन में डर से आत्महत्या कर ली.
इस भीषण पलायन के दौर में देश में अब तक 89 मजदूर चलते-चलते रोड और ट्रेन एक्सीडेंट में मारे जा चुके हैं, भुखमरी की वजह से 58 मजूदरों की मौत हुई, चलते-चलते हुई थकान से 29 मजदूर जान से हाथ धो बैठे, चिकित्सा के अभाव में 40 मजदूरों की जान गई, 91 प्रवासी मजदूरों ने अकेलेपन में डर से आत्महत्या कर ली.
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देश में कोरोना संकट के चलते 24 मार्च से लॉकडाउन जारी है. लॉकडाउन के चलते देश में यातायात सेवाएं ठप हैं. जिसके चलते प्रवासी मजदूरों की परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. हालात से परेशान मजदूर अब पलायन करने को मजबूर हो गए हैं.
देश में कोरोना संकट के चलते 24 मार्च से लॉकडाउन जारी है. लॉकडाउन के चलते देश में यातायात सेवाएं ठप हैं. जिसके चलते प्रवासी मजदूरों की परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. हालात से परेशान मजदूर अब पलायन करने को मजबूर हो गए हैं.

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