क्या है ULFA- I? जो पूर्वोत्तर में फैला रहा आतंक, जानें इस पर क्यों लगा था बैन?
What Is ULFA-I: हाल ही में खबर आई है कि असम का प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन ULFA-I के म्यांमार स्थित कैंप्स पर सेना की तरफ से ड्रोन हमला किया गया. चलिए जानें कि ULFA-I क्या है और यह क्यों बैन हुआ था.

प्रतिबंधित संगठन यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (ULFA-I) ने ऐसा दावा किया है कि म्यांमार में भारतीय ड्रोन हमले में उसके तीन कमांडर मारे गए हैं. ULFA-I के प्रवक्ता का ऐसा दावा है कि भारतीय सेना ने सीमा पार उसके शिविरों को निशाना बनाकर उनपर एयरस्ट्राइक की है. हालांकि भारतीय सेना ने इस बात को खारिज कर दिया है औक कहा है कि वे इस तरह की किसी भी कार्रवाई की पुष्टि नहीं करते हैं. हालांकि यह घटना ऐसे समय में सामने आई है, जब पूर्वोत्तर में फिर से उग्रवाद सुर्खियों में है. ULFA-I संगठन को लेकर सुरक्षा एजेंसियां सीमा पार ठिकानों के लेकर गंभीर चिंता में हैं. चलिए जानें कि आखिर ULFA-I क्या है.
क्या है ULFA-I?
ULFA-I का नेतृत्व परेशा बरुआ के हाथों में है, जिसको कि बांग्लादेश में मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन जब शेख हसीना की सरकार का पतन हुआ तो उसकी मौत की सजा रद्द कर दी गई. इस संगठन का मकसद असम को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र असम का निर्माण करना है. बातचीत से इतर इस गुट ने हथियारबंद संघर्ष का रास्ता चुना है. ULFA-I संगठन हर साल असम के बिजनेसमैन और व्यापारियों से जबरन वसूली करके 5-6 करोड़ की धन उगाही करता है. यह संगठन नए कैडरों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर डर फैलाता है. इस संगठन को पाकिस्तान और चीन जैसे देश समर्थन करते हैं. ULFA-I जैसे संगठन जंगलों में छिपकर ऑपरेट करता है और उसकी निगरानी उनके खिलाफ कार्रवाई मुश्किल हो जाती है.
क्यों बना ULFA-I
यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम में एक्टिव एक प्रमुख आतंकवादी और उग्रवादी संगठन है. 7 अप्रैल 1979 को उसका गठन हुआ था. परेश बरुआ ने अपने साथी अरबिंद राजखोवा, समीरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई, गोलाप बरुआ उर्फ अनुप चेतिया और भद्रेश्वर गोहेन के साथ मिलकर इसका गठन किया गया था. इसको बनाने का उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के जरिए असम को एक स्वायत्त और संप्रभु राज्य बनाना चाहते थे.
इस पर क्यों लगा था बैन
साल 1979 से अब तक 10,000 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. उल्फा शुरू से ही ऐसी ही खतरनाक गतिविधियों में शामिल रहा था. साल 1990 में केंद्र सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगाया था और फिर सैन्य अभियान शुरू किया था. 31 दिसंबर 1991 में उल्फा कमांडर-इन-चीफ हीरक ज्योति महंल की मौत हो गई थी. इसके बाद ULFA-I के 9000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था.
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