Pakistan Loan: IMF ने लगा दी मुहर, पाकिस्तान को मिलने वाली है एक और बड़ी भीख
इवा पेत्रोवा के नेतृत्व में आईएमएफ मिशन ने ईएफएफ और आरएसएफ लोन के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ पिछल हफ्ते बैठक की थी और समझौते पर हस्ताक्षर किए गए बगैर ही मिशन वापस लौट गया था.

पाकिस्तान को एक और बड़ा लोन मिलने वाला है. बुधवार (15 अक्टूबर, 2025) को पाक सरकार और इंटरनेशनल मोनेट्री फंड (IMF) ऋण कार्यक्रमों पर एक कर्मचारी-स्तरीय समझौते (SLA) को लेकर सहमति पर पहुंच गए, जिससे पाकिस्तान के लिए 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर के कर्ज तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार आईएमएफ अपनी विस्तारित निधि सुविधा (EFF) के तहत पाकिस्तान को एक अरब अमेरिकी डॉलर देगा और साथ ही आईएमएफ के एग्जीक्यूटिव बोर्ड से अप्रूवल के बाद पाकिस्तान को रेजीलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (RSF) के तहत 20 करोड़ डॉलर भी दिए जाएंगे. इस तरह उसे कुल 3.3 अरब डॉलर मिलने वाले हैं.
इवा पेत्रोवा के नेतृत्व में आईएमएफ मिशन ने 2024 में सहमत ईएफएफ की दूसरी समीक्षा और इस साल सहमत आरएसएफ जलवायु ऋण की पहली समीक्षा पर पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ पिछले हफ्ते बातचीत पूरी कर ली थी. हालांकि, मिशन कर्मचारी स्तरीय समझौते पर हस्ताक्षर किए बिना ही पाकिस्तान से वापस लौट गया था.
इवा पेत्रोवा बुधवार (15 अक्टूबर, 2025) को जारी बयान में कहा कि कर्मचारी-स्तरीय समझौता अप्रूवल के लिए आईएमएफ के एग्जीक्यूटिव बोर्ड के अधीन है. उन्होंने कहा, 'ईएफएफ के समर्थन से पाकिस्तान का आर्थिक कार्यक्रम व्यापक आर्थिक स्थिरता को मजबूत कर रहा है और बाजार में फिर से विश्वास हासिल कर रहा है.'
उन्होंने पाकिस्तान की नीतिगत प्राथमिकताओं पर हुई प्रगति का उल्लेख करते हुए कहा, 'अधिकारियों ने ईएफएफ और आरएसएफ समर्थित कार्यक्रमों को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की और मौजूदा संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाते हुए सुदृढ़ और विवेकपूर्ण व्यापक आर्थिक नीतियों को बनाए रखने की बात कही.'
उन्होंने कहा कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) एक विवेकपूर्ण मौद्रिक नीति रुख के लिए प्रतिबद्ध है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति 5-7 प्रतिशत की लक्ष्य सीमा के भीतर बनी रहे. इवा पेत्रोवा ने विद्युत क्षेत्र के लिए चक्रीय ऋण के मुद्दे पर कहा कि पाकिस्तान समय पर शुल्क समायोजन के माध्यम से इसके संचय को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे लागत वसूली सुनिश्चित होगी और एक प्रगतिशील शुल्क संरचना बनाए रखी जा सकेगी.
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