Explained: बिहार में 7+3 नेता तय करेंगे सत्ता का खेल! कैसे बदलेंगे सियासत का रुख, क्या नीतीश-तेजस्वी से आगे निकलेंगे नए चेहरे?
ABP Explainer: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर PM मोदी की रैलियां ग्रामीण और ओबीसी वोटरों को प्रभावित करती हैं, तो बीजेपी का वोट शेयर 20-22% तक पहुंच सकता है.

सबसे पहले इन 7 बड़े नामों पर गौर करिए...
- नरेंद्र मोदी (बीजेपी, NDA)
- नीतीश कुमार (जेडीयू, NDA)
- राहुल गांधी (कांग्रेस, महागठबंधन)
- तेजस्वी यादव (आरजेडी, महागठबंधन)
- प्रशांत किशोर (जन सुराज)
- चिराग पासवान (लोजपा-रामविलास, NDA)
- असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM)
इन बड़े नेताओं के नाम इसलिए गिनाए क्योंकि यह बिहार चुनाव में सबसे ज्यादा छाए हुए हैं. हर एक नेता के अपने मुद्दे और अपना वोटबैंक है, लेकिन सरकार बनाने के लिए इतना काफी नहीं. हर कोई एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में है.
तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि इन 7 बड़े नेताओं के लिए बिहार चुनाव कितना अहम, यह कितना बड़ा खेल कर सकेंगे और कैसे पलट सकेंगे चुनावी नतीजे...
सवाल 1- क्या PM मोदी बिहार चुनाव में बड़े गेमचेंजर साबित होंगे?
जवाब- बिहार चुनाव पर असर डालने वाले सबसे बड़े शख्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं...
- खास बात: नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री और बीजेपी के सबसे बड़े चेहरा हैं. उनकी रैलियां लाखों लोगों को खींचती हैं. वो हिंदुत्व, केंद्र की उज्जवला और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं और विकास पर फोकस करते हैं. नतीजतन, 2020 में बीजेपी को 19.46% वोट शेयर के साथ 74 सीटें मिली थीं.
- बिहार चुनाव पर असर: PM मोदी की रैलियां NDA को ऊर्जा देती हैं. वो ऊपरी जातियों यानी ब्राह्मण, राजपूतों और शहरी वोटरों को लुभाते हैं. 2020 में उनकी रैलियों ने NDA को जीत दिलाई थी. इस बार बीजेपी 100 से ज्यादा सीटों पर लड़ रही है और ओपिनियन पोल में उसे 80 सीटें मिलने का अनुमान है.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर पीएम मोदी की रैलियां ग्रामीण और ओबीसी वोटरों को प्रभावित करती है, तो बीजेपी का वोट शेयर 20-22% तक पहुंच सकता है, जिससे NDA को 10-15 एक्स्ट्रा सीटें मिल सकती हैं. लेकिन अगर महागठबंधन स्थानीय मुद्दों को हावी करता है, तो उनका असर कम हो सकता है.
सवाल 2- नीतीश कुमार का बिहार चुनाव 2025 में कितना असर?
जवाब- 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए एक निर्णायक मोड़ है, क्योंकि उनकी व्यक्तिगत विरासत और पार्टी की छवि दोनों दांव पर है...
- खास बात: नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के नेता हैं. 20 साल से बिहार की सियासत में हैं और सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था में सुधार के लिए जाने जाते हैं. उनकी पकड़ कुशवाहा, EBC यानी अति पिछड़ा वर्ग और महादलित वोटरों पर है. 74 साल के नीतीश के स्वास्थ्य पर सवाल हैं. 2020 में जेडीयू को 15.39% वोट मिले थे.
- बिहार चुनाव पर असर: इस बार वोटर्स तय करेंगे कि स्थिरता और कानून-व्यवस्था के भरोसे के लिए जाने जाने वाले विकास पुरुष की उनकी छवि अब भी कायम है या नहीं. या फिर राजनीतिक थकान, नीतिगत गतिरोध और बार-बार बदलते रुख ने उनका जनादेश कमजोर कर दिया है. नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती सत्ता-विरोधी लहर से लड़ना है. नीतीश को अपनी सरकार के खिलाफ प्रबल सत्ता-विरोधी लहर का मुकाबला करना है. इसके अलावा 74 साल में उनकी उम्र और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है. विपक्षी नेता उनके शासन करने की क्षमता पर खुलेआम संदेह जता रहे हैं.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हां. अगर नीतीश EBC और महादलित वोटों को एकजुट रखते हैं और बीजेपी के साथ सीट बंटवारा मजबूत रहता है, तो NDA की जीत पक्की हो सकती है. लेकिन अगर वोटर लिस्ट विवाद या सत्ता विरोधी लहर बढ़ी, तो जेडीयू का वोट शेयर 10-12% तक गिर सकता है, जिससे 20-30 सीटें कम हो सकती हैं.
सवाल 3- बिहार चुनाव 2025 में राहुल गांधी कितने अहम हैं?
जवाब- राहुल गांधी के लिए यह चुनाव उनके राष्ट्रीय नेतृत्व और कांग्रेस पार्टी को दोबारा खड़ा करने के लिए बड़ा इम्तिहान है. इससे इंडिया ब्लॉक और विपक्षी राजनीति में कांग्रेस की स्थिति पर दूरगामी प्रभाव होंगे...
- खास बात: राहुल गांधी कांग्रेस के नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं. भारत जोड़ो यात्रा की लोकप्रियता और युवा-महिला केंद्रित मुद्दों यानी नौकरी और आरक्षण पर फोकस उनकी ताकत है. बिहार में कन्हैया कुमार जैसे युवा नेताओं के साथ उनकी जोड़ी चर्चा में है. 2020 में कांग्रेस को 9.48% वोट शेयर के साथ 19 सीटें मिली थीं.
- बिहार चुनाव पर असर: राहुल की रैलियां और पदयात्राएं महागठबंधन को ताकत देती हैं. वो EBC, दलित और युवा वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस इस बार 60 से 70 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और ओपिनियन पोल में उसे सीटों का कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है. राहुल की वोटर अधिकार यात्रा और वोटर लिस्ट में गड़बड़ी को लेकर हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस ने बिहार चुनाव पर बड़ा असर डाला है. बिहार की जनता इससे आकर्षित हो सकती है.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: महाराष्ट्र्, हरियाणा और दिल्ली में हाल ही में हुई लगातार हार को देखते हुए, राहुल पर बिहार में ठोस बढ़त हासिल करने का भारी दबाव है. इस बार उन्होंने अपनी भागीदारी, मतदाता अधिकार यात्रा, अति पिछड़े वर्गों के लिए 'अतिपिछड़ा न्याय संकल्प' जैसे घोषणापत्र तैयार किए. राहुल के सार्वजनिक अभियान लीडरशिप क्वालिटी को बढ़ाते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर राहुल तेजस्वी के साथ मिलकर युवा और अल्पसंख्यक वोट जोड़ पाए, तो महागठबंधन को 5-10 एक्स्ट्रा सीटें मिल सकती हैं.
सवाल 4- क्या इस बार तेजस्वी यादव चुनाव में खेला कर पाएंगे?
जवाब- तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव व्यक्तिगत नेतृत्व और आरजेडी के भविष्य के लिए करो या मरो की परीक्षा है. तेजस्वी के लिए पहली बार सीएम बनने का यह सबसे अच्छा मौका है क्योंकि नीतीश के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना उन्हें फायदा दे रही है...
- खासियत: तेजस्वी यादव लालू यादव के बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम हैं. लालू के बेटे होने की वजह से यादव समाज का 14% वोटर्स और मुस्लिम के 17% वोटर्स में उनकी मजबूत पकड़ है. वो बेरोजगारी, पलायन और जातिगत जनगणना पर आक्रामक हैं. रघोपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. 2020 में आरजेडी को 23.11% वोट शेयर के साथ 75 सीटें मिली थीं.
- बिहार चुनाव पर असर: तेजस्वी यादव आरजेडी के स्टार कैंपेनर हैं. उनकी रैलियां मुस्लिम-यादव और युवा वोटरों को जोड़ती हैं. वो वोटर लिस्ट गड़बड़ी जैसे मुद्दों को उठाकर NDA पर दबाव बना रहे हैं. ओपिनियन पोल में महागठबंधन को 90-100 सीटें मिलने का अनुमान है, जिसमें आरजेडी 70-80 सीटों का योगदान दे सकता है. नीतीश कुमार के करीब 20 साल के लंबे कार्यकाल से थके हुए कई वोटर्स एक नए विकल्प की तलाश में हैं, जो तेजस्वी में युवा और गतिशील नेता के रूप में दिखती है. यह पारंपरिक आरजेडी समर्थकों और सत्ता विरोधी वोटर्स को लुभाता है.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अगर तेजस्वी गैर-यादव OBC और EBC वोटर्स को लुभा पाए और महागठबंधन का वोट शेयर 35% तक पहुंचे, तो वो सरकार बना सकते हैं. लेकिन कांग्रेस और वाम दलों की कमजोरी उनकी राह मुश्किल कर सकती है. 2020 को 23% वोट शेयर को भी बढ़ाना जरूरी है. तब वह बिहार में विपक्ष का प्रमुख चेहरा बने. अब उन्हें चुनावी नतीजे पलटने होंगे.
सवाल 5- प्रशांत किशोर के लिए क्या दांव पर लगा है?
जवाब- रणनीतिकार से राजनेता बने किशोर बिहार में चुनावी शुरुआत कर रहे हैं और अपनी जन सुराज पार्टी (जेएसपी) के लिए सार्थक भूमिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं...
- खास बात: प्रशांत किशोर पहले राजनीतिक रणनीतिकार थे, जिन्होंने कई नेताओं को चुनाव जिताया. अब वो जन सुराज पार्टी बनाकर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. वो युवा, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर फोकस करते हैं. 2020 में उनकी पार्टी नहीं थी, इसलिए कोई पुराना डेटा नहीं है.
- बिहार चुनाव पर असर: प्रशांत किशोर नया चेहरा हैं और शहरी, मिडिल क्लास और युवा वोटर्स को आकर्षित कर रहे हैं. वो NDA और महागठबंधन के वोट काट सकते हैं. ओपिनियन पोल में उनकी पार्टी को 5-10 सीटें और 8-12% वोट शेयर मिलने का अनुमान है. किशोर ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी सभी 243 विधानसभा सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी और किसी भी गठबंधन में नहीं बंधेगी. जेएसपी का मकसद जेडीयू-बीजेपी और आरजेडी-कांग्रेस के लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक द्वैध को तोड़ना है.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पूरी तरह नतीजे पलटना मुश्किल है, लेकिन अगर उनका वोट शेयर 10-15% तक पहुंचता है, तो वो NDA और महागठबंधन की सीटों को प्रभावित कर सकते हैं. उनकी पार्टी भविष्य में बड़ा फैक्टर बन सकती है. बड़ी चुनौती किशोर के व्यक्तिगत ब्रांड और रणनीतिक विशेषज्ञता को विधानसभा सीटों में बदलना है.
सवाल 6- क्या केंद्र की तरह बिहार में भी चिराग पासवान बाज़ी मारेंगे?
जवाब- बिहार में चिराग पासवान की जीत कागज़ों पर तो चकाचौंध भरी रही, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका प्रभाव कमज़ोर रहा. उन्होंने 2014 में 6 लोकसभा चीटें जीतीं, 2019 में भी यही कमाल दोहराया और 2024 में 5 सीटें जीतकर नई दिल्ली में सुर्खियां बटोरीं. फिर भी हिंटी बेल्ट में ये जीतें अक्सर सच्चे जनादेश से ज्यादा खोखली जीत लगती हैं...
- खास बात: चिराग पासवान लोजपा (रामविलास) के नेता और दलित-पशुपालन समुदाय का बड़ा चेहरा हैं. उनके पिता रामविलास पासवान की विरासत उनकी ताकत है. वो पूर्वी बिहार में मजबूत हैं. हालांकि, 2020 में उनकी पार्टी को 5.66% वोट शेयर के साथ 1 ही सीट मिली थी.
- बिहार चुनाव पर असर: चिराग का दलित वोट NDA के लिए जरूरी है. इस बार वो 5-10 सीटों पर लड़ रहे हैं और ओपिनियन पोल में उनकी पार्टी को 3-5 सीटें मिलने का अनुमान है. उनकी सीट बंटवारे की भूमिक NDA को मजबूत करेगी. इस बार उनका सबसे बड़ा इम्तिहान यह साबित करना है कि क्या वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पकड़ और दलित समर्थन को विधानसभा में अपनी मजबूत मौजूदगी में बदल सकते हैं या नहीं.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: एक्सपर्ट्स कहते हैं कि चिराग के लिए अकेले नतीजे पलटना मुश्किल है, लेकिन अगर वो दलित वोटों को एकजुट रखते हैं, तो NDA को 5-10 एक्स्ट्रा सीटें मिल सकती हैं. उनका वोट शेयर अगर 6-8% तक बढ़ता है, तो पूर्वी बिहार में NDA की जीत आसान होगी.
सवाल 7- बिहार में असदुद्दीन औवेसी का दांव कितना सटीक लगेगा?
जवाब- असदुद्दीन ओवैसी AIMIM के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद हैं...
- खास बात: ओवैसी मुस्लिम वोटरों के मजबूत चेहरे हैं. ओवैसी किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार जैसे इलाकों पर फोकस करते हैं, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. 'सीमांचल न्याय यात्रा' से विकास और न्याय के मुद्दे उठा रहे हैं. 2020 में AIMIM ने 20 सीटों पर 14.28% वोट शेयर के साथ 5 सीटें जीती थीं, लेकिन 4 विधायक बाद में आरजेडी में चले गए.
- बिहार चुनाव पर असर: ओवैसी मुस्लिम वोटों को एकजुट करने और महागठबंधन से 6 सीटें मांग रहे हैं. अगर गठबंधन न हुआ, तो 20-50 सीटों पर स्वतंत्र लड़ेंगे, जो मुस्लिम-यादवों को बांट सकता है. सीमांचल की 24 सीटों पर उनका प्रभाव महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है, जहां 2020 में AIMIM ने वोट कटवा का आरोप झेला था. ओपिनियन पोल में AIMIM को 3-7 सीटें और 5-8% वोट शेयर का अनुमान है.
- क्या नतीजे पलट सकेंगे: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ओवैसी नतीजे पलट सकते हैं अगर वे मुस्लिम वोटों को AIMIM की ओर मोड़ पाए. इससे महागठबंधन की 5-10 सीटें कट सकती हैं, जो NDA को फायदा देगा. लेकिन अगर गठबंधन हो गया, तो महागठबंधन मजबूत हो सकता है. 2020 की तरह वोट बंटवारा नतीजों को पलट सकता है.
इनके अलावा बिहार चुनाव में मुकेश सहनी, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाह जैसे चेहरे भी हैं, जो सीटों का गणित बदल सकते हैं.
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