कैसे काम करता है एयरपोर्ट का ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम, यह खराब हुआ तो फ्लाइट्स पर कितना असर?
How Does AMSS Work: AMSS में हुई एक तकनीकी गड़बड़ी ने दिल्ली एयरपोर्ट पर सैकड़ों उड़ानों को रोक दिया. आइए जानें कि AMSS कितना अहम है और इसके फेल होने का विमानों पर क्या असर होता है.

दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर शुक्रवार की सुबह कुछ ऐसा हुआ जिसने यात्रियों की धैर्य की परीक्षा ले ली. सैकड़ों उड़ानें देरी का सामना कर रही थीं और पीछे इसका कारण था एक तकनीकी सिस्टम का फेल होना. एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) का दिल, यानी ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम (AMSS) अचानक क्रैश हो गया. कंट्रोलर अब हर फ्लाइट की जानकारी मैन्युअली संभाल रहे थे, जिससे एयरपोर्ट की आवाजाही में भारी रुकावट आई. आइए जानें कि इसकी खराबी का फ्लाइट्स पर क्या असर होता है.
क्या है AMSS?
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि AMSS क्या है और यह इतना अहम क्यों है? इसे समझने के लिए पहले एयर ट्रैफिक कंट्रोल का काम जानना जरूरी है. ATC का मुख्य कार्य विमानों की आवाजाही को सुरक्षित और सुचारू बनाए रखना है. इसमें शामिल है फ्लाइट प्लान की प्रोसेसिंग, मौसम की जानकारी, रनवे और हवाई रूट की स्थिति, और यह सब डेटा दुनिया भर के एयरपोर्ट्स से शेयर करना. AMSS इसी काम को बेहद तेज और सुरक्षित तरीके से करता है.
जैसे ही कोई विमान दिल्ली से उड़ान भरता है, उसका फ्लाइट प्लान AMSS के जरिए ATC तक पहुंचता है. इसके बाद मौसम की जानकारी और अन्य अलर्ट को सिस्टम ऑटोमैटिकली प्रोसेस करता है और जरूरत पड़ने पर अन्य एयरपोर्ट्स तक भेज देता है. AMSS का एडवांस वर्जन Aeronautical Message Handling System (AMHS) और भी तेज है और इसमें फाइलों के अलग-अलग वर्जन भेजना संभव है.
कैसे काम करता है AMSS?
AMSS सिस्टम IP-बेस्ड है और यह AFTN (Aeronautical Fixed Telecommunication Network) से जुड़ा होता है. इसकी खासियत यह है कि मैसेज को प्राथमिकता के आधार पर भेजा जाता है, जैसे जरूरी अलर्ट पहले भेजता है. यह ऑटोमेटेड वर्कफ्लो के जरिए ग्राउंड-टू-ग्राउंड कम्युनिकेशन को स्टैंडर्ड ICAO नियमों के अनुसार संभालता है. भारत में दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट में IP-AMSS लगाया गया है, जो लगभग 99% समय बिना रुके काम करता है.
ATC के लेवल
ATC सिस्टम में मुख्यतः तीन स्तर होते हैं. ग्राउंड कंट्रोल, जो विमान को पार्किंग से रनवे तक ले जाता है, टावर कंट्रोल करता है, जो टेकऑफ और लैंडिंग की अनुमति देता है और एप्रोच/डिपार्चर कंट्रोल, जो एयरपोर्ट के आसपास के हवाई क्षेत्र को संभालता है. AMSS इन सभी स्तरों पर आवश्यक डेटा और मैसेज तुरंत उपलब्ध कराता है.
AMSS के फेल होने का असर
ATC तकनीक में कई उपकरण शामिल हैं, प्राइमरी और सेकेंडरी रडार, VHF रेडियो, CPDLC (Controller Pilot Data Link Communication), ILS (Instrument Landing System) और FDPS (Flight Data Processing System). ये सभी मिलकर उड़ानों की सुरक्षा और समय पर संचालन सुनिश्चित करते हैं. जब AMSS फेल होता है, तो कंट्रोलर्स को हर काम मैनुअली करना पड़ता है. इसका सीधा असर होता है उड़ानों की देरी और एयरपोर्ट पर ट्रैफिक जाम पर.
विमानों की धुरी है AMSS
दिल्ली एयरपोर्ट की हालिया घटना यह दिखाती है कि आधुनिक उड़ानें सिर्फ विमान और पायलट पर निर्भर नहीं हैं. डेटा, मैसेज और तकनीकी सिस्टम की निर्भरता भी अब उतनी ही अहम हो गई है. AMSS जैसी तकनीक के बिना, हजारों यात्रियों की प्लानिंग फेल हो सकती हैं. एयरपोर्ट का AMSS सिस्टम वह नाजुक धुरी है, जो हवा में और ग्राउंड पर हर विमान को सुरक्षित और समय पर चलने में मदद करता है. यह सिस्टम केवल मैसेजिंग नहीं, बल्कि सुरक्षा, समय प्रबंधन और वैश्विक हवाई ट्रैफिक के समन्वय का मूल है.
यह भी पढ़ें: इस देश में जाते ही करोड़पति बन जाते हैं भारतीय, सिर्फ 1000 में मिल जाता है फाइव स्टार होटल
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL
























