रूस के कौन-कौन से हथियार इस्तेमाल करती है इंडियन आर्मी, देख लीजिए पूरी लिस्ट
Russian Weapons In Indian Army: रूस के साथ भारत की सैन्य साझेदारी महज रक्षा सौदा नहीं, बल्कि वह अदृश्य ढांचा है, जिसे हटाते ही भारतीय सेना की ताकत का बड़ा हिस्सा खोखला हो सकता है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा को लेकर राजनीतिक हलचल तेज है, इसी वक्त एक पुराना सवाल फिर सुर्खियों में है कि आखिर भारतीय सेना की असली रीढ़ यानि उनके हथियार किस देश के कंधों पर टिकी है? यह सवाल सिर्फ कूटनीति का नहीं, बल्कि उस सैन्य ढांचे का है जो सीमाओं पर तैनात हर जवान के भरोसे की असली ताकत है. दिलचस्प यह है कि जवाब भारत की नहीं, बल्कि मॉस्को की गलियों से शुरू होता है, जहां से आने वाली मशीनों ने दशकों तक भारतीय सेना की हर शाखा को उस स्टील की परत दी, जो कई बार गोलाबारी में भी नहीं टूटी. आइए जानें.
कब शुरू हुआ भारत और रूस के बीच हथियारों का सौदा
भारत और रूस की यह साझेदारी सिर्फ रक्षा सौदों की बात नहीं है, बल्कि यह उस अनकही कहानी की परतें है, जिसमें सोवियत काल से शुरू हुआ हथियारों का यह रिश्ता आज भी उतना ही मजबूती से खड़ा है, जितना पहली बार किसी T-72 टैंक ने भारतीय धरा पर कदम रखा था. वास्तविकता यह है कि भारतीय सेना की युद्ध क्षमता का बहुत बड़ा हिस्सा अभी भी रूसी तकनीक पर सांस लेता है. सेना की फायर पावर से लेकर वायुसेना की उड़ान तक और नौसेना की पनडुब्बियों की गहराई तक रूस का निशान हर जगह मौजूद है.
थलसेना के पास कौन से हथियार
थलसेना की कहानी सबसे रोचक है. पहाड़ों पर तैनात जवानों के ठीक पीछे खड़े टैंकों की कतारों में रूस का इतिहास आज भी गूंजता है. T-72 हों या उनके बाद के मॉडर्न वर्जन T-90, भारत ने सिर्फ इन्हें खरीदा नहीं, बल्कि इन्हें अपनी जरूरत के हिसाब से ढाला भी है. इन टैंकों की गड़गड़ाहट सिर्फ युद्धक क्षमता नहीं दिखाती, बल्कि यह संकेत देती है कि भारतीय सेना ने दशकों से अपनी आर्मी का ‘हार्डकोर बैकबोन’ रूस की फैक्ट्रियों से चुना है. BMP-2 जैसे इन्फैंट्री व्हीकल ने रणभूमि में फुर्ती और सुरक्षा का ऐसा मेल दिया कि दुनिया ने भी भारत मॉडल की तारीफ की. लंबी दूरी तक दुश्मन की चौकियां चीर देने वाले Smerch और Grad रॉकेट सिस्टम इस साझेदारी की अगली कड़ी हैं, जो आज भी भारतीय आर्टिलरी की स्पीड और स्ट्राइक दोनों तय करते हैं.
राइफल सीरीज
बात सिर्फ भारी हथियारों की नहीं है. किसी भी सैनिक की सबसे पहली ताकत उसकी राइफल मानी जाती है. भारतीय फौजियों के हाथों में दशकों से जो AK सीरीज देखने को मिलती है, वह इस साझेदारी की सबसे प्रतीकात्मक पहचान है. AK-47 हो या नई AK-203, भारत और रूस ने इन हथियारों को उत्पादन स्तर तक मिलकर आगे बढ़ाया. यही वजह है कि यह रिश्ता सिर्फ हथियारों तक नहीं, बल्कि उत्पादन और तकनीक के अदला-बदली तक फैल चुका है.
वायुसेना के पास कितने रूसी हथियार
वायुसेना की कहानी इससे भी ज्यादा रोमांचक है. भारत का सबसे भरोसेमंद फाइटर जेट कौन है? जवाब सिर्फ एक Su-30MKI है. यह विमान भारतीय वायुसेना का ऐसा उड़ता किला है, जिसके सामने कई अंतरराष्ट्रीय फाइटर फीके पड़ जाते हैं. रूस और भारत ने इसे 'कस्टमाइज्ड फाइटर' बनाया, और आज यह किसी भी संभावित खतरे का सबसे तेज जवाब है. MiG-29 जैसे जेट और IL-76 जैसे हैवी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट ने भारत की एयरपावर को आकाश से आगे बढ़ाकर स्पेस और स्ट्रैटेजिक ऑपरेशन में बदल दिया है. इसके ऊपर S-400 जैसा एयर डिफेंस सिस्टम, जो किसी भी दुश्मन मिसाइल या एयरक्राफ्ट को कई लेयर से पहले ही ध्वस्त कर सकता है, भारत-रूस साझेदारी का नया चेहरा है.
नौसेना के पास रूसी हथियार
नौसेना की गहराई में उतरें, तो रूस की भूमिका और भी मजबूत हो जाती है. INS Vikramaditya जैसे विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर ने बीते वर्षों में भारतीय नौसेना को महाद्वीपीय समुद्री ताकत में बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है. Kilo क्लास पनडुब्बियों ने अंडरवाटर युद्ध क्षमता को उस स्तर तक पहुंचाया, जिसकी तब किसी को कल्पना भी नहीं थी. भारत द्वारा लीज पर ली गई न्यूक्लियर सबमरीन 'चक्रा' ने न सिर्फ शक्ति दिखाई, बल्कि भारत के स्वदेशी न्यूक्लियर पनडुब्बी बेड़े को ट्रेन करने में ऐतिहासिक योगदान दिया.
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Source: IOCL
























