जानिए- क्या है राजद्रोह कानून और केदारनाथ सिंह बनाम बिहार का ऐतिहासिक फैसला
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कई बार आईपीसी की धारा 124A को हटाए जाने की वकालत की. लेकिन राजद्रोह पर 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया.

नई दिल्ली: इस लेख में सबसे पहले बात आईपीसी की धारा 124 A की. इस धारा का मतलब है सेडिशन यानी कि राजद्रोह. अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे तरीकों से भारत सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है. कुछ मामलों में ये सज़ा उम्रकैद तक हो सकती है. यहां ये साफ करना ज़रूरी है कि भारत सरकार का मतलब संवैधानिक तरीकों से बनी सरकार से है, न कि सत्ता में बैठी पार्टी या नेता.
भारत का संविधान बनाए जाते समय संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने अंग्रेजों के ज़माने के इस कानून पर सवाल उठाए थे. इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ माना था. लेकिन उस वक़्त संविधान सभा ने अभिव्यक्ति के अधिकार को पूरी तरह से खुला छोड़ना सही नहीं माना. संविधान बनाने वालों ने अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस अधिकार की सीमाएं तय कर दीं. इसके तहत भारत की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने वाले बयान मौलिक अधिकार का हिस्सा नहीं माने गए. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बाद में कई बार आईपीसी की धारा 124A को हटाए जाने की वकालत की. इसे अपना निजी विचार बताया.
1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया
राजद्रोह पर 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया. केदारनाथ सिंह बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वैसे तो इस धारा को बनाए रखा. उसे असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर देने से मना कर दिया. लेकिन इस धारा की सीमा तय कर दी. कोर्ट ने साफ कर दिया कि सिर्फ सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नहीं माना जा सकता. जिस मामले में किसी भाषण या लेख का मकसद सीधे-सीधे सरकार या देश के प्रति हिंसा भड़काना हो, उसे ही इस धारा के तहत अपराध माना जा सकता है. बाद में 1995 में बलवंत सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वाले लोगों को भी इस आधार पर छोड़ दिया था कि उन्होंने सिर्फ नारे लगाए थे.
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