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UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के चुनाव में कितने महत्वपूर्ण हैं 'निषाद' मतदाता?

UP Election 2022: पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में महत्वपूर्ण उपस्थिति रखने वाले निषादों पर कई दलों की नजर है. आइए जानते हैं कि यूपी की राजनीति में कितने महत्वपूर्ण हैं निषाद मतदाता.

उत्तर प्रदेश की राजनीति (UP Assembly ELection 2022) में जाति आधारित पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण है. यह पिछले कुछ चुनावों में हुआ बदलाव है. बड़े राजनीतिक दल जाति आधारित पार्टियों को अपनी तरफ करने में लगे रहते हैं. ये पार्टियां मुख्य तौर पर पिछड़ी जातियों की हैं. इन्हीं पिछड़ी जातियों में से एक प्रमुख जाति है, निषाद. मछली मारने या जिनकी रोजी-रोटी नदियों-तालाबों पर निर्भर है, वैसी जातियां इसमें आती हैं. इसमें केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी, गोंड जैसी जातियां हैं. उत्तर प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर इनकी अच्छी-खासी आबादी है. इसलिए निषाद समुदाय राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण बन गया है.

निषाद वोटों की राजनीति

समाजवादी रूझान वाले कैप्टन जयनारायण निषाद इस समाज के सबसे बड़े नेता थे. बिहार से आने वाले कैप्टन निषाद मुजफ्फरपुर से 5 बार सांसद रहे. वो किसी भी दल में रहें, उनकी जीत पक्की रहती थी. उन्होंन बिना किसी भेदभाव के पार्टियां बदलीं. लेकिन उन्होंने कभी अपनी पार्टी नहीं बनाई. लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रहने वाले संजय निषाद (Sanjay Nishad) ने 2016 में 'निषाद पार्टी' के नाम से अलग पार्टी ही बना ली. इसके बाद बिहार में मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नाम से एक पार्टी बनाई. वीआईपी भी निषादों की राजनीति करती है.

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, इलाहाबाद, फतेहपुर और पश्चिम के कुछ जिलों में निषादों की अच्छी खासी आबादी है. कई सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं. इसलिए सभी दलों की नजर निषाद वोटों पर रहती है. इनकी रहनुमाई का दावा निषाद पार्टी करती है. इस वोट बैंक को साधने के लिए अन्य दलों ने इस समाज के नेताओं को पार्टी में जगह दी है. जैसे बीजेपी ने जयप्रकाश निषाद को राज्य सभा भेजा है. वहीं सपा ने विश्वभंर प्रसाद निषाद को राज्य सभा भेजा है तो राजपाल कश्यप को पिछड़ा वर्ग मोर्चे का प्रमुख बनाया है. निषादों को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने इस साल के शुरू में नदी अधिकार यात्रा निकाली थी. 

पिछले चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. उसे 4 सीटों पर जीत मिली थी. जिन सीटों पर वो हारी उसमें से 3 पर वह दूसरे नंबर पर थी. वहीं निषाद पार्टी ने किसी बड़े दल से गठबंधन तो नहीं किया था. लेकिन उसकी टिकट पर भदोही की ज्ञानपुर सीट से विजय मिश्र जीते थे. लेकिन इस जीत में पार्टी का योगदान कम विजय मिश्र के प्रभाव का योगदान ज्यादा था. यूपी राजनीति आज ये दोनों पार्टियां प्रमुख हो गई हैं. सुभासपा अभी सपा के साथ है. 

विधानसभा चुनाव के लिए निषाद पार्टी ने बीजेपी से हाथ मिलाया है. पार्टी प्रमुख संजय निषाद के बेटे बीजेपी के टिकट पर संतकबीर नगर से सांसद हैं. संजय निषाद विधान परिषद में हैं. लेकिन कहानी यह खत्म नहीं होती. उत्तर प्रदेश के निषाद वोटों पर बिहार की वीआईपी की भी नजर है. मुकेश सहनी यूपी का दौरा करते रहते हैं. वो 25 जुलाई को वो वाराणसी आकर फूलन देवी की प्रतिमा का अनावरण करने वाले थे. लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उन्हें वाराणसी हवाई अड्डे से बाहर ही नहीं आने दिया. उन्हें वापस बिहार भेज दिया गया. उन्होंने 25 अक्तूबर को बलिया में आयोजित 'निषाद आरक्षण अधिकार जन चेतना रैली' में कहा कि उनकी पार्टी यूपी में 165 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगी. आने वाले दिनों में उनके किसी दल से समझौता के भी आसार हैं.

मुकेश सहनी के यूपी में दावेदारी से निषाद वोटों पर राजनीति तेज हो गई है. संजय निषाद ने मुकेश सहनी को विभिषण बताया है. अब यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि यूपी के निषाद किस पार्टी के साथ जाते हैं. 

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