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अपने आप में अनोखा है मां जंगली देवी का मंदिर, यहां ईंट चढ़ाने से पूरी होती हैं सारी मनोकामनाएं

इस मंदिर का बहुत ही प्राचीनतम इतिहास है, घने जंगल के बीचोबीच स्थित होने से ये स्थान जंगली देवी मंदिर के नाम से विख्यात हो गया. मंदिर में माता की मूर्ति के साथ भी एक मान्यता जुड़ी हुई है कहा जाता है कि जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है, उसको मनोकामना पूरी होने का संकेत मां की मूर्ति से ही मिल जाता है.

कानपुर: कानपुर में जंगली देवी मंदिर में इस वक्त भक्तों का तांता लगा हुआ है. वैसे तो पूरे साल यहां भक्त आते हैं पर नवरात्र में यहां का महत्व और बढ़ जाता है. इससे मंदिर से जुड़ीं कई अनोखी मान्यताएं हैं. कहते हैं कि यहां पर जो भी भक्त ईंट रखकर मुराद मांगता है माता उसकी सारी मुरादें पूरी करती हैं. इतना ही नहीं ये भी कह जाता है कि मूर्ति के पीछे बनी नाली में ईट रखने के बाद उस ईट को निर्माणाधीन मकान में लगाने से तरक्की होती है और घर का काम जल्दी निपट जाता है.

इस मंदिर का बहुत ही प्राचीनतम इतिहास है, घने जंगल के बीचोबीच स्थित होने से ये स्थान जंगली देवी मंदिर के नाम से विख्यात हो गया. मंदिर में माता की मूर्ति के साथ भी एक मान्यता जुड़ी हुई है कहा जाता है कि जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है, उसको मनोकामना पूरी होने का संकेत मां की मूर्ति से ही मिल जाता है. मंदिर कमिटी के अध्यक्ष के मुताबिक माता जी प्रतिमा के सामने जो भक्त पूरी आस्था के साथ चेहरे को निहारता है तो प्रतिमा का रंग धीरे-धीरे गुलाबी होने लगता है तो समझो मनोकामना पूरी हो गई.

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किदवई नगर स्थित जंगली देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है. लोगों का कहना है कि जिस स्थान पर जंगली देवी का मंदिर बना है, 838 ईसवी में वहां पर राजा भोज का राज था. राजा भोज ने बगाही क्षेत्र में एक विशाल मंदिर बनवाया था. लेकिन राजशाही समाप्त होने के बाद सब कुछ नष्ट हो गया. 17 मार्च सन 1925 में मोहम्मद बकर अपने घर के निर्माण के लिए खुदाई करा रहे थे उसी दौरान उनको एक ताम्रपत्र मिला था, जिस पर विक्रम संवत 893 अंकित था. ताम्रपत्र देखने के लिए पूरा गांव जमा हो गया था. बाद में मोहम्मद बकर ताम्र पत्र को पुरातत्व विभाग को सौप दिया था.

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मंदिर के प्रबंधक डीपी बाजपाई के मुताबिक क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से ताम्रपत्र को वापस लाया गया और एक तालाब के किनारे नीम के पेड़ के नीचे रख दिया गया और वहां एक छोटा सा मंदिर बना दिया गया. मंदिर के पास लोग जाने में डरते थे क्योंकि मंदिर के पास बने तालाब में जंगली जानवर पानी पीते आते थे. समय के साथ धीरे-धीरे तालाब सूख गया और आबादी बढ़ने लगी, लोग यहां पर पूजा करने आने लगे. साधू संतों ने अपना डेरा जमा लिया. इसके बाद आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया.

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मंदिर की विशेषता बताते हुए राजा सिंह कहते है कि इस मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है. यहां पर एक और हैरान कर देने वाली चीज है जो भक्तों को यहां तक खींच लाती है. जंगली देवी मंदिर में सन 1980 से अखंड ज्योति जल रही है. जो भी भक्त अखंड ज्योति जलाने में योगदान देता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जिस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है उसके बाद अगले भक्त के दिए हुए घी से अखंड ज्योति जलाई जाती है. मंदिर के नियमित दर्शन करने वाले भक्त रामशंकर के मुताबिक प्रतिमा पर चढ़ाए गए जल और नारियल का पानी प्रतिमा के पीछे बनी नाली से होकर गुजरता है. जो भक्त वहां पर ईट रखता है और कुछ दिन बाद वही ईट अपने निर्माणाधीन मकान में लगाता है तो छोटा सा मकान भी बहुत जल्द बड़ा हो जाता है. उन्होंने कहा यह सब माता जी की कृपा से मुमकिन है.

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भक्त किरण के मुताबिक पिछले दस साल से माता के मंदिर में दर्शन के लिए आ रहे हैं. उनकी अनुकम्पा से सभी बिगड़े काम बनते चले जा रहे हैं. ऐसे बहुत से श्रद्धालु हैं जिनकी दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो रही हैं.

प्रसिद्ध इतिहासकार रामकृष्ण अवस्थी के मुताबिक इस ताम्रपत्र पर अंकित लिपि इस इस बात की और इशारा करती है कि यह लगभग 1200 वर्ष से अधिक प्राचीन है. यह ताम्रपत्र राजा भोज के समय का है. इस ताम्रपत्र को मंदिर में स्थापित कराया गया था जहां इस वक्त यह विशाल मंदिर बना हुआ है.

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