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Uttar Pradesh History: कैसे किया था ब्रिटिश ने उत्तर प्रदेश पर अपना अधिकार, जानें भारत के इस राज्य का पूरा इतिहास
Uttar Pradesh History: आज हम बात करने जा रहे हैं भारत के उसे राज्य की जहां पर अंग्रेजों को राज करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी. आइए जानते हैं क्या है उत्तर प्रदेश का इतिहास.

Uttar Pradesh History: भारत का चौथा सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश ब्रिटिश विस्तार के विरुद्ध प्रतिरोध का एक बड़ा इतिहास रखता है. इस धरती में अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया है और ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आने से पहले कई युद्ध, संधि और राजनीतिक चालों को देखा है. बाकी जगह की तरह अंग्रेज उत्तर प्रदेश को एक ही झटके में नहीं कब्जा पाए. बल्कि उन्हें इस राज्य पर राज करने के लिए एक शताब्दी के युद्ध और गठबंधनों का सामना करना पड़ा. आइए जानते हैं क्या रहा उत्तर प्रदेश का इतिहास.
बक्सर का युद्ध और इलाहाबाद की संधि
उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों का प्रवेश 1764 में बक्सर के युद्ध के साथ आया. मेजर हेक्टर मुनरो ब्रिटिश सी का नेतृत्व कर रहे थे और उनका सामना अवध के नवाब शुजा उद दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की सेनन के साथ हुआ. इन शासकों की हार ने न सिर्फ उनकी शक्ति को तोड़ा बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी के उदय का मार्ग भी साफ हुआ. 1765 में इलाहाबाद की संधि पर हस्ताक्षर किए गए. संधि के मुताबिक नवाब को युद्ध क्षतिपूर्ति के लिए 50 लाख रुपए देने पड़े. धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश के कई जिले ब्रिटिश के अधीन होते गए.
सहायक संधि और 1801 की संधि
जैसे-जैसे भारत में ब्रिटिश का राज होने लगा उन्होंने भारतीय शासकों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सहायक संधि प्रणाली को लागू किया. व्यवस्था के तहत शासकों को सुरक्षा के लिए ब्रिटिश सेना रखनी पड़ती थी और साथ ही सालाना टैक्स भी देना पड़ता था. 1801 में गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेस्ली ने अवध के नवाब सआदत अली खान द्वितीय को एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया. इस समझौते के अंतर्गत नवाब ने अपने राज्य का लगभग आधा हिस्सा और वर्तमान उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा ब्रिटिशों को सौंप दिया.
1856 में अवध का विलय
आखरी झटका 1856 में लगा जब अंग्रेजों ने अवध को पूरी तरह से अपने में मिलने का निर्णय लिया. गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी जो अपनी आक्रामक विलय नीति के लिए पहचाने जाते थे ने अंतिम नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगा दिया. इसके बाद वाजिद अली शाह को पद से हटा दिया गया और अवध को आधिकारिक तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने में मिला लिया. इसके बाद अंग्रेजों ने इस जगह का पुनर्गठन किया और उत्तर पश्चिमी प्रांत जो पहले से ही ब्रिटिश के अधीन था अवध में मिलाकर एक नया प्रांत बन गया.
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