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पिछले एक साल में क्या वाकई घाटी में आतंकवाद कम हुआ, पढ़ें ये खास रिपोर्ट

जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 के हटने के बाद से राज्य में एक अलग सा माहौल है. कश्मीर के नौजवान हो या आतंकी, सभी ये समझ रहे हैं कि हाथों में हथियार उठाने से किसी समस्या का हल निकला सकता.

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटे पूरा एक साल हो गया है. पिछले साल 5 अगस्त को ही कश्मीर में धारा 370 हटाई गई थी.‌ कश्मीर से धारा 370 को हटाने के पीछे एक बड़ा कारण घाटी में आतंकवाद था.‌ ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि पिछले एक साल में क्या वाकई आतंकवाद कम हुआ. क्या वाकई कश्मीर की अवाम हिंसा से त्रस्त हो चुकी है. आखिर सेना ने जो ऑपरेशन ब्लैक आउट लॉन्च किया था वो कितना सफल रहा. ये जानने के लिए एबीपी न्यूज की टीम पहुंची कश्मीर. इस खास रिपोर्ट में आप उन आतंकियों के बारे में जानेंगे जो हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होकर कश्मीर के विकास की नई कहानी लिख रहे हैं.

दक्षिणी कश्मीर के सबसे आतंक-ग्रस्त इलाकों में से एक, कुलगाम के रहने वाले हैं बुजर्ग दंपत्ति, गुलाम कादिर और उनकी पत्नी. पेशे से कंडी बनाने वाले गुलाम कादिर और उनकी पत्नी उस दिन को याद कर आज भी सिहर उठते हैं जब उनका बेटा आतंकी संगठन, लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हुआ था. बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले कादिर और उनके पूरे परिवार के लिए उनका बेटा बुढ़ापे की लाठी जैसा था. लेकिन फरवरी 2018 में वो अचानक गायब हो गया. वो घर से किसी काम धंधे के लिए कहकर निकला थ‌ा.

बेहद परेशान गुलाम कादिर को एक दिन पता चला कि उनका बेटा आतंकी बन गया है.‌ इसके बाद उन्होनें फेसबुक के जरिए अपने बेटे ‌से घर आने की अपील की. लेकिन वो वापस नहीं आया. थक-हारकर बुजर्ग दंपत्ति ने सेना से संपर्क साधा और बेटे को सुरक्षित आतंक की दलदल से निकालने की अपील की. अपील के दो महीने बाद ही पुलवामा में एक एनकाउंटर में उनका बेटा फंस गया. लेकिन जैसा सेना ने वादा किया था‌ उनके बेटे को सुरक्षित निकाल लिया गया. लेकिन क्योंकि वो आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ गया था इसलिए उसे जेल भेज दिया गया. लेकिन कादिर दंपत्ति को संतोष है कि उनका बेटा बच गया और जेल से छुटने पर वो मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है.

धारा 370 हटाने के पीछे घाटी में पिछले 30 सालों से फैला आतंकवाद भी था

ये कहानी गुलाम कादिर के परिवार की ही नहीं, अधिकतर उन परिवारों की है जिनके घर का भाई या बेटा आतंकी संगठन से जुड़ गया है. धारा 370 हटाने के पीछे घाटी में पिछले 30 सालों से फैला आतंकवाद भी था. धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में सेना ने सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर ऑपरेशन ऑल आउट तेज़ कर दिया. इस ऑपरेशन के तहत आतंकियों को घेर कर मारना शुरू कर दिया गया यानि कोर्डन एंड सर्च ऑपरेशन‌. जहां पिछले साल यानि 2019 में सेना ने दूसरे सुरक्षाबलों के साथ मिलकर कुल 152 आतंकियों को ढेर किया था, लेकिन इस साल अबतक (30 जुलाई तक) अलग अलग मुठभेड़ में 148 आतंकी मारे जा चुके हैं.

सेना ने आतंकियों को सरेंडर करने का विकल्प दे रखा है

लेकिन चुन चुनकर मारने के बावजूद, सेना ने आतंकियों को सरेंडर करने का विकल्प दे रखा है. किसी भी ऑपरेशन के दौरान सेना फायरिंग के बावजूद स्थानीय आतंकियों को आत्म-समर्पण करने का विकल्प देती है. इसके लिए खुद सैनिक लाउडस्पीकर पर एनॉउंसमेंट करती है या फिर परिवार के ‌सदस्य या फिर सरपंच से अपील कराती है. श्रीनगर स्थित सेना की चिनार कोर (15वीं कोर) के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल बी एस राजू ने एबीपी न्यूज को बताया कि सेना चाहती है कि स्थानीय नौजवान हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाएं‌. इसीलिए, एनकाउंटर के दौरान भी आतंकियों को सरेंडर करने के लिए कहा जाता है.

सभी ये समझ रहे हैं कि हथियार उठाने से किसी समस्या का हल निकला सकता

कश्मीर के नौजवान हो या आतंकी, सभी ये समझ रहे हैं कि हाथों में हथियार उठाने से किसी समस्या का हल निकला सकता. इसीलिए, अब स्थानीय कश्मीर के आतंकी सरेंडर भी कर रहे हैं. क्योंकि वे जान चुके हैं कि जान है तो जहान है. ऐसे ही एक पूर्व आतंकी जहांगीर से हमारी मुलाकात हुई जो दक्षिण कश्मीर के शोपियां के रहने वाले हैं. कभी आतंकी संगठन, हिजबुल मुजाहिद्दीन का हिस्सा रहे, जहांगीर की मानें तो 'जान है तो जहान है.' जान है तो किसी भी समस्या या फिर आंदोलन को लिए किसी भी मंच से लड़ा जा सकता है. लेकिन कश्मीर के आतंकियों की उम्र बेहद कम होती है और जल्द ही सुरक्षबलों के हाथों मारे जाते हैं.

जहांगीर ऐसे अकेले नहीं हैं जो मुख्यधारा में शामिल हुए हैं.‌ उनके साथ पुलवामा के बाबा भी हैं जो 2002 में आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन में शामिल हुए थे और हथियारों के साथ जंगलों में छिपे रहते थे. लेकिन उन्हें भी जल्द समझ आ गया कि हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है. और अब जहांगीर और बाबा, दोनों ही कश्मीर के युवाओं को आतंक का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील कर रहे हैं.

लेकिन जहांगीर और बाबा दोनों ही मानते हैं कि दक्षिण-कश्मीर (शोपियां, त्राल, पुलवामा, अनंतनाग, कुलगाम) में 'गन-कल्चर' इतना ज्यादा फैल चुका है कि सरेंडर-आतंकियों को सही नजर से नहीं देखा जाता.

भटके हुए नौजवानों और सरेंडर आतंकियों को मुख्यधारा में शामिल होने में मदद कर रही है केंद्र सरकार और सेना 

इस सबके बावजूद, केंद्र सरकार हो या कश्मीर या फिर सेना सभी भटके हुए नौजवानों और सरेंडर आतंकियों को मुख्यधारा में शामिल होने में मदद कर रही है. एक ऐसे ही पूर्व टेरेरिस्ट, माजिद से हमारी मुलाकात उत्तरी कश्मीर के लोलाब में हुई. पाकिस्तान जाकर आतंकी ट्रेनिंग लेने वाले माजिद अब ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के सदस्य हैं और उनकी पत्नी ब्लॉक प्रमुख हैं. दोनों अब उत्तरी कश्मीर में ग्राम ओर ब्लॉक स्तर पर सरकार के साथ मिलकर विकास कार्यों में जुटे हैं.

जहांगीर, बाबा और माजिद की तरह कश्मीर के सभी नौजवान अगर आतंक का रास्ता छोड़कर घाटी के विकास में जुट जाएं तो वो दिन दूर नहीं जब कश्मीर एक बार फिर से जन्नत बन जाए. इ‌सके लिए सेना और सरकार भी कटिबद्ध है.

इस‌ साल उत्तरी कश्मीर में कम आतंकी घटनाएं सामने आई

कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ खास तौर से बनाई गई राष्ट्रीय राईफल्स (आर आर) की किलो-फोर्स के जीओसी, मेजर जनरल, एच एस शाही के मुताबिक, धारा 370 हटने से आतंकवाद पर जबरदस्त असर पड़ा है. इस‌ साल उत्तरी कश्मीर में कम आतंकी घटनाएं सामने आई हैं. यहां तक की आतंकी रिक्रूटमेंट में कमी आई है‌‌. धारा 370 से पहले एक साल में 19 युवक आतंकी संगठनों में भर्ती हुए थे. लेकिन उसके बाद सिर्फ 09 हुए हैं. हालांकि, पूरी कश्मीर घाटी की बात करें तो इस‌ साल अबतक 74 युवा अलग अलग आतंकी सगंठनों को ज्वाइन कर चुके हैं. चिनार कोर कमांडर, ले. जनरल बी एस राजू भी मानते हैं कि कश्मीर की अवाम अब आतंकवाद और हिंसा से त्रस्त हो चुकी है. कश्मीर के लोग अब विकास चाहते हैं.

पाकिस्तान का पिछले 30 साल से एक ही एजेंडा है-- 'स्टेट स्पॉन्सर टेरेरिज्म'

लेकिन सेना और सरकार की आतंकियों के सरेंडर की नीति एकदम साफ है. स्थानीय आतंकियों को तो सरेंडर के लिए मौका दिया जाएगा, लेकिन पाकिस्तान से एलओसी पर घुसपैठ कर भारतीय सीमा में दाखिल होने वाले आतंकियों को किसी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा. ये बात दुनिया जानती है कि पाकिस्तान का पिछले 30 साल से एक ही एजेंडा है-- 'स्टेट स्पॉन्सर टेरेरिज्म' इन स्टेट ऑफ कश्मीर. अब जब 5 अगस्त की तारीख फिर से आ रही है वो फिर से कोशिश करेगा कश्मीर में शांति भंग करने का. पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने ईद पर एलओसी का दौरा किया था. भड़काऊ वीडियो भी जारी कर रहा है.

भारतीय सेना और सैनिक पूरी तरह से मुश्तैद

दरअसल, उत्तरी कश्मीर का क्षेत्र (कुपवाड़ा, हंडवारा, गुरेज, बारामूला, उरी) इसलिए बेहद संवेदनशील है क्योंकि एलओसी से सटा इलाका है. पाकिस्तान से घुसपैठ करने वाले आतंकी अगर एलओसी पार करने में कामयाब हो जाते हैं तो उनके लिए ये 'रि‌स्पेशन एरिया' है. ये एफटी (फोरेन टेरेरिस्ट) यानि विदेशी आतंकी काफी ट्रेनिंग लेकर आते हैं. अभी भी 15 कोर के एलओसी से सटे पाकिस्तान के इलाके में करीब 250-300 आतंकी लांच-पैड्स पर सक्रिय हैं. वे घुसपैठ करना चाहते हैं. लेकिन भारतीय सेना और सैनिक पूरी तरह से मुश्तैद हैं कि घुसपैठियों को किसी कीमत पर कश्मीर में दाखिल ना होने दिया जाए.

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नीरज राजपूत वॉर, डिफेंस और सिक्योरिटी से जुड़े मामले देखते हैं. पिछले 20 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं और प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया का अनुभव है. एबीपी न्यूज के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अनकट के 'फाइनल-असॉल्ट' कार्यक्रम के प्रेजेंटर भी हैं.
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