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30 दिन में ही क्यों आती है सैलरी, आखिर ये महीने वाला कॉन्सेप्ट क्या है?
कुछ महीने 31 दिन के भी होते हैं, लेकिन कर्मचारियों को सैलरी 30 दिन की ही मिलती है. वहीं, 28 या 29 दिन का महीना होने के बाद भी कंपनी आपको 30 दिन का पैसा सैलरी के रूप में देती है.
नौकरीपेशा लोगों के लिए सैलरी उनका सबसे बड़ा मोटिवेशन होती है. हर कर्मचारी महीने पर सैलरी के लिए ही काम करता है और जब महीने के आखिरी दिन यानी 30 तारीख को सैलरी क्रेडिट होती है तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता.
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हालांकि, क्या आपने कभी ये सोचा है कि सैलरी 30 दिन में ही क्यों आती है? कुछ महीनों में तो 31 दिन भी होते हैं. वहीं, फरवरी तो 28 या 29 दिन की भी होती है. इसके बावजूद हमें 30 दिन की ही सैलरी मिलती है.
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दरअसल, किसी भी कर्मचारी के मासिक वेतन की गणना के लिए एक मानक तरीका इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें महीने को 30 दिनों का मानकर उसकी सैलरी की गणना होती है. यह नियम सैलरी की गणना को आसान बनाने के लिए किया गया है.
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कुछ महीने 31 दिन के भी होते हैं, लेकिन कर्मचारियों को सैलरी 30 दिन की ही मिलती है. वहीं, 28 या 29 दिन का महीना होने के बाद भी कंपनी आपको 30 दिन का पैसा सैलरी के रूप में देती है.
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आपकी सैलरी की गणना में छुट्टी वाले दिन भी गिने जाते हैं. यानी एक महीने में चार या पांच रविवार और इसके अलावा आपके और वीक ऑफ की गणना भी सैलरी में होती है. कंपनी इसके पैसे नहीं काटती है.
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30 दिन की सैलरी की गणना के लिए कानूनी नियम भी है, जिसके तहत ग्रेच्युटी की गणना की जाती है. दरअसल, ग्रेच्युटी की गणना करते समय 30 दिन के महीने में 26 कार्यदिवस मानकर कर्मचारी को 15 दिन का औसत निकालकर भुगतान किया जाता है.
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ग्रेच्युटी की गणना करने के लिए (15 x पिछली सैलरी x काम करने की अवधि)/ 26 फार्मूला इस्तेमाल होता है. यानी इस फार्मूले में 30 दिन का महीना मानकर कर्मचारी को 15 दिन की औसत सैलरी के आसार पर भुगतान किया जाता है.
Published at : 15 May 2025 10:33 PM (IST)
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