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इंदिरा गांधी से क्यों नाराज हुए थे जयप्रकाश नारायण, कर दिया था 'संपूर्ण क्रांति' का ऐलान

Jayaprakash Narayan: इंदिरा गांधी के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा देने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण की आज जयंती है.

"भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और इसके परिवर्तन के लिए क्रांति, ’संपूर्ण क्रान्ति’ जरूरी है." लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ये उद्गार एक तरह से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ जंग का आगाज थे. मौका 5 जून 1974 पटना के गांधी मैदान की जनसभा का था.

इसमें लगभग 5 लाख लोगों की उत्साहित भीड़ के सामने किया गया लोकनायक का ये एलान यह बताने के लिए काफी है कि क्रांति उनकी रगों में बहती थी. इसके लिए वह किसी भी तरह का समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे. फिर भले ही वो कभी उनकी उनकी मुंहबोली प्यारी भतीजी के रिश्ते से मशहूर आयरन लेडी इंदिरा गांधी ही क्यों न हो. इंदिरा को सत्ता से बेदखल करने में लोकनायक ने किसी तरह का गुरेज नहीं किया.

आज यानी 11 अक्टूबर मंगलवार को क्रांति के नायक की 120 जयंती है और फिर इस मौके पर इंदिरा और नारायण के कभी नीम- नीम कभी शहद -शहद जैसे रिश्तों पर बात न की जाए तो इतिहास कुछ अधूरा सा लगता है. तो हम आपको ले चलते है भारतीय इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर जहां सत्ता के खिलाफ जननायक उतर आए थे. 

जब उठी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज

70 के दशक में कई ऐसे जन मुद्दे थे, जिन्हें लेकर जनता में आक्रोश था. महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ रहा था. इसे लेकर देशभर में छात्र विरोध प्रदर्शनों को अंजाम दे रहे थे. कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलनों को जोर चरम था. गुजरात के छात्र सरकार के खिलाफ अपने आंदोलनों में काफी मुखर थे. जनवरी 1974 में इस आंदोलन को पुलिस की लाठियों ने हवा दी. नतीजन इंदिरा सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन लगा डाला.

बिहार की राजधानी पटना तक इस आंदोलन की आंच पहुंच गई. जेपी भी इस आंदोलन में कूद पड़े और बाद में उन्होंने इसकी अगुवाई की. विधानसभा सत्र में बिहार के छात्रों ने राज्यपाल को रोकने की पुरजोर तैयारी की थी. 7 जून 1974 को जब जेपी का भाषण खत्म होने वाला था तो यहां गोलियों से घायल लगभग 12 लोग पहुंचे और सभा में तेज आक्रोश फूट पड़ा. ये  राजभवन से लौटने वाली भीड़ में पीछे रह जाने वाले लोग थे. इन लोगों पर बेली रोड के एक मकान से गोली चलाई गई थी.

पटना के तत्कालीन जिलाधीश विजय शंकर दुबे के मुताबिक उस मकान में ‘इन्दिरा ब्रिगेड’ नामक संगठन के कार्यकर्ता रहते थे. सभा में मौजूद लोग गोली खाए लोगों को देख इस हद गुस्से में आ गए थे कि यदि जेपी को दिया गया शांत रहने वादा न होता और जेपी वहां मौजूद न होते, तो शायद उस शाम इंदिरा ब्रिगेड के दफ्तर से लेकर विधान भवन-सचिवालय जैसा सब कुछ जल गया होता. सभा स्थल पर जेपी ने कहा, "देखो ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप लोग भावनाओं में बह जाएं,उस जगह पर जाकर आगजनी करें. वादा करते हो न कि शांत रहोगे?"

तब लाखों लोगों ने हाथ उठाकर, सिर हिलाकर और ‘हां’ की जोरदार हुंकार भर जेपी से वादा किया. प्रदर्शनकारियों और आम जनता ने "हमला जैसा भी होगा, हमारा हाथ किसी कीमत पर  नहीं उठेगा" के नारे से जेपी के वादे को निभाया. ऐसा था जेपी के व्यक्तित्व का असर और उनकी अगुवाई में चल रहे आंदोलन का अनुशासन. हर बार जेपी ने भ्रष्टाचार के आरोपों में इंदिरा सरकार को अपना निशाना बनाया. इससे इंदिरा गांधी को ठेस पहुंची और कभी बेहद अच्छे रहे दोनों के रिश्तों में कड़वाहट घुलने लगी.

इंदिरा के शब्दों की चिंगारी जो आग बनी

संपूर्ण क्रांति इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ने के लिए जेपी की जनता से अपील थी. जब पटना के गांधी मैदान में 70 के दशक में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा, "संपूर्ण क्रांति से मेरा मतलब समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है.’’ तब मैदान में नारा गूंजा -जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो. समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो. जेपी के इंदिरा सरकार के खिलाफ ये नारा और नाराजगी ऐसे ही अचानक नहीं पैदा हो गई थी.

दरअसल इसके पीछे इंदिरा के शब्दों की वो चिंगारी थी जो उन्होंने भुवनेश्वर के भाषण में उन्होंने छोड़ी थी. यहीं चिंगारी ने बाद में इंदिरा के खिलाफ दावानल का रूप ले लिया और आखिरकार उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा. लोकनायक जयप्रकाश और इंदिरा गांधी के रिश्ते बेहद आत्मीय थे. एक तरह से चाचा-भतीजी दोनों के बीच चाचा- भतीजी से रिश्ते रहे थे. इन रिश्तों में खटास आनी तब शुरू हुई जब जेपी ने भ्रष्टाचार पर बोलना शुरू किया. इससे इंदिरा असहज हो गई.

वो जेपी की इस बगावत से इतनी भड़की हुईं थीं कि उन्होंने 1 अप्रैल 1974 भुवनेश्वर की जनसभा में बोलते हुए एक बार भी नहीं सोचा. इंदिरा ने कहा, "जो बेहद अमीर लोगों को पैसे पर पलते हैं, उन्हें भ्रष्टाचार पर कुछ भी बोलने का कोई अधिकार नहीं." इंदिरा के इस बयान ने इन दोनों के रिश्तों के ताबूत पर आखिरी कील ठोक डाली.

क्रांति का सपनाः जयप्रकाश नारायण का जीवन वृत्त (The Dream of Revolution: A Biography of Jayprakash Narayan) के लेखक बिमल (Bimal ) और सुजाता प्रसाद (Sujata Prasad) )अपनी किताब में लिखते हैं कि इंदिरा की इस बात से जेपी अंदर तक आहत हो उठे. इसका असर इतना हुआ कि जेपी ने 15-20 दिनों तक कोई काम नहीं किया. उन्होंने अपनी खेती सहित अन्य तरीकों से आने वाली आमदनी का पूरा ब्यौरा इकट्ठा किया. इसके बाद इसे सबको प्रेस और इंदिरा को भी भेज दिया. तब जेपी ने कहा था कि इंदिरा के आरोप गिरे स्तर के हैं. 

डैमेज कंट्रोल का खत

इंदिरा को जब एहसास हुआ कि उन्होंने भुवनेश्वर में जो कहा था वो गलत था, तो उसे सुधारने के लिए उनकी तरफ से एक खत जेपी को लिखा गया. इसमें इंदिरा ने पिता नेहरू के जेपी के साथ रिश्तों की याद उन्हें दिलाई थी. इंदिरा गांधी ने लिखा,  “कई दोस्त इस बात को लेकर परेशान हैं कि हमारे बीच में कोई बदगुमानी हो जाए. मुझे  खुशकिस्मती है कि आपकी दोस्ती मुझे कई साल से नसीब है.

मेरे पिता और आपके बीच जो पारस्परिक रिश्ता था, वह मेरी मां का प्रभावती जी के लिए प्यार के तौर पर जाना जाता है. हमने एक-दूसरे को बुरा-भला कहा है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि हमने ये निजी कड़वाहट के बगैर एक-दूसरे के इरादों पर सवाल किए बिना किया है.” इंदिरा के इस खत का जेपी पर कोई असर नहीं हुआ. इस खत का जवाब जेपी ने सरकार पर आरोप लगाने और लोकपाल की मांग के साथ दिया. इस खत से साफ हो चुका था कि जेपी और इंदिरा के रिश्ते पुराने दौर में नहीं लौट सकते हैं.

जब हुई माई डियर इंदु से प्राइम मिनिस्टर

जब जयप्रकाश नारायण का आनंद भवन में तब से शुरू हो गया था, जब इंदिरा गांधी बच्ची थी. जेपी और नेहरू का याराना इस कदर था कि जेपी अपने खतों में नेहरू को माई डियर भाई' लिखा करते थे. इस नाते से इंदिरा भी उनकी भतीजी हो गई. इस आत्मीय प्रेम का पता जेपी के इंदिरा गांधी को लिखे खतों में दिखता है.वह हमेशा उन्हें खतों में 'माई डियर इंदु' लिखा करते थे.

इंदिरा और जेपी के रिश्तों के तल्ख होने का असर इन खतों की भाषा पर भी पड़ा. इंदिरा जेपी ने जेल से एक खत लिखा, लेकिन इसमें वह उनकी 'माई डियर इंदु' नहीं थी, बल्कि वो उनके लिए पहली बार 'माई डियर प्राइम मिनिस्टर' बन गई थीं.इंदिरा का इसके बाद जेपी के खत का जवाब भी जेपी को उनसे उखड़ने के लिए काफी था.

इंदिरा गांधी ने लिखा,"आप गुस्सा हैं कि प्रधानमंत्री से लेकर आदरणीय दीक्षित तक के लोगों में ‘जयप्रकाश नारायण को लोकतंत्र की सीख देने का अहम है.क्या आप इस बात पर एकमत नहीं हो सकते कि लोकतंत्र हमें इस बारे में सोचने और बात करने का हक देता है, जैसा कि यह किसी अन्य को देता है, चाहे हालात या पृष्ठभूमि कुछ भी हो? मैं पूरी नम्रता के साथ आपसे ये भी कह सकती हूं कि अन्य लोग, जो आपके के रास्ते पर नहीं चल सकते हैं, देश के बारे में, लोगों की भलाई के बारे में उसी तरह से परेशान हैं जैसे की आप."

प्रचंड हुआ आंदोलन

इंदिरा के इस खत के बाद जेपी नहीं रुके. 7 जून को सत्याग्रह और क्रांति की रणभेरी बजा उन्होंने एक साल के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बंद करने की हुंकार भरी. नो टैक्स का नारा दिया तो पुलिस को भी चेताया. इंदिरा सरकार के खिलाफ जेपी का ये लोकतांत्रिक और अहिंसक आंदोलन भी बिहार में कई बार हिंसक हो उठा था. दुकानों के शटर जबरन बंद करने, तोड़फोड़ और रेल पटरियों को उखाड़ने जैसी वारदातों को भी अंजाम दिया गया. पुलिस ने इसे दबाने के लिए सख्त कार्रवाई की. गोलियां चली कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा.

जब जेपी ने मांगा इस्तीफा

जेपी के इस आंदोलन के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट  ने इंदिरा गांधी को चुनावी कानूनों को तोड़ने का दोषी करार देकर  उनके चुनाव को रद्द कर डाला. इसी बीच जेपी ने उनसे पीएम पद से इस्तीफे की मांग की. इस पर इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. जेपी उनके खिलाफ और उग्र हो गए. 25 जून 1975 की दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी की रैली ने आग में घी डालने का काम किया. इसके बाद जेपी संग 600 नेता जेल में ठूंस दिए गए और देश में इमरजेंसी का एलान हो गया. साल 1977 में इमरजेंसी खत्म हुई चुनाव भी हुए लेकिन कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं आ पाई. 

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